रायपुर, मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कल 06 जुलाई को प्रसिद्ध विचारक, शिक्षाविद और स्वतंत्र भारत के प्रथम उद्योग मंत्री स्वर्गीय डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती पर जनता को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं दी हैं। मुख्यमंत्री ने डॉ. मुखर्जी की जयंती की पूर्व संध्या पर आज यहां जनता के नाम जारी शुभकामना संदेश में कहा है कि राष्ट्रीय एकता और अखण्डता की रक्षा के लिए डॉ. मुखर्जी का ऐतिहासिक योगदान था। डॉ. रमन सिंह ने कहा – स्वर्गीय डॉ. मुखर्जी ने जम्मू-कश्मीर को स्वतंत्र भारत का अभिन्न अंग बनाए रखने के लिए जन आंदोलन का नेतृत्व किया और अपने प्राणों की आहुति दे दी। हम सब भारतवासी उनके इस बलिदान को हमेशा याद रखेंगे। डॉ. रमन सिंह ने कहा है कि स्वर्गीय डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी भारत माता के ऐसे अनमोल रत्नों में से थे, जिन्होंने अपनी विलक्षण प्रतिभा से और अपने अनुकरणीय कार्यों से पूरी दुनिया में देश का नाम रौशन किया। उन्होंने सिर्फ 33 वर्ष की युवावस्था में कोलकाता विश्वविद्यालय के कुलपति पद को सुशोभित कर देश के सबसे कम उम्र के कुलपति होने का कीर्तिमान भी बनाया। मुख्यमंत्री ने आज शाम छत्तीसगढ़ विधानसभा के परिसर में स्वामी विवेकानंद सहित डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की प्रतिमाओं के अनावरण पर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि दोनों महान विभूतियों की प्रतिमाएं हमें उनके प्रेरणादायक जीवनदर्शन की हमेशा याद दिलाती रहेंगी और हम सब उनसे प्रेरणा ग्रहण करते रहेंगे। मुख्यमंत्री ने कहा – छत्तीसगढ़ सरकार ने राष्ट्र सेवा में डॉ. मुखर्जी के अतुलनीय योगदान को यादगार बनाए रखने के लिए नया रायपुर में डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी उद्योग एवं व्यापार परिसर का निर्माण किया है, जहां हर साल एक नवम्बर को छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस पर राज्योत्सव का आयोजन किया जाता है। ज्ञातव्य है कि डॉ. श्यामप्रसाद मुखर्जी का जन्म कोलकाता (बंगाल) में छह जुलाई 1901 को हुआ था। उनके पिता श्री आशुतोष मुखर्जी भी एक वरिष्ठ शिक्षाविद थे। डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने वर्ष 1917 में मेट्रिक और वर्ष 1921 में बी.ए. की परीक्षा पास की। इसके बाद वर्ष 1923 में वह कानून की शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेश चले गए और 1926 में इंग्लैण्ड से बैरिस्टर बनकर स्वदेश लौटे। स्वर्गीय डॉ. मुखर्जी भारतीय संविधान सभा के भी सदस्य थे। स्वतंत्र भारत के प्रथम उद्योग मंत्री के रूप में उन्होंने देश के औद्योगिक और आर्थिक विकास की दिशा में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका निधन 23 जून 1953 को जम्मू-कश्मीर में हुआ।