November 25, 2024

3 साल बाद भी कुछ नहीं सुधरा, मास्टर प्लान फाइलों में दफन

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भोपाल
मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के बहुचर्चित भोपाल सेंट्रल जेल ब्रेक (bhopal central jail break)को तीन साल बीत गए. खंडवा (khandwa) जेल ब्रेक उससे पहले और हाल ही में नीमच (neemuch) में जेल ब्रेक हुई. उसके बाद भी प्रदेश में जेलों की सुरक्षा व्यवस्था (Security system) में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया गया है. सरकार मास्टर प्लान बना चुकी है, लेकिन वो कहीं फाइलों में दफन है.

तीन साल पहले भोपाल में जब सेंट्रल जेल तोड़कर सिमी के आतंकी भागे तो तत्कालीन बीजेपी सरकार ने घटना के बाद कई दावे किए थे. लेकिन सभी दावे खोखले साबित हुए.इधर नई सरकार भी सुरक्षा के मद्देनजर कुछ खास नहीं कर सकी.

30 और 31 अक्टूबर 2016 की दरम्यानी रात आठ सिमी आतंकी भोपाल केंद्रीय जेल के प्रहरी रमाशंकर यादव की हत्या कर भाग गए थे.31 अक्टूबर को पुलिस ने आठों को मुठभेड़ में मार गिराया था.घटना की जांच रिटायर्ड जस्टिस एस के पांडेय की अध्यक्षता में गठित आयोग ने की. आयोग ने पुलिस को क्लीन चिट देते हुए जेलों की सुरक्षा में बदलाव के कई सुझाव दिए थे. उसके बाद तत्कालीन सरकार ने प्रदेशों की जेल की सुरक्षा को लेकर तमाम दावे और वादे किए थे.जेल मुख्यालय में बदलाव किया गया था.लेकिन जमीनी हकीकत किसी से छुपी नहीं है.

इधर, नई सरकार ने भी जेल ब्रेक की घटना की जांच नए सिरे से कराने की बात कही थी. भोपाल सेंट्रल जेल में बरसों बाद अब इलेक्ट्रॉनिक फेंसिंग लगी है. लेकिन प्रदेश की बाकी जेलों में सुरक्षा की स्थिति जस की तस बनी हुई है. हैरत की बात ये है कि जेल ब्रेक के बाद गठित कमेटी की रिपोर्ट सरकार के पास धूल खा रही है.रिपोर्ट में पूरे पांच साल का मास्टर प्लान तैयार किया गया था. जिसके तहत सरकार से 10 करोड़ रुपए शुरूवात में मिलना थे और हर साल सुरक्षा के लिए चार करोड़ का बजट था.

जेलों की सुरक्षा का मास्टर प्लान
1-सिक्युरिटी ऑडिट रिपोर्ट: रिपोर्ट तैयार करने के लिए तिहाड़ जेल, गुजरात की जेल, महाराष्ट्र की जेल, नागपुर की जेल समेत देश की दूसरी जेलों का निरीक्षण और सर्वे किया गया था.जेलों की सुरक्षा में इलेक्ट्रॉनिक फेंसिंग, सीसीटीवी कैमरों में वृद्धि, बल वृद्धि, अंडाकार सेल का निर्माण, हथियारों की उपलब्धता, दीवारों की ऊंचाई बढ़ाना, अष्ट कोण और वॉच टॉवर बनाना सहित सुरक्षा के दूसरे संसाधनों से जुड़ी कई सिफारिशें शामिल हैं.

2-प्रशासनिक ऑडिट रिपोर्ट: रिपोर्ट में जेलों के प्रशासनिक ढांचे में सुधार और बदलाव के लिए सिफारिश भी की गई. इसमें जेल का कैडर रिव्यू सबसे बड़ी सिफारिश है.इसके साथ ही वेतन विसंगतियां, प्रमोशन समेत प्रशासनिक कामकाज से जुड़ी कई सिफारिशें शामिल हैं.

जेल डीजी संजय चौधरी के नेतृत्व में जेलों की सुरक्षा और प्रशासनिक ढांचे को लेकर एडीजी सुधीर शाही और एडीजी जीआर मीणा की कमेटी ने देशभर की जेलों का सर्वे किया था.कमेटी में आईबी, सीआईएसएफ, पुलिस समेत दूसरी सुरक्षा एजेंसियों के अधिकारी भी थे.इन दोनों ऑडिट रिपोर्ट में कई सिफारिशें की गयीं और एक पूरा मास्टर प्लान तैयार कर तत्कालीन सरकार को सौंपा गया था.ये प्लान बीजेपी के बाद कांग्रेस सरकार में भी धूल खा रहा है.

प्रदेश के गृहमंत्री बाला बच्चन जेलों की सुरक्षा के तमाम दावें कर रहे हैं.लेकिन यह दावे पिछली सरकार की तरह ही साबित हो रहे हैं.उन्होंने भी जेल की व्यवस्था ऐसी करने की बात कही कि फिर कभी जेल ब्रेक की घटना नहीं होगी.

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