November 23, 2024

भोपाल गैस कांड के 35 साल: आरोपियों का बच निकलना भी त्रासदी से कम नहीं

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भोपाल
भोपाल गैस कांड (Bhopal Gas Tragedy) के मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन (Warren Anderson) की मौत 5 साल पहले ही हो चुकी है. विश्व की इस सबसे बड़ी औद्योगिक गैस त्रासदी की एक कहानी आरोपियों के कानूनी कार्यवाही से बचने की भी है. गैस कांड के मुख्य आरोपी को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के इशारे पर राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने भगाया था. अदालत में आरोपी को भगाने के षड्यंत्र का कोई मुकदमा तो नहीं चला लेकिन जिन धाराओं में चार्जशीट दायर की गई वह यह बताने के लिए काफी है कि सरकार का नजरिया हजारों मौतों के बाद संवेदनशील नहीं था.

भोपाल गैस त्रासदी के लिए जिम्मेदार लोगों को बचाने की कवायद 3 दिसंबर से ही शुरू हो गई थी. 2 और 3 दिसंबर की मध्य रात्रि को पुराने भोपाल के सघन इलाके छोला में स्थित यूनियन कार्बाइड के कारखाने से मिक गैस का रिसाव हुआ था. 3 दिसंबर की सुबह पुराने भोपाल और नए भोपाल की सड़कों पर जगह-जगह लाशें पड़ी हुईं थीं. पूरी दुनिया को इस रासायनिक त्रासदी ने हिला कर रखा दिया था. यूनियन कार्बाइड के चेयरमेन वारेन एंडरसन थे. वे त्रासदी के बाद भोपाल आए भी, लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के मौखिक आदेश पर कलेक्टर मोती सिंह और पुलिस अधीक्षक स्वराज पुरी ने उन्हें सुरक्षित भोपाल से बाहर जाने दिया.

दोनों अधिकारी वारेन एंडरसन को विशेष विमान तक सरकारी वाहन से छोड़ने भी गए थे. इस पूरे मामले की जांच राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने सीबीआई से कराई थी. घटना की तीन साल तक जांच करने के बाद सीबीआई ने वारेन एंडरसन सहित यूनियन कार्बाइड के 11 अधिकारियों के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दाखिल की थी. वारेन एंडरसन को कभी भारत नहीं लाया जा सका. उसकी अनुपस्थिति में ही पूरा केस चला. जून 2010 में इस मामले में कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया. फैसले में कार्बाइड के अधिकारियों को जेल और जुर्माने की सजा सुनाई. अधिकारियों ने जुर्माना भरा और सेशन कोर्ट में अपील दायर कर दी.

इस पूरी घटना का अहम किरदार शकील अहमद कुरेशी था. शकील अहमद को भी कोर्ट ने दो साल की सजा सुनाई थी. शकील अहमद कौन है और कैसा दिखता है, यह आज भी रहस्य है. शकील अहमद को 35 साल बाद भी सीबीआई तलाश नहीं कर पाई है. उसकी फोटो भी सीबीआई के पास नहीं है. एक तरह से देखा जाए तो विश्व की इस भीषण गैस त्रासदी के गुनाहगारों के जेल जाने की संभावनाएं लगभग समाप्त हो चुकी हैं. वारेन एंडरसन की मौत चार साल पहले ही अमेरिका में हो चुकी है. निचली अदालत ने जिन्हें सजा सुनाई है, उन्होंने अपील कर अपने आपको जेल जाने से बचा लिया है. अपील का फैसला आठ साल में भी नहीं आ पाया है. सीबीआई ने इस मामले में गुनाहगारों की सजा बढ़ाने की अपील सेशन कोर्ट में दायर की है.

