सोनिया-पवार की मुलाकात में चर्चा, सावरकर की वजह से अटकी शिवसेना-NCP की दोस्ती?
नई दिल्ली
महाराष्ट्र की सियासत चुनाव नतीजों के 11 दिन बाद भी भंवर में है. राज्य नेतृत्व की कोई स्पष्ट तस्वीर सामने नहीं आ सकी है. सियासत के दो दोस्त 'बीजेपी और शिवसेना वेट एंड वॉच' की नीति अपना रहे हैं. इन दोनों को ही उम्मीद है कि गुजरते वक्त के साथ अगली पार्टी दबाव में आएगी और राज्य में सरकार गठन का रास्ता खुलेगा. इस बीच शिवसेना संकेतों से ही सही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से भी समर्थन मांग रही है.
शिवसेना के ऑफर को लेकर एनसीपी असमंजस में है. सुप्रीमो शरद पवार ने सोमवार को इस विकल्प को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से भी चर्चा की. इस चर्चा के दौरान दोनों के सामने विचारधारा का प्रश्न खड़ा हो गया है. दरअसल हिन्दुत्व की प्रखर आवाज रही शिवसेना विनायक दामोदर सावरकर को भारत रत्न देने का समर्थन करती है, लेकिन शिवसेना का ये रुख एनसीपी को उससे हाथ मिलाने से रोक रहा है.
विचारधारा से समझौता नहीं चाहती है कांग्रेस
सोमवार को महाराष्ट्र में सरकार गठन की कवायद दिल्ली में हुई. एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने दिल्ली पहुंचे. दरअसल शिवसेना कई बार कह चुकी है कि उसके पास सरकार बनाने के लिए संख्या बल है. स्पष्ट रूप से शिवसेना का इशारा एनसीपी और कांग्रेस की ओर है. एनसीपी सुप्रीमो इन्हीं संभावनाओं पर चर्चा करने के लिए दिल्ली पहुंचे थे. सूत्रों ने बताया कि जब दोनों नेता मिले तो कई संभावनाओं पर विचार किया गया. दोनों ही नेता इस पर सहमत थे कि शिवसेना के साथ जाना सियासी दुश्मन का मोहरा बन जाने जैसा होगा. रिपोर्ट के मुताबिक इस बात पर चर्चा हुई कि अगर एनसीपी-कांग्रेस शिवसेना के साथ जाती है तो ये संदेश जाएगा कि दोनों पार्टियों ने सत्ता के लिए विचारधारा से समझौता किया है. खासकर उस दौर में जब बीजेपी सावरकर के लिए भारत रत्न की मांग कर चुकी है और शिवेसना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे इस मांग का समर्थन कर चुके हैं. बता दें कि हिन्दुत्व जैसे मुद्दे पर शिवसेना की विचारधारा कांग्रेस और एनसीपी से पूरी तरह विपरित है.
कांग्रेस सावरकर को भारत रत्न देने के खिलाफ
वहीं कांग्रेस सावरकर को भारत रत्न देने के खिलाफ है. राहुल गांधी ऐसे किसी भी प्रस्ताव का जोरदार विरोध कर चुके हैं. इसके अलावा राम मंदिर मामले पर भी शिवसेना का रुख कांग्रेस, एनसीपी को नहीं पच पा रहा है. इसलिए सोनिया गांधी ऐसे किसी भी गठबंधन को ग्रीन सिग्नल देने से पहले हिचकिचा रही हैं और बदलते राजनीतिक घटनाक्रम का इंतजार कर रही हैं.
कांग्रेस के समर्थन के बिना नहीं बनेगी बात
बता दें कि महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी तभी सरकार बना पाएगी जब उन्हें कांग्रेस समर्थन मिले. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 44 सीटें मिली हैं, जबकि एनसीपी के खाते में 54 सीटें हैं, वहीं शिवसेना के 56 एमएलए चुनाव जीतकर आए हैं. अगर इन तीनों की सीटें जोड़ दी जाए तो ये आंकड़ा 154 तक पहुंच जाता है, जबकि महाराष्ट्र में सरकार बनाने का जादुई आंकड़ा 145 है. शिवसेना को 8 निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन हासिल है. इस तरह ये पार्टियां राज्य में आसानी से सरकार बना सकती हैं.
सोमवार को सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद शरद पवार ने कहा था, "मैंने कांग्रेस अध्यक्ष से मुलाकात की, कांग्रेस और एनसीपी नेता पहले भी इस मुद्दे पर विचार कर चुके हैं कि आगे कैसे बढ़ा जाए, हम इस बात को लेकर स्पष्ट हैं कि कांग्रेस नेतृत्व को अपने स्टैंड पर फिर से सोचना चाहिए." सोनिया गांधी जब दिल्ली में शुक्रवार को कांग्रेस नेताओं से मिली थीं और शिवसेना को समर्थन देने पर चर्चा हुई थी इस दौरान भी ये मुद्दा उठा था. तब भी सोनिया ने कहा था कि बीजेपी और शिवसेना में ज्यादा अंतर नहीं है.