सुप्रीम कोर्ट हिंदुत्व पर दिए गए अपने फैसले पर सुनवाई करेगा
नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह 'हिंदुत्व' के अपने पहले दिए गए फैसले पर फिर से विचार करने वाली याचिका पर जल्द सुनवाई करेगा। शीर्ष अदालत ने 1995 में अपने फैसले में हिंदुत्व को भारतीय लोगों की जीवन शैली बताया था। चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि हिंदुत्व के फैसले पर पुनर्विचार वाली याचिकाएं दाखिल हैं। चीफ जस्टिस ने कहा कि जैसे ही सबरीमाला के की सुनवाई पूरी हो जाएगी वह इस मामले में सुनवाई शुरू करेंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने कैसे की टिप्पणी
1992 से पेडिंग पड़े अभिराम सिंह मामले की पैरवी करते हुए वरिष्ठ वकील अरविंद दत्तार ने दलील दी कि बहुत से कैंडिडेट्स 1990 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में चुनावी अनाचार मामले में बरी हो गए हैं लेकिन मेरे मुवक्किल अभिराम सिंह पर अभी कोई फैसला नहीं आया है क्योंकि याचिका को तीन जजों की पीठ में भेज दिया गया, फिर 5 जजों की पीठ और इसके बाद 7 जजों के बेंच को भेज दिया गया है, जिसे यह फैसला करना है कि कैंडिडेंट के धर्म, संप्रदाय, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर वोट मांगना अयोग्यता की श्रेणी में आता है या नहीं?
क्या है पूरा मामला
11 दिसंबर 1995 में जस्टिस जे. एस. वर्मा की बेंच ने फैसला दिया था कि हिंदुत्व शब्द भारतीय लोगों की जीवन शैली की ओर इंगित करता है। हिंदुत्व को सिर्फ धर्म तक सीमित नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने हिंदुत्व के इस्तेमाल को रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपुल ऐक्ट की धारा-123 के तहत करप्ट प्रैक्टिस नहीं माना था। 1995 के इस फैसले में हिंदुत्व को जीवन शैली बताया गया था और कहा था कि हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगने से किसी उम्मीदवार पर प्रतिकूल असर नहीं होता। 1995 के फैसले पर सवाल उठने के बाद यह मामला फिर जनवरी 2014 में पांच जजों की बेंच के सामने आया, जिसे 7 जजों की बेंच को रेफर कर दिया गया था।
शीर्ष अदालत ने फैसले में यह कहा था
सर्वोच्च न्यायालय का कहना था कि जब तक स्पीच किसी के प्रतिकूल या प्रत्यक्ष तौर पर हमला करने वाली न हो, उसमें प्रयोग हुए 'हिंदुत्व' को हिंदू धर्म एवं हिंदू धर्म में विश्वास रखने वालों के लिहाज से नहीं माना जाना चाहिए। जस्टिस वर्मा ने कहा कि सिर्फ इस आधार पर कि भाषण में 'हिंदुवाद' और 'हिंदुत्व' जैसे शब्द इस्तेमाल हुए हों, व्यक्ति को धारा 123 के सेक्शन (3) व (3A) के तहत शामिल नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा था कि यह भी संभव है कि इन शब्दों का इस्तेमाल धर्मनिर्पेक्षता को बढ़ावा देने या भारतीयों की जीवनशैली बयां करने के लिए किया गया हो।
मनोहर जोशी ने दिया था बयान
