बैंकों के मर्जर के प्रस्ताव का असर लाखों मेडिक्लेम कस्टमर्स पर
बेंगलुरु
10 सार्वजनिक बैंकों के मर्जर के प्रस्ताव का असर लाखों मेडिक्लेम कस्टमर्स पर पड़ सकता है। मर्जर के बाद अगले वित्त वर्ष से इन बैंकों के ग्राहकों को मेडिक्लेम के लिए 50 से 300 फीसदी ज्यादा प्रीमियम चुकाना पड़ सकता है। सबसे ज्यादा असर सीनियर सिटिजन्स पर पड़ेगा, जो अपने मासिक खर्च के लिए ज्यादातर पेंशन और एफडी पर निर्भर रहते हैं। उम्र के इस पड़ाव पर मेडिक्लेम प्रीमियम में इतनी ज्यादा वृद्धि से वे काफी प्रभावित होंगे। हालांकि युवा ग्राहकों के प्रीमियम में ज्यादा वृद्धि प्रत्याशित नहीं है।
मौजूदा समय में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक बचत खाताधारकों और क्रेडिट कार्ड ग्राहकों को ग्रुप इंश्योरेंस पॉलिसी के तहत हेल्थ कवर मुहैया करते हैं। इरडा के मौजूदा नियमों के मुताबिक, एक बैंक का एक ही बैंकाश्योरेंस(एक इंश्योरेंस पार्टनर) हो सकता है, फिर चाहे वह किसी भी तरह का बीमा हो। यानी बैंकों के मर्जर के बाद इंश्योंरेंस कंपनियों के साथ उनके टाइ-अप खत्म हो जाएंगे। दूसरी ओर, इरडा ग्रुप इंश्योरेंस पॉलिसीज की पोर्टेबिलिटी की इजाजत नहीं देता, मर्ज्ड बैंकों के ग्राहकों को इंडिविजुअल पॉलिसी लेनी होगी या उन्हें बैंक की नई पॉलिसी के तहत नया कस्टमर माना जाएगा।
बैंकों के मर्जर की पहली मार विजया बैंक के 64,500 क्रेडिट कार्डधारकों पर पड़ी है। 1 जनवरी 2020 से वे बैंक के ग्रुप इंश्योरेंस स्कीम में कवर्ड नहीं हैं। पिछले 2 दशकों से ये ग्राहक पॉलिसी का हिस्सा थे।
हमारे सहयोगी अखबार ने पाया कि वर्षों से बैंक के ग्राहक 7,500 से 12,000 रुपये के प्रीमियम पर ग्रुप मेडिक्लेम स्कीम इंजॉय कर रहे थे। अगर इन पॉलिसीज को इंडिविजुअल पॉलिसीज में बदल दिया जाए तो ऐनुअल रिन्युअल के साथ उनका प्रीमियम 22000 से 75000 रुपये तक पहुंच सकता है।
ऐसे समझिए। विजया बैंक का मर्जर 1 अप्रैल 2019 को बैंक ऑफ बड़ौदा के साथ हो जाता है। बैंक ऑफ बड़ौदा का बैंकाश्योरेंस पार्टनर मैक्स बूपा है, जबकि विजया बैंक का यूनाइडेट इंडिया इंश्योरेंस। तो मर्जर के बाद विजया बैंक के ग्राहक मैक्स बूपा के नए ग्राहक बन जाएंगे। बैंक ऑफ बड़ौदा के प्रवक्ता ने कहा, चूंकि इरडा के तहत ग्रुप हेल्थ इंश्योरेंस की पोर्टेबिलिटी की इजाजत नहीं है, लिहाजा अगर वह विजया बैंक के ग्राहकों की पॉलिसीज को माइग्रेट करना भी चाहे तो नहीं कर सकता।
अब इसे ग्राहक के उदाहरण से समझिए। 79 साल के बीएस बहल और उनकी 78 वर्षीय पत्नी शांता बहल के पास पिछले 20 वर्षों से 5 लाख का मेडिक्लेम कवर है, जिसका सालाना प्रीमियम 12,910 रुपये है। जब दोनों इसके रिन्युअल के लिए यूनाइटेड इंश्योरेंस के पास पहुंचे तो पॉलिसी का लाभ जारी रखने के लिए उनसे 49000 रुपये मांगे गए। वहीं, बहल के 51 वर्षीय बेटे संजय बहल भी अपनी ग्रुप इंश्योरेंस पॉलिसी के लिए 12,190 रुपये सालाना का प्रीमियम पे कर रहे थे, जिसमें उनका बेटा और पत्नी शामिल हैं। उनके लिए नया रेट 22000 रुपये हो गया है। यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस के एक अधिकारी ने बताया, बड़े ग्रुप को कवर करने पर रिस्क कम होता है। उन्होंने आगे कहा, 'व्यक्तिगत बीमा के मामले में हमें आयु वर्ग और पॉलिसी की कीमत आदि का ध्यान देना पड़ता है।'
मामले पर इरडा की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। विजया बैंक का मानना है, बैंक और इंश्योरेंस कंपनी दोनों ही सार्वजनिक क्षेत्र की हैं, ऐसे में सरकार को हस्तक्षेप करते हुए बैंकों के लिए कोई समाधान पेश करना चाहिए। पेशे से वकील गणेश प्रसाद का कहना है, 'जब बैंक ऑफ बड़ौदा ने विजया बैंक को टेकओवर किया, उसने बैंक की संपत्ति और देनदारियों दोनों को साथ लिया। लिहाजा आज ऐसा कैसे हो सकता है कि हमारी वाजिब मांगों का खयाल न रखा जाए?' गणेश प्रसाद ने ये बातें कहीं क्योंकि उनसे अपने 5 सदस्यों वाले परिवार के ग्रुप इंश्योरेंस कवर को रिन्यू करवाने के लिए 75,000 रुपये मांगे गए।