जीवन को एक नई दिशा देने में गुरु का योगदान सर्वप्रथम :दी सोसाइटी ऑफ इंटेलिजेंस टेक्नोलॉजी करेगी गुरु पूर्णिमा वृक्षारोपण:राकेश
जोगी एक्सप्रेस
शहडोल धनपुरी ,दी सोसाइटी ऑफ इंटेलिजेंस टेक्नोलॉजी के प्रदेश अध्यक्ष राकेश कुमार सोनी ने गुरु पूर्णिमा के अवसर पर समस्त प्रदेश वासियों को बधाई देते हुए गुरु पूर्णिमा के बारे में उलेख करते हुए बताया की दी सोसाइटी ऑफ इंटेलिजेंस टेक्नोलॉजी के पर्यावरण के प्रति जनमानस को चेतना देने हेतु नर्मदा स्वरूप मीरा माता कपिल धारा अमरकंटक से वृक्षारोपण की शुरुवात आज से कर रही है! रोजमर्रा की जरुरतो के लिए पौधे रोपणी की शुरवात हो रही ,जिसमे नील गिरी ,काला सीरस ,शीशम .नीबू , शीतफल .का प्रमुख रूप से है। यह पर्व आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को बड़े उल्लास एवं उत्साह से मनाया जाता है। इसी दिन गुरुओं के गुरु संत शिरोमणि महर्षि वेद व्यास जी का अवतरण हुआ था। इसी कारण गुरु पूर्णिमा को ‘व्यास पूर्णिमा’ भी कहा जाता है। जिस आसन पर बैठकर संत, महापुरुष अथवा आचार्य अपने शिष्यों को आशीष वचन देते हैं उस आसन को व्यास गद्दी कहा जाता है। गुरुओं की पूजा के कारण ही इस पर्व को गुरु पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। गुरु पूजन की यह प्रथा अनादि काल से चली आ रही है।ऐसी मान्यता है कि इसी दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन वेद व्यास का जन्म हुआ था। कहा जाता है कि उन्होंने ही चारों वेदों को लिपिबद्ध किया था। इसी वजह से उन्हें वेद व्यास के नाम से जाना गया। उनके सम्मान में कई जगह गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। आज के दिन श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। मथुरा जाकर गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा लगाते हैं। साधु सिर मुंडाकर गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं, ब्रज में इसे मुड़िया पूनों नाम से जाना जाता है।हमेशा की तरह से इस बार भी आषाढ़ मास की शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जा रहा है। हिंदू शास्त्रों के मुताबिक आज के दिन ही महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास जन्मे थे। इन्होंने ने ही चारों वेदों को लिपिबद्ध किया था। इसलिए आज के दिन को व्यास पूजा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन गुरु की पूजा करने से ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति का अहसास होता है।
जीवन को एक नई दिशा देने में गुरु का ही योगदान होता है।
श्री राकेश ने आगे बताया की माता पिता के बाद जीवन में अगर किसी का स्थान होता है वह गुरु ही होता है। माता पिता बच्चे को जन्म देकर इस संसार में लाते है। वहीं गुरु बच्चे को शिष्य रूप में संसार से रूबरू कराता है। संसार का सही ज्ञान बताता है। जीवन को एक नई दिशा देने में गुरु का ही योगदान होता है। ऐसे में गुरु का पूजन तो हर दिन होना जरूरी होता है। यह हर दिन पूज्यनीय होते हैं लेकिन आषाण मास की पूर्णिमा गुरु पूर्णिमा के नाम से ही जानी जाती है।ऐसे में इस दिन गुरु की पूजा व उनका सम्मान करना बहुत जरूरी होता है। गुरु पूर्णिमा गुरु के प्रति सिर झुकाकर उनके प्रति आभार व्यक्त करने का दिन है। इस दिन गुरु के चरण छूकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना भाग्यवान बनाता है क्योंकि भारतीय परम्परा में गुरु को गोविंद से भी ऊंचा यानी कि भगवान से भी ऊंचा माना जाता है।