बता दें कि मनोहर जोशी विरुद्ध एनबी पाटिल मामले में यह फैसला आया था। जस्टिस जेएस वर्मा ने फैसला लिखा था। जोशी ने बयान दिया था कि पहला हिंदू राज्य महाराष्ट्र में बनाया जाएगा। पूरा मसला जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123(3) में उल्लेखित भ्रष्ट तरीकों के दायरे से जुड़ा है। 1995 के फैसले को लेकर सवाल उठाए जाने के बाद यह मसला एक बार फिर जनवरी 2014 में पांच जजों की बेंच के सामने आया, जिसने उसे सात जजों की बेंच को रेफर कर दिया।]
सावरकर ने गढ़ा था हिंदुत्व शब्द
विनायक दमोदर सावरकर ने 1923 में इस शब्द की खोज की थी और हिंदुत्व का विचार दिया था। सावरकर ने कहा कि वह हिंदू हैं जो भारत को अपनी मातृभूमि, पितृभूमि और पुण्यभूमि मानते हों।
कब से शुरू हुआ राजनीतिक इस्तेमाल
वैसे तो हिंदुत्व का इस्तेमाल किसी न किसी रूप में इस्तेमाल होता रहा है लेकिन 1990 के दशक में इसका तेजी से राजनीतिक रूप से इस्तेमाल होना शुरू हुआ। इसके बाद हुए कई राज्य विधानसभा चुनावों में इसका इस्तेमाल किया गया। 2004 के आम चुनाव में बीजेपी ने इसे जोर-शोर से उठाया। 2014 के लोकसभा चुनाव में सभी दल इस शब्द के आसपास एक-दूसरे राजनीतिक रोटियां सेंकते रहे।
आरएसएस की सोच
हिंदुत्व के मसले पर RSS चीफ मोहन भागवत ने कहा कि हिंदू ही एक ऐसा शब्द है जो भारत को दुनिया के सामने सही तरीके से पेश करता है। भले ही देश में कई धर्म हों, लेकिन हर व्यक्ति एक शब्द से जुड़ा है जो हिंदू है। यह शब्द ही देश की संस्कृति को दुनिया के सामने पेश करता है। भागवत ने कहा कि संघ देश में विस्तार के साथ-साथ हिंदुत्व के एजेंडे पर आगे बढ़ता रहेगा जो देश को जोड़ने का काम करेगा।
आरएसएस के संस्थापक हेडगेवार की हिंदुओं पर राय
आरएसएस के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार ने शुरू से ही संघ को सक्रिय राजनीति से दूर रखा था। उन्होंने सिर्फ सामाजिक-धार्मिक गतिविधियों तक ही इसे सीमित रखा। हेडगेवार का मानना था कि संगठन का प्राथमिक काम हिंदुओं को एक धागे में पिरो कर एक ताकतवर समूह के तौर पर विकसित करना है।
हिंदुत्व पर अटल की सोच
एक बार पुणे में भाषण देते दिवंगत प्रधानमंभी अटल बिहारी वाजपेयी ने हिंदुत्व के बारे कहा था, 'मैं हिन्दू हूं, ये मैं कैसे भूल सकता हूं? किसी को भूलना भी नहीं चाहिए। मेरा हिंदुत्व सीमित नहीं हैं। संकुचित नहीं हैं मेरा हिंदुत्व हरिजन के लिए मंदिर के दरवाजे बंद नहीं कर सकता है। मेरा हिन्दुत्त्व अंतरजातीय, अंतरप्रांतीय और अंतरराष्ट्रीय विवाहों का विरोध नहीं करता है। हिंदुत्व सचमुच बहुत विशाल है।'
आडवाणी ने हिंदुत्व की राजनीति को आगे बढ़ाया
1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने आरएसएस के साथ मिलकर जिस राजनीतिक पार्टी भारतीय जनसंघ की स्थापना की गई थी उसमें लालकृष्ण आडवाणी सदस्य के तौर पर जुड़ गए। बाद में वह बीजेपी के अध्यक्ष भी बने। आडवाणी हिंदुत्व के राजनीति के पोस्टर बॉय रहे हैं। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की मांग को लेकर 1990 में गुजरात के सोमनाथ से शुरू की गई उनकी रथ यात्रा ने भारत के सामाजिक ताने-बाने पर अंदर तक असर डाला। वह हिंदुत्व के नायक बन गए थे। हिंदी पट्टी के राज्यों में आडवाणी की राजनीतिक कद काफी बढ़ा।