भोपाल में 3 दिसंबर को गैस कांड की बसरी मनाई जाती है. सेंट्रल लाइब्रेरी में सर्वधर्म सभा होती है. भोपाल के सभी सरकारी कार्यालय भी बंद रहते हैं. 35 साल से यह परंपरा चल रही है. इन 35 सालों में कई गैर सरकारी संगठनों ने मुआवजे की लड़ाई अमेरिका तक में जाकर लड़ी. एंडरसन को भारत लाए जाने की मांग को लेकर भी अदालती कार्यवाही हुई. लेकिन, कोई भी सरकार एंडरसन को भारत नहीं ला सकी. सरकारी आकंड़ों के अनुसार इस घटना में पंद्रह हजार से अधिक लोग मारे गए थे. गैर सरकारी आंकड़े इससे काफी अधिक बताया जाता है. इतनी बड़ी संख्या में हुईं मौतों के जिम्मेदार लोगों को कानून कोई बड़ी सजा नहीं दे पाया. इसकी मुख्य वजह मामूली धाराओं में केस दर्ज करना रहा है.

भोपाल गैस कांड के समय कलेक्टर रहे मोती सिंह ने अपनी किताब भोपाल गैस त्रासदी का सच में उस सच को भी उजागर किया, जिसके चलते वारेन एंडरसन को भोपाल से जमानत देकर भगाया गया. मोती सिंह ने अपनी किताब में पूरे घटनाक्रम का उल्लेख करते हुए लिखा कि वारेन एंडरसन को अर्जुन सिंह के आदेश पर छोड़ा गया था. वारेन एंडरसन के खिलाफ पहली FIR गैर जमानती धाराओं में दर्ज की गई थी. इसके बाद भी उन्हें जमानत देकर छोड़ा गया. शकील अहमद कुरेशी के बारे में कोई नहीं जानता. कुरेशी एमआईसी प्रोडक्शन यूनिट में ऑपरेटर था. कुरेशी के सामने न आने से पूरी घटना का खुलासा नहीं हो सका है.

भोपाल गैस दुर्घटना के आरोपियों को सजा दिलाने के बजाए सरकार की दिलचस्पी पीड़ितों के लिए कार्बाइड कंपनी से मुआवजा वसूल करने में ज्यादा रही है. जब भी भोपाल में आरोपियों को कानून से बचाने को लेकर हल्ला मचा सरकार बचाव में मुआवजे की बात करने लगती है. वर्ष 1989 में हुए समझौते के तहत यूनियन कार्बाइड ने 705 करोड़ रुपए का मुआवजा पीड़ितों के लिए मध्यप्रदेश सरकार को दिया था. इस समझौते के लगभग 21 साल बाद केंद्र सरकार ने एक विशेष अनुमति याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर कर 7728 करोड़ रुपए के मुआवजे का दावा किया. याचिका मंजूर हो गई पर सुनवाई शुरू नहीं हुई.

यूनियन कार्बाइड एक बहुराष्ट्रीय कंपनी थी. बाद में इसका विलय डाव केमिकल कंपनी, (यू.एस.ए.) में हो गया. अगस्त 2017 से डाव केमिकल कंपनी, (यू.एस.ए.) का ई.आई डुपोंट डी नीमोर एंड कंपनी के साथ विलय हो जाने के बाद यह अब डाव-डुपोंट के अधीन है. मौजूदा हालात में मुआवजा भी बढ़ सकेगा इसकी भी संभावना कम है. आरोपियों के खिलाफ फौजदारी मुकदमे दो स्तरों पर चल रहे हैं. पहला तीन भगोड़े आरोपियों के खिलाफ और दूसरा उन 9 आरोपियों के खिलाफ जो भोपाल के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सी.जे.एम.) के समक्ष हाजिर हुए थे.

जून 2010 के आदेश और फैसले के तहत सी.जे.एम. ने इन 8 आरोपियों (एक अब मृत है) पर भारतीय दंड संहिता की धारा 304-ए, 336, 337 और 338 के तहत सजा सुनाई है. अदालत में चल रहे मामलों की गति काफी धीमी है. भोपाल गैस त्रासदी पीड़ित महिला उद्योग संगठन, भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉरमेशन एंड एक्शन गैस त्रासदी प्रभावितों की कानूनी लड़ाई लगातार लड़ रहे हैं.

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