सोडा फैक्ट्री प्रबंधन की लापरवाही से मजदूर की मौत, मृत शरीर को लेकर 3 अस्पतालों का कराया सफर

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शहडोल (अविरल गौतम) संभाग के अनूपपुर एवं शहडोल जिले के बीचो बीच संचालित कास्टिक सोडा यूनिट मिल अमलाई में गत रात्रि कार्य के दौरान कमलेश कोल नामक एक युवक की कार्य स्थल पर मृत्यु हो गई। लेकिन सोडा यूनिट के प्रबंधक ने मृत्यु की बात को छुपा कर मृतक की तबीयत खराब हो जाने का हवाला देकर रातो रात उसे सबसे पहले सोडा यूनिट के अस्पताल पर ले जाया गया उसके बाद उसे एंबुलेंस में ही जांच करते हुए सीरियस बता कर ओरियंट पेपर मिल के चिकित्सालय पर ले जाया गया वहां पर भी सिर्फ फॉर्मेलिटी अदा करते हुए आगे की साजिश रुचकर उसे बुढार सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर ले जाया गया जहां पर मजदूर कमलेश को डॉक्टरों द्वारा मृत घोषित कर दिया गया। बताया जा रहा है कि मृतक कमलेश पूरी तरह से स्वस्थ था और कंपनी के ठेकेदार संतोष मिश्रा द्वारा शनिवार के शाम को सोडा यूनिट के फैक्ट्री के अंदर दाखिल करवाया गया था जबकि सोमवार की रात को नमक की रेलवे की खेप को खाली करने का काम करना था। फिर भी 2 दिन पहले से मजदूरों को दाखिल करके रखना अपने आप में एक बड़ा सवाल है और फिर सोमवार की रात रेलवे की वैगन से नमक खाली करते समय अचानक कुछ घटना करीब होने की वजह से मौका स्थल पर ही उसकी मौत हो गई थी। लेकिन कंपनी के जिम्मेदार अधिकारी अपने आप को पाक साफ और सुरक्षित रखने के लिए मौका स्थल पर मृत शरीर को दबे पांव एंबुलेंस में डालकर 3-3अस्पतालों का सफर कराता रहा। खबर है कि शनिवार को कंपनी के ठेकेदार संतोष मिश्रा नामक व्यक्ति को रेलवे का नमक वाली रैक को खाली कराए जाने का काम मिला था। और इसीलिए2- 3 दिन पहले से ही लगभग 183 लोगों को उनके इशारे पर ही कंपनी ने अंदर दाखिल कराया गया था, और इन 183 मजदूरों को कंपनी के द्वारा किसी तरह का नाम पता या वेरीफिकेशन किए बगैर ही प्रवेश दे दिया गया था। जबकि नियम तो यह कहता है कि जब तक किसी मजदूर का एसआईपीएफ नहीं किया गया हो ऐसे व्यक्तियों को कंपनी के अंदर प्रवेश देने का कोई नियम ही नहीं है इसके अलावा कोरोना के दोनों टीका नहीं लगे हो उन व्यक्तियों को भी प्रवेश वर्जित है इस तरह प्रबंधन की लापरवाही को देखा जा सकता है कि चेक किए बगैर ही कंपनी अपने हित साधने के लिए आंख मूंदकर कंपनी के अंदर प्रवेश दे दिया गया था। जबकि किसी भी प्राइवेट कंपनी के अंदर किसी भी प्राइवेट आदमी को घुसने का अधिकार नहीं होता है और वही व्यक्ति कंपनी के अंदर जा सकता है जो व्यक्ति कंपनी का रेगुलर कामगार हो या फिर जो प्राइवेट मजदूर होते हैं उनका एसआईपीएफ कटा हो ताकि कोई दुर्घटना हो जाए तो मुआवजा के रूप में उसके परिजनों को उसका लाभ मिल सके लेकिन कंपनी के द्वारा इतनी बड़ी लापरवाही की गई है की बहुसंख्यक में इतने मजदूर अंदर गए और इनका किसी प्रकार से नाम पता तक नोट करना मुनासिब नहीं समझा गया।

