अरविंद केजरीवाल के शपथ ग्रहण समारोह में विपक्षी नेताओं को नहीं मिला न्योता, क्या संकेत दे रही AAP?
नई दिल्ली
दिल्ली में लगातार तीसरी बार आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार बनी है। साथ ही अरविंद केजरीवाल ने भी मुख्यमंत्री बनने की हैटट्रिक लगाई है। शपथ ग्रहण समारोह को भव्य और आम लोगों का दिखाने के लिए कई तरह के इंतजाम देखे गए। शपथ समारोह के मंच पर दिल्ली को संवारने में योगदान देने वाले 50 विशेष अतिथि बिठाए गए जिनमें डॉक्टर, टीचर्स, बाइक ऐम्बुलेंस राइडर्स, सफाई कर्मचारी, कंस्ट्रक्शन वर्कर्स, बस मार्शल, ऑटो ड्राइवर आदि रहे। इन सब बातों के बीच केजरीवाल के शपथ ग्रहण समारोह में विपक्षी एकता का अभाव दिखा। राजनीतिक गलियारों में चर्चा शुरू हो चुकी है कि क्या केजरीवाल एकला चलो की रणनीति को अपना रहे हैं?
साल 2018 में हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी सिद्दारमैया की सरकार को हराकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर आई थी, लेकिन ये बहुमत के आंकड़े से दूर रही गई थी। बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के लिए कांग्रेस ने महज 37 सीट जीतने वाली जेडीएस के एचडी कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनवा दिया था। कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह के बहाने कांग्रेस ने विपक्षी एकता दर्शाने की कोशिश की थी। इस शपथ ग्रहण समारोह में बीजेपी का विरोध करनी वाली लगभग सारी छोटी-बड़ी पार्टियों के नेता मंच पर पहुंचे थे। सभी नेता मंच पर हाथ मिलाकर खड़े होकर विपक्षी एकता का संदेश दिया था। इस तस्वीर में अरविंद केजरीवाल भी देखे गए थे। इसके बाद से कई राज्यों और लोकसभा के चुनाव हो चुके हैं, लेकिन विपक्षी खेमे ने कभी भी ऐसी एकता नहीं दर्शायी है।
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत के बाद महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा जैसे राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी सत्ता में आई थी। इस वक्त बीजेपी अपने चरम पर दिख रही थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर बीजेपी को जनता का भरपूर समर्थन मिल रहा था, ऐसे वक्त में दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी को पहला झटका लगा था। अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में आम आदमी पार्टी ने 70 में से 67 सीटें जीतकर सबको चौंका दिया था।
इतनी बड़ी जीत के बाद उम्मीद की जा रही थी कि केजरीवाल अपने शपथ ग्रहण समारोह के बहाने विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिश करेंगे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। केजरीवाल के शपथ समारोह में कोई भी बड़ा विपक्षी नेता नहीं पहुंचे थे। अब एक बार फिर 2020 में भी केजरीवाल ने अपने शपथ ग्रहण समारोह के मंच पर किसी भी विपक्षी नेता को जगह नहीं दी है।
केजरीवाल भले ही अपने मंच पर बीजेपी विरोधी पार्टियों को जगह देने से परहेज करते रहे हैं, लेकिन वह खुद विपक्षी दलों के साथ मंच साझा करते रहे हैं। 2015 में बिहार में लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी और नीतीश की पार्टी मिलकर सत्ता में आई थी। नीतीश के शपथ ग्रहण समारोह में केजरीवाल बतौर सीएम पहुंचे थे। इस दौरान मंच पर भ्रष्टाचार के मामले में फंसे लालू से उनकी मुलाकात काफी सुर्खियां बनी थी। इसके अलावा केजरीवाल कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में संजय सिंह कोप्रतिनिधि के रूप में भी भेज चुके हैं।
बड़ा सवाल यह है कि अपने शपथ ग्रहण समारोहों में विपक्षी दलों के नेताओं को नहीं बुलाकर केजरीवाल क्या संदेश देना चाहते हैं। केजरीवाल के हालिया राजनीतिक फैसलों पर नजर डालें तो पता चलता है कि कई मौकों पर उन्होंने विपक्ष के दूसरे दलों से अलग जाकर स्टैंड लिया है। जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने पर जहां कांग्रेस सहित कई विपक्षी दल बीजेपी के खिलाफ मुखर रही है, लेकिन केजरीवाल इनसे अलग गए और इस मुद्दे पर मोदी सरकार का समर्थन किया था।
इस बार के दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) का विरोध करने वालों के खिलाफ खूब हल्ला बोला। बीजेपी ने शाहीन बाग के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। बीजेपी की ओर लाख उकसाने के बावजूद केजरीवाल नहीं डगमगाए और इन मुद्दों पर कभी भी कुछ भी खुलकर नहीं बोले।
चुनाव प्रचार के दौरान जब केंद्र सरकार ने अध्योध्या में राम मंदिर निर्माण के ट्रस्ट बनाने का घोषणा की तो जहां कांग्रेस ने इसपर सवाल उठाए, वहीं केजरीवाल ने कहा कि अच्छे कामों के लिए कोई वक्त नहीं होता है। इसके अलावा चुनाव में खुद को राम भक्त बताने वाली बीजेपी से मुकाबले के लिए केजरीवाल बार-बार हनुमान मंदिर तस्वीरें क्लिक करवाते देखे गए।
बीजेपी ने जब केजरीवा के लिए आतंकवादी शब्द का प्रयोग किया तो उन्होंने खुद को कट्टर देशभक्त बताया था। उनके इन सारे फैसलों से स्पष्ट है कि वह अन्य विपक्षी दलों की तरह सेक्युलरिज्म की बात करने के बजाय सॉफ्ट हिंदुत्व का मैसेज दे रहे हैं।