क्या छात्रों के बीच उपजा गुस्सा बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकता है?
नई दिल्ली
अलग-अलग शिक्षण संस्थाओं के परिसर इस वक्त छात्रों की नाराजगी से उबल रहे हैं। उनकी नाराजगी फिलवक्त सीएए या एनआरसी को लेकर नहीं है। सीएए और एनआरसी के विरोध में दिल्ली के जामिया विश्वविद्यालय से शुरुआत तो हुई थी लेकिन इस बीच हुई हिंसा और उससे निपटने को पुलिस की कार्रवाई ने छात्रों के बीच आंदोलन का मुद्दा ही बदल दिया। सीएए और एनआरसी की जगह 'छात्रों के खिलाफ पुलिस दमन' के मुद्दे ने ले ली और इसी मुद्दे ने छात्रों को एकजुट किया।
देश के अलग-अलग हिस्सों से लेकर विदेश तक के शिक्षण संस्थाओं के छात्र जामिया विश्वविद्यालय के छात्रों पर पुलिस की 'बर्बर' कार्रवाई के विरोध में आगे आते दिखे। अभी यह मुद्दा पूरी तरह से ठंडा भी नहीं हो पाया था कि दिल्ली में जेएनयू में फिर एक बड़ी घटना हो गई। संयोग यह कि इस घटनाक्रम में भी कहीं 'धर्म' का छौंका नहीं लगने पाया, जिसकी वजह से एक बार फिर देश से लेकर दुनिया के अलग-अलग शिक्षण संस्थाओं के छात्रों को जेएनयू के छात्रों के साथ अपनी प्रतिबद्धता दिखाने का मौका मिल गया।
ऐसे में यह तर्क बेमानी हो जाता है कि समग्रता में छात्रों के बीच कोई 'अशांति' नहीं है बल्कि खास विचारधारा वाले कुछ शिक्षण संस्थाओं में ही 'अशांति' है और जिसे कुछ राजनीतिक दल 'हवा' दे रहे हैं।
बीजेपी को क्यों करनी चाहिए चिंता
दरअसल धारणा का बहुत ज्यादा महत्व होता है। पहले जामिया और उसके बाद जेएनयू के छात्रों के साथ घटित घटना से छात्रों के बीच यह धारणा बनती दिख रही है कि 'सरकारी मशीनरी दमन पर उतर आई है और सरकार स्टूडेंट्स को सुनना ही नहीं चाहती। भिन्न विचारधारा का होने का मतलब दमन के जरिए कुचलना नहीं हो सकता। किसी एक कैम्पस में अगर ऐसा हो सकता है तो यही घटना किसी दूसरे कैम्पस में भी दोहराई जा सकती है।' इसी धारणा ने देश के अलग-अलग शिक्षण संस्थाओं के छात्रों को जामिया और जेएनयू के छात्रों के पक्ष में एकजुट होने और सरकार के खिलाफ गुस्सा पनपने का मौका दिया है।
2014 में फर्स्ट टाइम वोटरों ने निभाई थी अहम भूमिका
बीजेपी के लिए इसी वजह से चिंता करने की जरूरत बनती है। 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की 'विजय यात्रा' में शिक्षण संस्थाओं में पढ़ रहे 18+ आयु वर्ग वाले वोटर्स ने बड़ी भूमिका निभाई थी। इस आयु वर्ग के वोटर्स में देश में कुछ नया देखने की ललक थी और उसे लग रहा था कि नरेंद्र मोदी उसके सपनों को साकार कर सकते हैं। इस आयु वर्ग के वोटर्स के बीच मोदी को लेकर जिस तरह की दीवानगी थी, वह पहले कभी किसी और नेता के प्रति नहीं देखी गई थी। यह सिलसिला अनवरत जारी रहा, जिसकी बदौलत ही 2019 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व ने बीजेपी ने 2014 के मुकाबले कहीं बड़ी कामयाबी दर्ज की।
छात्र अपने को अन्य नेताओं के मुकाबले नरेंद्र मोदी से कहीं ज्यादा 'कनेक्ट' पाते रहे और उनके विजन के भी कायल होते गए। विदेशों में भी नरेंद्र मोदी के प्रति दीवानगी की हद पार करने वालों में भारतीय मूल के इसी आयु वर्ग के छात्रों की तादाद सबसे ज्यादा है। लेकिन अगर छात्रों को यह लगने लग जाए कि उनकी कम्युनिटी (छात्र बिरादरी) की सुनवाई बंद हो गई है तो फिर उनका मोहभंग होना स्वाभाविक है और अगर ऐसा होता है तो फिर उसका नुकसान तो बीजेपी को उठाना ही पड़ सकता है। स्टूडेंट्स कम्युनिटी का सपोर्ट किसी भी पॉलिटिकल पार्टी के लिए बेहद अहम होता है और भारत में जब इस वक्त पूरी दुनिया के मुकाबले सबसे ज्यादा तादाद यंग वोटर्स की ही हो तो फिर उनकी महत्ता को समझने के लिए किसी और तर्क की जरूरत नहीं रह जाती है।
नुकसान का खतरा बढ़ा
पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई के बेहद करीबी रहे सुधींद्र कुलकर्णी भी कहते हैं कि हाल के तमाम घटनाक्रम में छात्रों की जिस तरह की प्रतिक्रिया देखने को मिली है, वह यह संकेत देने के लिए काफी है कि वे नरेंद्र मोदी, बीजेपी और केंद्र सरकार से निराश भी हैं और गुस्से में भी हैं। 2014 से लेकर 2019 तक के चुनावों में यह वर्ग बीजेपी का सबसे बड़ा समर्थक समूह था। अगर कोई यह कहता है कि छात्र नाराज नहीं हैं या प्रायोजित तौर पर नाराजगी दिखाने की कोशिश की जा रही है तो यह एक तरह से सच पर पर्दा डालना हुआ। छात्र सिर्फ इसलिए आंदोलित नहीं हैं कि उनके कैम्पस में उनके साथ बर्बरता पूर्वक कार्रवाई की गई बल्कि वह उससे पहले सरकार के स्तर पर सीएए/एनआरसी को लेकर जो फैसला हुआ, उससे भी सहमत नहीं हैं। यही वजह है कि देश के अलग-अलग हिस्सों में इस मुद्दे पर जो भी आंदोलन हुए, उसमें सबसे अहम भागीदारी इसी वर्ग की रही है।
सरकार भी चौकन्ना
जेएनयू के घटना के बाद छात्रों की नाराजगी बढ़ने से रोकने के लिए ही सरकार तेजी से प्रतिक्रिया करती दिखी। देश के गृह मंत्री अमित शाह ने अधिकारियों से तुरन्त रिपोर्ट मांगी। एचआरडी मिनिस्टर डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने भी ट्वीट कर JNU हिंसा पर चिंता जताई।