कांग्रेस में नई जान फूंकने की कोशिश, क्या प्रियंका कर पाएंगी करिश्मा?
नई दिल्ली
कांग्रेस पार्टी को देश की आजादी के आंदोलन से जोड़कर देखा जाता है. वह पार्टी, जिससे आजादी के बाद शुरुआती दशकों में लोगों की आस्था जुड़ी रही और दशकों तक कांग्रेस ने देश में सरकार चलाई. वही कांग्रेस आज अपनी स्थापना के बाद सबसे कठिन दौर से गुजर रही है. पूरब से लेकर पश्चिम और उत्तर से लेकर दक्षिण जिस कांग्रेस का कभी एकछत्र राज था, वही कांग्रेस आज चंद राज्यों तक सिमट कर रह गई है.
जिस कांग्रेस के सामने कभी कोई सियासी पार्टी सिर तक नहीं उठा पाती थी, आज वह खुद कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों की बैसाखी पर निर्भर हो चली है. एक के बाद एक हार से बेजार लगभग मृतप्राय हो चुकी कांग्रेस ने साल 2019 के आम चुनाव से पहले सियासत में नेहरू- गांधी परिवार की प्रियंका गांधी को लॉन्च किया. कांग्रेस में नई जान फूंकने की कोशिश कर रही प्रियंका आज 48 साल की हो गईं.
कभी पार्टी का गढ़ रहे, लेकिन अब सबसे कठिन उत्तर प्रदेश की सियासत में प्रियंका गांधी खासी सक्रिय भी हैं. नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ आंदोलन के दौरान लखनऊ में गिरफ्तार पूर्व आईपीएस एसआर दारापुरी और कांग्रेस कार्यकर्ता सदफ जाफरी से मुलाकात के लिए लखनऊ में स्कूटी पर सवार होकर उनके घर जाना हो, या विरोध के दौरान मारे गए लोगों के परिजनों से मिलने उनका दर्द बांटना. प्रियंका जमीन पर उतरी हैं और उनकी कोशिश पार्टी के तेवर को धार देने की रही है.
प्रियंका को शायद इसी मकसद के साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया है. वह लगातार लोगों के बीच जा रही हैं और कांग्रेस के लिए यूपी में जमीन तैयार कर रही हैं. सोनिया गांधी हों या राहुल गांधी, गांधी परिवार के किसी भी नेता को हाल के दिनों में इतना एक्टिव नहीं देखा गया है. माना जा रहा है कि यूपी विधानसभा चुनावों से पहले वह पार्टी कार्यकर्ताओं को एकजुट कर अपने दम कांग्रेस को चुनाव लड़ाना चाहती हैं. हालांकि उनके सामने चुनौती सिर्फ विरोधियों की नहीं बल्कि संगठन को धार देने की भी है.
प्रियंका यूपी की योगी सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ रहीं, साथ ही उनका ध्यान संगठन पर भी है. उन्होंने यूपी में पार्टी का सांगठनिक ढांचा ही बदलकर रख दिया है. जमीनी नेताओं में गिने जाने वाले अजय कुमार लल्लू को प्रदेश अध्यक्ष बनाया और कार्यकर्ताओं से भी संवाद किया. पिछले कुछ महीनों में प्रियंका की सक्रियता में एसी रूम पॉलिटिक्स की बन चुकी इमेज को तोड़कर पार्टी को सड़क और आम जनता के बीच लेकर गई हैं. प्रियंका की यह कोशिश कितना रंग लाती है, यह देखने वाली बात होगी.