ईएसजेड पर मुख्य सचिव मोहंती ने किया सवाल, नहीं मिला संतोषजनक जवाब तो संभागायुक्तों को लगाई फटकार
भोपाल
प्रदेश के वन्य प्राणी अभ्यारण्य और राष्टय उद्यानों के बफर जोन के बाद ईको सेंसटिव जोन का दायरा 15 से 20 किलोमीटर किए जाने पर मुख्य सचिव एसआर मोहंती ने सभी संभागायुक्तों को फटकार लगाई है। मंत्रालय में प्रदेश के सभी संभागों के कमिश्नरों और वन विभाग के आला अधिकारियों को इस संबंध में बुलाया गया था। मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई बैठक में जब उन्होंने यह पूछा कि बफर जोन के बाद 15 से 20 किलोमीटर का ईको सेंसिटिव जोन (ईएसजेड) बनाने से विकास कार्यों पर कितना प्रभाव पड़ेगा? इस पर संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर मुख्य सचिव ने संभागायुक्तों को फटकार लगाई।
दरअसल करीब दो साल पहले इप्को ने पर्यावरण संबंधित दृÞष्टिकोण रखते हुए ईएसजेड की कल्पना की थी और करीब 18 ईएसजेड के नोटिफिकेशन भी जारी कर दिए गए। जिसके चलते सिंचाई जैसी महत्वपूर्ण परियोजना भी अटक गई और स्थानीय लोगों को भी विस्थापित किया जा रहा है। इसे लेकर सीएस ने जब अधिकारियों से यह जानना चाहा कि इस कल्पना से सारे विकास कार्य प्रभावित हो रहे हैं, क्यों न इसका दायरा कम किया जाए। इस पर इंदौर संभाग के कमिश्नर आकाश त्रिपाठी ने कहा कि यदि हम इस दायरे को मानते हैं तो इंदौर स्थिति कलेक्टर, कमिश्नर आॅफिस समेत हाईवे दायरे में आ जाएंगे।
मुख्य सचिव एसआर मोहंती ने ईको सेंसटिव जोन के निर्माण की अनुमति दिए जाने और इसके लिए बनने वाले मास्टर प्लान को तय करने के लिए सभी संभागायुक्त, सीसीएफ और वन विभाग के अफसरों की बैठक बुलाई थी। बैठक में मुख्य सचिव ने कमिश्नरों पर भारी नाराजगी जताई कि ईएसजेड के लिए बिना सोचे-समझे कैसे अनुमति दे दी गई। यदि प्रतिबंध का दायरा पंद्रह किलोमीटर किया गया तो आधे मध्यप्रदेश में विकास कार्य रुक जाएंगे। यहां रहने वाले लाखों ग्रामीणों को दिक्कत हो जाएगी। उनका जीवन यापन इन्हीं वन संपदा पर निर्भर है, उन्हें यहां से हटाया गया तो उनके समक्ष जीवन यापन की दिक्कत आ जाएगी। इंदौर कमिश्नर आकाश त्रिपाठी ने कहा कि ऐसा करने पर उनके संभाग का आधा क्षेत्र प्रतिबंध के दायरे में आ जाएगा।
प्रदेश में कान्हा, माधव , पन्ना सहित 21 स्थानों पर वन्य प्राणी अभ्यारण्य और राष्टÑीय उद्यान है। फारेस्ट कंजर्वेशन एक्ट के तहत इनके आसपास इको सेंसटिव जोन बनाए जाने है।
इको सेंसटिव जोन बनने के बाद इसमें इन क्षेत्रों के पंद्रह किलोमीटर के दायरे में औद्योगिक और पर्यटन गतिविधियों सहित मानव हस्तक्षेप को प्रतिबंधित किया जाना है। इन क्षेत्रों में प्रदूषण फै लाने वाले उद्योग भी नहीं लगाए जा सकेंगे। इसके पीछे केन्द्र सरकार की धारणा यह है कि जंगलों की वन संपदा और वन्य प्राणियों का संरक्षण करने के लिए प्रतिबंधित क्षेत्र का दायरा बढ़ाया जाना है।
वन्य प्राणियों और प्राकृतिक संपदा के संरक्षण के लिए सिचाई,सड़क, विकास कार्य और यहां रहने वाले ग्रामीणों के हित प्रभावित नहीं होना चाहिए। मुख्य सचिव ने कहा कि फिलहाल प्रतिबंधित क्षेत्र का दायरा पंद्रह की बजाय दो किलोमीटर रखा जाए। इसके गुण-दोषों का अध्ययन करने के बाद इस पर काम किया जाए।