आज इमरान, तो कभी मुशर्रफ की नाक में भी किया था दम, कौन हैं मौलाना फजलुर रहमान
नई दिल्ली
पाकिस्तान में एक कहावत पुरानी है कि अगर आपको सत्ता में आना या रहना है तो सिर पर 'अल्लाह-आर्मी और अमेरिका' का वरदहस्त जरूरी है. संकट में घिरे पाकिस्तान में आजकल ये तीनों फैक्टर क्रिकेटर से राजनेता और फिर प्रधानमंत्री बने इमरान खान के खिलाफ जाते दिख रहे हैं. अर्थव्यवस्था से लेकर विदेश नीति के मोर्चे पर इमरान खान चौतरफा चित हैं तो सेना प्रमुख बाजवा पैरलल सरकार चलाकर ये संकेत दे चुके हैं कि सैन्य तख्तापलट की बस औपचारिकता भर बाकी है. तो वहीं अमेरिका भी चीन के प्रति पाकिस्तानी झुकाव के चलते कोई खुश नहीं है और पिछले कुछ सालों में तमाम तरह के बैन लगा चुका है. लेकिन इन सबके बीच इमरान सरकार पर सबसे बड़ी मार पड़ी है 'मौलाना फैक्टर' की.
हम बात कर रहे हैं मौलाना फजलुर रहमान की. 66 साल के मौलाना ने इसी महीने इस्लामाबाद अर्थव्यवस्था से लेकर विदेश नीति के मोर्चे पर इमरान खान चौतरफा चित्त हैं तो सेना प्रमुख बाजवा पैरलल सरकार चलाकर ये संकेत दे चुके हैं कि सैन्य तख्तापलट की बस औपचारिकता भर बाकी है. तो वहीं अमेरिका भी चीन के प्रति पाकिस्तानी झुकाव के चलते कोई खुश नहीं है और पिछले कुछ सालों में तमाम तरह के बैन लगा चुका है. आजादी मार्च का ऐलान कर दिया है. और तबतक जारी रखने का ऐलान किया है जबतक इमरान खान सरकार को उखाड़ नहीं फेंकते. मौलाना के इस आजादी मार्च को पीएमएल-एन, पीपीपी, मुस्लिम लीग-नून समेत तमाम दलों का समर्थन मिल रहा है. क्योंकि महंगाई से त्रस्त पाकिस्तान की जनता में इमरान खान को लेकर जारी असंतोष को भुनाने का बड़ा मौका इसमें दिख रहा है.
कौन हैं मौलाना फजलुर रहमान?
मौलाना फजलुर रहमान पाकिस्तान की सबसे बड़ी धार्मिक पार्टी और सुन्नी कट्टरपंथी दल जमिअत उलेमा-ए-इस्लाम (जेयूआई-एफ) के चीफ हैं. उनके पिता खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के सीएम रह चुके हैं. वहां की सियासत में उनके परिवार का खासा प्रभाव रहा है. मौलाना पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में नेता विपक्ष भी रह चुके हैं. वे संसद में विदेश नीति पर स्टैंडिंग कमेटी के चीफ, कश्मीर कमेटी के मुखिया रह चुके हैं. वे तालिबान समर्थक माने जाते हैं लेकिन पिछले कुछ साल से उदारवादी होने का दावा करते हैं. इसके अलावा 2018 के चुनाव के बाद इमरान को सत्ता में आने से रोकने के लिए साझा पहल कर सुर्खियों में आए थे. पिछले साल राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की ओर से उम्मीदवार भी थे. सत्ता में नहीं रहते हुए भी नवाज शरीफ की सरकार ने मौलाना को केंद्रीय मंत्री का दर्जा दे रखा था.
धार्मिक कार्ड और तालिबान कनेक्शन
मौलाना का धार्मिक कार्ड सबसे मजबूत रहा है. वे खुले तौर पर देश की सबसे बड़ी धार्मिक पार्टी चलाते हैं. कभी तालिबान के खिलाफ अमेरिकी अभियान को इस्लाम विरोधी बताकर वे जेहाद का ऐलान किया करते थे. पहली बार 1988 में जब बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनी थीं तो मौलाना ने एक महिला के देश की अगुवाई करने के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. हालांकि बाद में बेनजीर भुट्टो से मुलाकात के बाद मौलाना ने अपना विरोध वापस ले लिया था.
मुशर्रफ के खिलाफ सीक्रेट डिनर
मुशर्रफ के शासन काल में भी मौलाना फजलुर रहमान हमेशा विरोध का झंडा बुलंद किए रहे. 2001 में अमेरिका में हुए 9/11 के हमले के बाद जब पाकिस्तान को मजबूरन तालिबान के खिलाफ अमेरिकी ऑपरेशन में साथ होना पड़ा तो मौलाना ने मुशर्रफ के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. जॉर्ज बुश के खिलाफ जेहाद का ऐलान कर पाकिस्तान के कई शहरों में तालिबान के पक्ष में रैलियां की. परवेज मुशर्रफ ने तब मौलाना को नजरबंद भी करवा दिया था.
बाद में अमेरिकी केबल्स लीक से हुए खुलासों से ये बात भी सामने आई कि 2007 में मुशर्रफ की सत्ता को उखाड़ फेंकने के अपने प्लान के तहत मौलाना ने अमेरिकी राजदूत को सीक्रेट डिनर पर बुलाकर पीएम बनने के लिए अमेरिकी समर्थन मांगा था. डिनर में मौलाना ने ऑफर किया था कि तालिबान का समर्थन छोड़ वे पाकिस्तान का पीएम बनना चाहते हैं और अमेरिका की यात्रा करना चाहते हैं. ये वो दौर था जब मुशर्रफ की सत्ता कमजोर हो रही थी और सियासी पटल पर तमाम दल अपने लिए जगह बनाने की कोशिश कर रहे थे. तब मौलाना ने अमेरिकी समर्थन हासिल कर सत्ता पर कब्जे का सीक्रेट प्लान बनाया था.
इमरान से रार क्यों?
2018 के जिन चुनावों में बिना बहुमत हासिल किए सेना की रहम पर इमरान खान सत्ता में आ गए उन चुनावों को मौलाना फजलुर रहमान धांधली वाला चुनाव बताते हैं. चुनाव के समय से ही मौलाना ने इमरान खान के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. पहले साझा विपक्षी सरकार बनाने की कोशिश, फिर राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी गोलबंदी और अब आजादी मार्च का ऐलान… मौलाना एक तरफ जहां एक साल में पाकिस्तान में नासूर बन चुके आर्थिक संकट का कारण इमरान खान की नीतियों को बताते हैं वहीं नए सिरे से चुनाव कराकर नई सरकार के गठन की मांग पर अड़े हुए हैं.