हर बार हारा है झारखंड का मुख्यमंत्री, रघुवर दास के सामने रिकॉर्ड तोड़ने की चुनौती
रांची
बतौर मुख्यमंत्री रघुवर दास के सामने आज उस तिलिस्म को तोड़ने की चुनौती है, जिसे पिछले 19 सालों में झारखंड का कोई पूर्व मुख्यमंत्री नहीं तोड़ सका है. झारखंड में लोगों का मिजाज कुछ ऐसा रहा है कि जो नेता भी सीएम की कुर्सी पर विराजमान रहा, उसे कभी न कभी चुनाव में जनता ने हार का स्वाद चखाया है. अब तक राज्य का कोई भूतपूर्व सीएम इस रिकॉर्ड को तोड़ नहीं पाया है. इसलिए रघुवर दास के सामने इस मिथक को तोड़ने की चुनौती है. बता दें कि जब रघुवर दास सीएम नहीं थे तो 2014 में वे जमशेदपुर पूर्व सीट से लगभग 70 हजार वोटों से विधानसभा चुनाव जीते थे.
19 साल में 6 मुख्यमंत्री
झारखंड बने 19 साल गुजर चुके हैं. इस दौरान 3 बार विधानसभा चुनाव हुए और अस्थिरता के दौर से गुजरे झारखंड में 6 राजनेता मुख्यमंत्री बने. बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, शिबू सोरेन, मधू कोड़ा, हेमंत सोरेन और रघुवर दास को झारखंड का सीएम बनने का सौभाग्य मिला है. इस बार चौथी बार झारखंड विधानसभा के लिए चुनाव हो रहा है. जब 15 नवंबर 2000 को झारखंड का गठन हुआ था तो उस समय अविभाजित बिहार के विधानसभा चुनाव में जीते सदस्यों के सहारे ही झारखंड की पहली विधानसभा का गठन हुआ था.
बारी-बारी सब हारे, शिबू पहले नंबर पर
झारखंड के सभी पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, शिबू सोरेन, मधू कोड़ा, हेमंत सोरेन विधानसभा चुनाव हार चुके हैं. शुरुआत शिबू सोरेन से करते हैं. 27 अगस्त 2008 को मधु कोड़ा ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद तत्कालीन जेएमएम सुप्रीमो शिबू सोरेन राज्य के सीएम बने.
संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक उन्हें 6 महीने में विधानसभा का सदस्य बनना था. मुख्यमंत्री रहते हुए शिबू सोरेन तमाड़ सीट से उप चुनाव में उतरे. उप चुनाव में शिबू सोरेन को झारखंड पार्टी के प्रत्याशी राजा पीटर ने 8,973 वोट से हरा दिया. राजा पीटर को जहां 34,127 मत मिला तो शिबू सोरेन को 25,154 मत से संतोष करना पड़ा. राजा पीटर इस बार फिर तमाड़ से चुनाव लड़ रहे हैं. चुनाव हारने के बाद शिबू सोरेन को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा.
2014 का चुनाव और 4 पूर्व मुख्यमंत्रियों की हार
2014 विधानसभा चुनाव झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्रियों के लिए सुनामी साबित हुआ. इस पार्टी में बीजेपी, जेवीएम, जेएमएम और जेबीएसपी से ताल्लुक रखने वाले चार पूर्व सीएम चुनाव हार गए.
2014 के विधानसभा चुनाव में झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी दो सीटों राजधनवार और गिरिडीह से चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन दोनों सीटों पर उन्हें शिकस्त का सामना करना पड़ा. गिरीडीह से बीजेपी प्रत्याशी निर्भय शाहाबादी ने बाबूलाल मरांडी को 30 हजार 980 मतों से हराया, वहीं मरांडी दूसरे विधानसभा सीट राजधनवार से माले के प्रत्याशी राजकुमार यादव से 10 हजार 712 वोटों के अंतर से हारे. इस बार भी बाबूलाल राजधनवार से चुनाव लड़ रहे हैं.
केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा झारखंड के तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं, लेकिन 2014 में खरसावां सीट से उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा था. अर्जुन मुंडा को झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रत्याशी दशरथ गागराई ने 11 हजार 966 मतों से हराया था. दशरथ गागराई को 72002 मत मिले तो अर्जुन मुंडा को 60036 वोट हासिल हुए.
पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा भी 2014 में चुनावी मैदान में उतरे थे. इस बार वे जय भारत समानता पार्टी से चाईबासा के मझगांव विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे थे. लेकिन उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा. मधु कोड़ा को झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रत्याशी नीरल पूर्ति ने 11, 710 मतों से हराया.
2014 में जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष को झारखंड का मुख्यमंत्री रहते हुए हार का मुंह देखना पड़ा. 2014 विधानसभा चुनाव में हेमंत दो विधानसभा सीट दुमका और बरहेट से झामुमो प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरे. हेमंत बरहेट सीट से तो चुनाव जीत गए, लेकिन दुमका सीट से उन्हें भारतीय जनता पार्टी की उम्मीदवार डा. लुइस मरांडी ने हरा दिया. हेमंत सोरेन इस बार एक बार फिर इन्हीं दी सीटों से अपना भाग्य आजमा रहे हैं.
रघुवर कर पाएंगे बेड़ा पार?
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्रियों का रिकॉर्ड देखें तो रघुवर दास के सामने जीत हासिल करने की विशाल चुनौती है. उनके सामने जमशेदपुर पूर्व सीट से उनके अपने ही मंत्रिमंडल के बागी नेता सरयू राय खड़े हैं. इसके अलावा कांग्रेस ने उनकी राहें मुश्किल करने के लिए पार्टी के तेज तर्रार प्रवक्ता गोपाल बल्लभ को मैदान में उतारा है.
हालांकि जमशेदपुर पूर्व सीट शहरी मतदाताओं का केंद्र रहा है और इसे बीजेपी का गढ़ माना जाता है. रघुवर दास इस सीट से 1995 से जीतते आ रहे हैं. उन्होंने लगातार 5 बार इस सीट से जीत हासिल की है, अब छठी बार वे इस सीट से भाग्य आजमा रहे हैं. रघुवर दास के सामने चुनौती न सिर्फ अपना सीट जीतने की है बल्कि बीजेपी को फिर से सत्ता में लाने की है.