सेना दिवस : शहादत के बाद पत्नी के पास पहुंचा शहीद सूबेदार नरेन्द्र सिंह राणा का ख़त…

ग्वालियर. आज सेना दिवस (ARMY DAY) है. देशभर के साथ ग्वालियर (Gwalior) के राणा परिवार (rana family) के लिए भी आज का दिन गौरवशाली है. इस घर के लाड़ले नरेंद्र सिंह राणा (Nraendra singh Rana) ने करगिल युद्ध (kargil war) में कुर्बानी देकर भारत को विजय दिलाई. शहादत के 8 दिन पहले सूबेदार नरेंद्र सिंह ने अपनी पत्नि के नाम खत भेजा था. लेकिन वो खत राणा की शहादत के बाद ग्वालियर पहुंचा.
कुर्बानी पर फक़्र
ग्वालियर के मुरार उपनगर के घोसीपुरा इलाके में रहने वाले नरेंद्र सिंह राणा का जन्म 12 दिसंबर 1955 को हुआ था. घर के सामने मिलिट्री एरिया होने के कारण नरेंद्र सिंह हमेशा फौजी बनने का सपने देखते थे. उन्होंने देश सेवा के लिए फौज में भर्ती होने की तैयारी की. मेहनत रंग लाई उनके जज्बे के कारण 12 जुलाई 1976 को 21 साल की उम्र में नरेंद्र सिंह राणा सेना में चुन लिए गए और 4 राष्ट्रीय रायफल में उनकी पोस्टिंग हुई.
करगिल में थे सूबेदार राणा
नरेन्द्र 1999 में नायब सूबेदार के तौर पर कश्मीर में ही तैनात थे जब इसी साल 3 मई को करगिल युद्ध शुरू हुआ. 26 जुलाई को भारत ने युद्ध में विजय हासिल कर ली, लेकिन ये लड़ाई अगस्त 1999 तक चलती रही. इसी युद्ध में सूबेदार नरेंद्र सिह राणा 6 अगस्त को दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गए. परिवार को उनकी शहादत पर गर्व है.
वो दिन…
करगिल विजय के 20 साल हो चुके हैं. परिवार को शहीद नरेंद्र सिंह राणा पर गौरव महसूस होता है. पत्नि यशोदा याद करती हैं कि उस दौर में मीडिया या मोबाइल का चलन ज्यादा नहीं था. टीवी पर ही भारत-पाक युद्ध के समाचार मिलते थे. फिर छह अगस्त की शाम मुरार मिलट्री कैंप से जवानों ने घर आकर नरेंद्र के शहीद होने की खबर दी. यशोदा पति की यादों को सजोए हुए है. वो पति की तस्वीर को भगवान की तह पूजती हैं.
ख़त से पहले तिरंगे में लिपटा पार्थिव शरीर पहुंचा
शहीद सूबेदार नरेन्द्र सिंह राणा के तीन बेटे हैं. दो अब शहर से बाहर हैं और तीसरा उनकी पत्नी यशोदा के साथ रहता है. यशोदा बताती हैं कि करगिल युद्ध के दौरान ही पति नरेंद्र सिंह ने उन्हें खत लिखा था. लेकिन पत्र आने में देरी हुई.पत्र से पहले नरेंद्र सिंह का तिरंगे में लिपटा शरीर घर आ गया.
ख़त में लिखा था…
शहादत के 10 दिन बाद सूबेदार नरेंद्र राणा का खत पत्नि के पास पहुंचा. उसमें लिखा था. अपना ख्याल रखना. बच्चों को स्कूल भेजना. उनके खाने-पीने का ख्याल रखना. बच्चों के लिए लिखा था कि तुम तीनों भाई फौज में भर्ती होने की तैयारी करते रहना. पत्नि यशोदा के मुताबिक सूबेदार पति को उनके हाथ का सूजी का हलवा बेहद पसंद था. जब छुट्टी में ग्वालियर आते तो सबसे पहले सूजी के हलवे की ही फरमाइश करते थे.
बेटे को पिता पर नाज़
शहीद नरेंद्र सिंह के तीन बेटे हैं. बच्चों को वो हमेशा फौज में आकर देश सेवा की प्रेरणा देते थे.कश्मीर में तैनात सूबेदार जब भी ग्वालियर आते तो अपने बच्चों के लिए कश्मीरी सेब, अखरौट औऱ बादाम लेकर आते थे. सबसे छोटा बेटा धीरेंद्र उस वक्त आठ साल का था. उस दौरान टीवी और रेडियो पर करगिल युद्ध की खबरें सुनने को मिलती थीं. बेटे को पिता के आखिर खत के बारे में पता था. जिसमें तीनों भाइयों को बेहतर पढ़ाई और फौज की तैयारी करने की बात लिखी थी. धीरेंद कहता है कि पिता की शहादत पर उनको फक्र महसूस होता है.
युवाओं को देशभक्ति की प्रेरणा
सूबेदार नरेंद्र सिंह दिल खुश इंसान थे. फौज में जाने की तैयारी दोस्तों के साथ करते थे. फौज में भर्ती होने के बाद जब भी वो ग्वालियर आते तो दोस्तों को लेकर बाज़ार निकल जाते थे और फिर दावत का आनंद लेते थे. उस दौर के युवा जब नरेंद्र सिह को फौज की वर्दी में देखते थे तो उनमें भी फौज में भर्ती होने का जज्बा जागता था.