मोदी और भारतीय दिलों से अमेरिकी राष्ट्रपति पद का रास्ता बना रहे माइक ब्लूमबर्ग
लंदन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीयों के दिलों में पहुंच बनाकर माइक ब्लूमबर्ग अमेरिकी राष्ट्रपति का पद पाने के प्रयास कर रहे हैं। बीते 90 दिनों में भारत में फेसबुक पर सबसे ज्यादा राजनीतिक विज्ञापन डेमोक्रेट प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ना चाह रहे माइक ने अपनी संस्था ब्लूमबर्ग फिलंथ्रोफीस के जरिए दिए।
इन विज्ञापनों के जरिए न्यूयॉर्क में एक अक्तूबर को ब्लूमबर्ग ग्लोबल बिजनेस फोरम में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की माइक के साथ हुई चर्चा को सबसे ज्यादा हाईलाइट किया गया है। फेसबुक की ताजा एड लाइब्रेरी रिपोर्ट में यह रोचक खुलासा हुआ है।
इस वर्ष 29 सितंबर से 27 दिसंबर यानी बीते 90 दिनों में फेसबुक पर दिए गए विज्ञापनों पर यह रिपोर्ट है। माना जा रहा है कि अमेरिका में मौजूद भारतवंशी सॉफ्टवेयर इंजीनियरों के भारत में रह रहे परिवारों बीच अपनी पहचान बनाने और खुद को प्रमोट करने के लिए ऐसा किया गया है।
माइक ब्लूमबर्ग फिलंथ्रोफीस के सीईओ व संस्थापक भी हैं। उन्हीं के नाम से बने फेसबुक पेज के नाम पर यह विज्ञापन दिए गए। कुल 10 विज्ञापन दिए गए, जिन पर 37.39 लाख रुपये खर्च हुए। खास बात है कि उनके बाद दूसरे स्थान पर एक न्यूज मोबाइल एप रहा, जिसने अपने प्रमोशन पर माइक से 10 लाख रुपये कम खर्च किए। ब्लूमबर्ग फिलंथ्रोफीस फरवरी से अब तक 53.79 लाख रुपये फेसबुक विज्ञापनों पर खर्च कर चुकी है।
इन 10 में से आठ विज्ञापनों में पीएम मोदी द्वारा ब्लूमबर्ग फोरम में दिए गए वक्तव्य, अर्थव्यवस्था, जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा, आदि विषयों पर चर्चा के दौरान बनाए वीडियो व तस्वीरों के फेसबुक पोस्ट हैं। बाकी में फोरम के उद्घाटन की पोस्ट हैं।
फेसबुक ने इन विज्ञापनों को सबसे ज्यादा 57 प्रतिशत दफा 24 से 34 वर्ष के युवा लड़कों को परोसा गया। इसी उम्र की लड़कियों को यह केवल नौ प्रतिशत गया, जो विज्ञापनों भेजने में बरते गए लैंगिक भेदभाव को दर्शाता है।
यह भी माना गया है कि नरेंद्र मोदी की इस आयु वर्ग में लोकप्रियता का सहारा लेकर माइक भी खुद को प्रोजेक्ट कर पाएंगे। इसी आयु वर्ग से कई युवा अमेरिका में कॅरियर विकल्प या ऑनसाइट अवसर तलाशते हैं।
दूसरे नंबर पर रहे न्यूज एप केे अलावा बाकी प्रमुख फेसबुक विज्ञापनदाता राजनीतिक दल रहे। इनमें शिवसेना और तृणमूल कांग्रेस के ‘दीदी के बोलो’ व ‘आमार गोर्बो ममता’ अभियान के विज्ञापन प्रशांत किशोर की बनाई इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी ने दिए।
चुनाव में विपक्षी दल की छवि सोशल मीडिया पर बिगाड़ने में भी काफी पैसा खर्च किया गया, एनसीपी-कांग्रेस की आलोचना करते पेज ‘अघाड़ी बिघाड़ी’ ने सात लाख रुपये से ज्यादा खुद को प्रमोट करने में लगा दिए।