बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए गर्म सलाखों से दागा जाता है
उमरिया
बच्चों को बीमारी और कुपोषण (Malnutrition) से बचाने के लिए समय-समय पर (Doctors)से परामर्श और अच्छे खानपान की जरूरत होती है. लेकिन उमरिया (Umaria) जिले में आज भी ऐसी कुप्रथा (Malpractice) कायम है कि यहां शून्य से छह वर्ष तक के बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए लोहे की गर्म सलाखों से दागा जाता है.
पिछले साल दीवाली (Diwali) में इस तरह के कई मामले सामने आये थे. इस साल ऐसा ना हो इसके लिए कलेक्टर ने इलाके में धारा 144 (Section 144) लगाकर सख्ती बरतने के आदेश दिये हैं. साथ ही सरपंचों को पत्र लिखकर इस कुप्रथा को रोकने की अपील की है.
मासूम बच्चों के पेट, पैर और गले मे गर्म सलाखों से दागने की ये भयावह तस्वीरें मध्यप्रदेश के उस आदिवासी अंचल की है जंहा दुनिया भर के लोग बाघ दर्शन (Tiger sighting) के लिए जाते हैं. तस्वीरें उमरिया जिले के बांधवगढ़ की हैं, जो महिला बाल विकास विभाग के द्वारा जुटाई गई हैं. विभाग ने इस तरह की करीब साढ़े 6 सौ तस्वीरें जुटाई हैं. जो ग्रामीण इलाके में फैली कुप्रथाओं की एक बानगी भर हैं.
कमजोरी और पेट बढ़ने की समस्या से भी छुटकारा मिलता है. कुछ लोग इसे टोटका मानकर करते हैं. तो कुछ अपनी पुरानी परंपरा को कायम रखने में बच्चों के साथ अमानवीय कृत्य करने में संकोच नहीं करते. यह पूरा अंधविश्वास का खेल त्योहारों के समय खासकर दीवाली में करना शुभ माना जाता है. जानकार इसे स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के साथ जागरूकता के आभाव से जोड़कर भी देखते है.
जिले के कलेक्टर ने आंकड़ो के सामने आते ही कुप्रथा को जड़ से उखाड फेंकने का बीड़ा उठाया है. इसके लिए उन्होंने कई सख्त कदम उठाए हैं. जिन्हें तत्काल लागू भी कर दिया गया है. जिले के कलेक्टर स्वरोचिष सोमवंशी ने कहा कि दीवाली का पर्व एक बार फिर सामने है. ऐसे में मासूम बच्चों के साथ हैवानियत के खेल को रोकना होगा.
बता दें कि शून्य से 06 साल के बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण को लेकर कई राष्ट्रीय कार्यक्रम संचालित हैं बावजूद इसके आदिवासी अंचलों में इस तरह की कुप्रथाएं कायम रहना हमारे सिस्टम पर सवाल खड़े करती हैं, जररूत है ईमानदारी से सरकारी योजनाओं की निगरानी कि जिससे लोगों में अंधविश्वास से मोह भंग हो सके.