इंदौर के ‘आंखफोड़वा कांड’ में बड़ा एक्शन, आई हॉस्पिटल से वसूले जाएंगे 68 करोड़ रुपए
इंदौर
मध्य प्रदेश के मिनी मुंबई माने जाने वाले इंदौर शहर (Indore City) के 'आंखफोड़वा कांड' में सरकार ने सख्ती दिखाते हुए आई हॉस्पिटल (Eye Hospital) से 68 करोड़ रुपए की वसूली की निर्देश दिए हैं. साथ ही सात दिनों में अस्पताल का कब्जा लेने का आदेश भी जिला कलेक्टर लोकेश जाटव (District Collector Lokesh Jatav) ने तहसीलदार मल्हारगंज को दिया है. आपको बता दें कि इंदौर आई हॉस्पिटल में मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद 15 लोगों की आंखों की रोशनी चली गई थी जिसके बाद 17 अगस्त को अस्पताल को सील कर दिया गया था.
इंदौर के आई हॉस्पिटल में मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद 15 लोगों की आंखों की रोशनी चली जाने के मामले में कलेक्टर लोकेश जाटव ने अस्पताल की जमीन का आवंटन निरस्त कर दिया है. साथ ही कलेक्टर ने सात दिन के अंदर अस्पताल का कब्जा लेने के निर्देश दिए हैं. इसके अलावा अस्पताल का 68 करोड़ का लीज रेंट भी ब्याज समेत वसूला जाएगा. अस्पताल ने आवंटित जमीन से ज्यादा पर कब्जा कर रखा था. इसलिए अतिक्रमण का केस भी दर्ज कराया जाएगा.
जिला प्रशासन ने अस्पताल को आवंटित जमीन की फाइल खंगाली तो पता चला कि 1971 में सरकार ने सर्वे नंबर 827/1 की करीब 75075 वर्गफीट जमीन इंदौर आई हास्पिटल को आवंटित की थी. अस्पताल ने लीज की प्रक्रिया पूरी किए बिना ही अग्रिम कब्जा लेकर निर्माण कार्य कर लिया, तब से किसी ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया. अब अस्पताल को कब्जे में लेने के आदेश हुए तब अस्पताल के लीज रेंट, भू भाटक और प्रीमियम की ब्याज समेत गणना की गई जो करीब 68 करोड़ रुपए है जिसे अब अस्पताल प्रबंधन से वसूला जाएगा.
आई हॉस्पिटल के मामले में पुलिस ने एफआईआर दर्ज होने के एक महिने बाद कार्रवाई शुरू की है. इस मामले में सीएमएचओ डॉक्टर प्रवीण जड़िया ने कहा कि अस्पताल के डायरेक्टर डॉक्टर सुधीर महाशब्दे और अधीक्षक डॉक्टर सुहास बांडे ने ड्यूटी पर रहते हुए घटना के बारे में अधिकारियों को तत्काल सूचना नहीं दी. इसके साथ ही और दूसरे बिंदुओं पर बयान लेकर जांच में शामिल किया है. इसके अलावा पीढ़ितों से भी पुलिस पूछताछ करेगी.
इंदौर के आई हॉस्पिटल में 5 से 8 अगस्त के दौरान हुए मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद 15 मरीजों की आंखों की रोशनी चली गई थी. इसके बाद हडकंप मच गया था. 17 अगस्त को अस्पताल की लापरवाही सामने आने के बाद सरकार ने आनन फानन में अस्पताल को सील कर दिया था और अस्पताल का लाइसेंस निरस्त कर दिया था. मरीजों का इलाज चेन्नई के शंकर नेत्रालय और इंदौर के चोइथराम नेत्र चिकित्सालय में कराया गया, जिसके बाद मरीजों की हालत में सुधार हुआ था.