यह है मामला

सोमवार 27 तारीख को देर रात कास्टिक सोडा यूनिट प्लांट अमलाई में रेलवे के बैगन से लगभग 58 बैगन नमक का लूस रेक आने वाला था जिसे खाली करने के लिए सोडा फैक्ट्री के प्रबंधक द्वारा निजी ठेकेदार संतोष मिश्रा को काम दिया गया था जिसे खाली कराने के लिए संतोष मिश्रा के द्वारा आसपास ग्रामीण क्षेत्रों से लगभग 183 लेबर शनिवार के शाम को लाया गया था और फिर उसे फैक्ट्री के अंदर दाखिल करवाया गया जिसमें मृतक कमलेश कॉल पिता विष्णु कॉल निवासी ग्राम कठौतिया थाना खैरा भी मौजूद था और सोमवार की रात रैक से नमक खाली करते समय अचानक कोई घटना कारित होने से कार्यस्थल पर ही कमलेश कॉल की मृत्यु हो गई जिसे आनन-फानन में कंपनी प्रबंधक के द्वारा ठेकेदार को बचाने की साजिश रचते हुए मृत शरीर को तीन अस्पतालों का सफर कराया गया जिसमें सबसे पहले कास्टिक सोडा यूनिट के अस्पताल पर मित्र को ले जाया गया उसके बाद नजदीकी ओरियंट पेपर मिल के चिकित्सालय फिर वहां से सीरियस बता कर मृत शरीर को बुढार के शासकीय अस्पताल ले जाया गया जहां पर डॉक्टरों द्वारा उसे मृत घोषित किया गया बाहर हाल मौत किन कारणों से हुई है यह तो पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद ही पता चल पाएगा लेकिन मृत होने के बाद भी उसे 33 अस्पतालों पर घुमाया गया यह मानवता को शर्मसार करने वाला मामला है।

नियमों से हटकर मजदूरों का प्रवेश

सोडा फैक्ट्री के जिम्मेदार प्रबंधक द्वारा गाइड लाइन से हटकर कार्य करने के भी आरोप लग रहे हैं क्योंकि बताया जा रहा है की जिस रात को सोमवार को खाली करना था उसके लिए बाकायदा 2 से 3 दिनों पहले ही मजदूरों को कंपनी के अंदर दाखिल करवाने का काम जारी रहा है मजे की बात तो यह है कि जिस कंपनी के अंदर बड़े पहुंच वाले व्यक्ति भी नाम पता और कारण बताए बगैर प्रवेश नहीं कर सकते वहां 183 मजदूर बड़े आराम से बिना वेरिफिकेशन किए हैं घुस जा रहे हैं अब आप ही सोच सकते हैं कंपनी अपने हित को साधने के लिए इतनी बड़ी लापरवाही को अंजाम दे रहे हैं एक तरफ लॉकडाउन के बाद कोरोना के दोनों टीकाकरण नहीं लगवाए हुए व्यक्ति को शासन प्रशासन के द्वारा प्रवेश नहीं दिया जा रहा है वही कंपनी कार्य के 3 दिन पहले ही बड़ी संख्या में मजदूरों को अंदर कर ले रही है जबकि 27 तारीख को नमक का आवेदन खाली होना था लेकिन मजदूरों को 25 तारीख को है कंपनी के अंदर प्रवेश दे दिया गया था।

तो क्या ठेकेदार चला रहा कंपनी

कमलेश कोल नामक मजदूर के मौत के बाद जांच पड़ताल की गई तो पता चला कि कंपनी के चहेते ठेकेदार संतोष मिश्रा के इशारे से ही 183 मजदूरों को शनिवार को अंदर प्रवेश का रास्ता खोल दिया गया था जिम्मेदार गार्डों ने बताया कि किसी भी प्राइवेट ठेकेदार के आदमी को सिर्फ गिनती करने के साथ ही प्रवेश दे दी जाती है तो क्या इतने बड़े सोडा यूनिट को निजी ठेकेदार ही चला रहे हैं या फिर यहां भी कोई बड़े साठगांठ की साजिश होते रहती है जो अपने हद के प्रवेश द्वार पर अंदर जाते हुए मजदूरों का नाम पता नोट करना भी मुनासिब नहीं समझती अगर कोई साधारण आदमी भी कारखाना के इर्द-गिर्द घूमता है तो उसे भी कंपनी पूछ लेती है कि आपका मकसद क्या है तो फिर कंपनी के अंदर काम पर जाने वाले मजदूर का वेरिफिकेशन करना मुनासिब क्यों नहीं समझती या यह कह सकते हैं कि प्राइवेट ठेकेदार के साथ संबंधित जिम्मेदार अधिकारियों के सांठगांठ बने रहते हैं या फिर लेनदेन का बराबर मामला इस तरह की कार्यवाही के लिए तैयार करके रखा जाता है।

