राम जन्मभूमि का योगी फैक्टर; कैसे आंदोलन के इतिहास से जुड़ा है गोरखधाम
नई दिल्ली
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर शनिवार को सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आ चुका है. अयोध्या में यह विवाद दशकों से चला आ रहा था. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई में पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने फैसला सुनाते हुए विवादित जमीन रामलला को सौंप दी है. जबकि मुस्लिम पक्ष को अलग स्थान पर जगह देने के लिए कहा गया है. यानी सुन्नी वफ्फ बोर्ड को कोर्ट ने अयोध्या में ही अलग जगह 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही सरकार को एक नया ट्रस्ट बनाने का भी आदेश दिया है जिसे वह जमीन मंदिर निर्माण के लिए दी जाएगी.
इस पूरे मामले में एक बात और है जो गौर करने लायक है. अयोध्या विवाद की पूरी टाइम लाइन पर गौर करें तो यह बात उभर कर सामने आती है कि राम जन्मभूमि मामले में जब भी कोई महत्वपूर्ण घटना घटी है उसका संबंध गोरखनाथ मंदिर से जुड़ा रहा है. गोरखनाथ मठ की तीन पीढ़ियां राम मंदिर आंदोलन से जुड़ी रही हैं.
यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ फिलहाल गोरखनाथ मठ के महंत हैं . इसी मठ ने अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन की शुरुआत की थी. और काफी समय तक आंदोलन का केन्द्र बिंदु रहा. महंत दिग्विजय नाथ का इस आंदोलन में खास योगदान रहा है. दिग्विजय नाथ के निधन के बाद उनके शिष्य महंत अवैद्यनाथ ने आंदोलन को आगे बढ़ाया.
इस विवाद का सबसे अहम पड़ाव 23 दिसंबर 1949 की सुबह को आता है जब बाबरी मस्जिद के मुख्य गुंबद के ठीक नीचे वाले कमरे में रामलला की मूर्तियां प्रकट हुई थीं. इसे ही उस वक्त रामलला का प्रकटीकरण माना गया था. बताया जाता है कि 22/23 दिसंबर 1949 की रात रामलला की मूर्तियां रामचबूतरा से उठाकर मस्जिद के भीतरी हिस्से में रखी गई थीं . विवादित ढांचे में जब रामलला का प्रकटीकरण हुआ उस दौरान वहां गोरखनाथ मंदिर के तत्कालीन महंत दिग्विजयनाथ कुछ साधु-संतों के साथ वहां कीर्तन कर रहे थे.
इसके बाद 29 दिसंबर 1949 को विवादित जमीन पर कोर्ट के आदेश से ताला लगा दिया था और इमारत एक रिसीवर को सौंप दी गई थी जिसे रामलला की पूजा की जिम्मेदारी दी गई थी. विवाद में अगला अहम पड़ाव है 1986… जब एक स्थानीय वकील और पत्रकार उमेश चंद्र पांडेय की अपील पर फैजाबाद के तत्कालीन जिला जज कृष्णमोहन पांडेय ने 1 फरवरी 1986 को विवादित परिसर का ताला खोलने का आदेश पारित कर दिया. इस आदेश का बहुत विरोध हुआ मुस्लिम पैरोकारों ने इसे एकतरफा फैसला बताया था. जब वह ताला खोला गया उस वक्त गोरखनाथ मंदिर के तत्कालीन महंत अवैद्यनाथ वहां मौजूद थे.
9 नवंबर 2019 को जब सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर अपना ऐतिहासिक फैसला दिया और विवादित जमीन रामलला को सौंपने की बात कही तब गोरखनाथ के मौजूदा महंत योगी आदित्यनाथ सूबे की सत्ता चला रहे हैं. आपको बता दें कि अपने गुरू की तरह ही योगी आदित्यनाथ भी मंदिर आंदोलन को लेकर काफी मुखर रहे हैं. लेकिन मुख्यमंत्री जैसा जिम्मेदार और संवैधानिक पद मिलने के बाद उनका नजरिया थोड़ा बदल गया और वे मर्यादाओं में रहने की बात करते रहे. हालांकि उनका फोकस अयोध्या पर लगातार बना रहा और उसी का परिणाम है कि अयोध्या में तमाम योजनाओं के साथ-साथ दीप प्रज्वलन का विश्व रिकॉर्ड भी बनाया गया. साथ ही सरयू तट पर भगवान राम की भव्य मूर्ति बनाने का प्रोजेक्ट भी उन्होंने शुरू कराया.