यह कहना है परिजनों का

कमलेश कॉल नामक मजदूर की मौत के मामले पर परिजनों ने कहा कि गरीबी के कारण लगभग 50 किलोमीटर की दूरी तय करके काम के लिए गए थे और पहला राय लगभग 7:00 बज कर 30 मिनट एक रेट खाली करने के बाद खाना खाकर लगभग 9:40 पर जब दूसरे रहे को खाली करने में लगे हैं तभी नमक के ढेर के ऊपर थोड़ा चलाता हुआ कमलेश गिर पड़ा और फिर बेहोशी के हालत में उसे उठाकर तत्काल उपलब्ध एंबुलेंस में लोड करवा कर अस्पताल के लिए निकले लेकिन अस्पताल पहुंचने से पहले ही कमलेश की मृत्यु हो चुकी थी और अब ठेकेदार के द्वारा उसे 15 दिनों के अंदर ₹100000 मुआवजा देने की बात कही गई है साथ ही क्रिया कर्म के लिए ₹5000 तत्काल ठेकेदार के द्वारा दिया गया था तो क्या एक जिंदगी की कीमत सिर्फ ₹1 लाख ही है अगर यह लापरवाही ठेकेदार के द्वारा नहीं की गई होती तो आज कमलेश के परिजनों को एक मोटी रकम मुआवजा के रूप में मिल सकती थी यह लापरवाही अब कंपनी की कहें जो बिना वेरिफिकेशन के ही कमलेश जैसे हजारों मजदूरों को बिना जांच परख के अंदर कर लेती है और अपना हित साध अति है या फिर संतोष मिश्रा जैसे ठेकेदार की कहे जो अपने कमाई के लिए लेबरों की सुरक्षा व्यवस्था को ताक पर रखकर सिर्फ अपना पैसा बचाने में लगे हैं।

सुरक्षा निधि होती तो मिलता मुआवजा

ठेकेदार संतोष मिश्रा के अलावा सोडा फैक्ट्री सहित ओरियंट पेपर मिल में ऐसे कई ठेकेदार हैं जिनके अंडर में सैकड़ों मजदूर काम करते हैं और जितनी मजदूरी लेबरों को मिलनी चाहिए उस पर कमीशन सेट करते हुए ठेकेदार अपनी जेबें गर्म करते हैं लेकिन एक मजदूर कमलेश के मौत के बाद इन सभी ठेकेदारों को शर्म आनी चाहिए जो सिर्फ अपनी जेब गर्म करने के लिए सुरक्षा निधि जैसे महत्वपूर्ण पॉलिसी को भूलकर मजदूरों के जान को जोखिम में डाल रहे हैं और उनके मर जाने के बाद उनके परिजनों को मिलने वाले मुआवजा से खिलवाड़ करने पर उतारू हो गए हैं इसलिए आज एक मजदूर कमलेश तो चला गया लेकिन ऐसे कई कमलेश मजदूर बनकर कंपनी के अंदर काम कर रहे हैं इनके साथ भी कभी भी कोई बड़ी दुर्घटना घट सकती है नियम की माने तो कंपनी के अंदर रेगुलर कर्मचारियों को एसआईपीएफ एवं जो लोकल मजदूर कुछ दिनों के लिए आते हैं उन्हें w.c. पॉलिसी के अंदर सुरक्षा निधि प्रदान कर काम में लगाया जाता है लेकिन कंपनी के जिम्मेदार सोडा यूनिट के अधिकारी जो बिना एसआईपीएफ के मजदूरों को अपने कंपनी पर लगाकर निजी स्वार्थ निकालने का काम कर रहे हैं जो मजदूर अपने घर से निकलकर 50 किलोमीटर दूरी तय करके अपने परिजनों को दो वक्त की रोटी देने के लिए निकल रहे हैं उन्हें क्या पता कि लालची ठेकेदार उस रोटी को छीनने के लिए पहले ही तैयार बैठे हैं आज अगर सुरक्षा पॉलिसी होती तो कमलेश को लाखों का मुआवजा निश्चित रूप से मिलता इस तरह से निजी कंपनियों में जितने भी ठेकेदार हैं सभी लेबरों की एसआईपीएफ और w.c. पॉलिसी की समय-समय पर अगर जांच होती तो एक कमलेश के परिवार को जिंदगी चलाने लायक मुआवजा जरूर मिल सकती थी शासन प्रशासन को चाहिए कि समय-समय पर सभी जिले के ठेकेदारों के लेबर पॉलिसी को चेक करते रहें वही कंपनी को भी स्पष्ट आदेश देनी चाहिए कि बिना सुरक्षा पॉलिसी के कोई भी मजदूर अंदर ना जा पाए लेकिन आज लेबर इंस्पेक्टर से लेकर कंपनी और ठेकेदार सब आपसी टेबल का सांठगांठ रखते हुए मिलजुल कर लेब्रो के हक को मार रहे हैं इसलिए दर्जनों ऐसे मजदूर होंगे जो आज भी न्याय की राह पर खड़े होंगे

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