November 22, 2024

छत्तीसगढ़ के बैजनपाठ, लुल्ह, भुण्डा व तेलाईपाठ:में शासकीय योजनाओं की उडती धज्जी अधिकारी देख रहे तमाशा

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बैजनपाठ, लुल्ह, भुण्डा व तेलाईपाठ:में शासकीय  योजनाओं की उडती धज्जी

वन विभाग के फरमान ने शासकिय योजनाओं के किया कोसो दूर

शासकिय योजनाओं की अनोखी कहानी  महामहिम राष्ट्रपति के दत्तक पुत्रों की जुबानी
जोगी एक्सप्रेस 
सूरजपुर-  जिले के दुरस्थ अंचल क्षेत्र चांदनी बिहारपुर जो प्रशासनिक लापरवाहियों का हमेशा से जीता  जागता प्रमाण रहा है इस क्षेत्र में शासकिय योजनायें तो हमेशा पाहुंचती रही है परंतु उन योजनाओं के क्रियान्वयन में प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही के कारण वहाँ जनकल्याणकारी योजनाऐं धरी की धरी रह जाती है , प्रशासनिक लापरवाही का ऐसा ही एक मामला  ग्राम पंचायत खोहिर के अंतर्गत आने वाले बैजनपाठ, लुल्ह, भुण्डा व तेलाईपाठ का है जहाँ पिछले कई दशक से तेंदू पत्ता नहीं तोड़ा जा सका है, जिससे उक्त गांवों में लोगो को शासन की छोटी-छोटी योजनाओं का लाभ नही मिल पाने से यहाँ बेरोजगारी ने अपने पैर पासार दिये है , उक्त गांवों का क्षेत्र गुरूघासीदास राष्ट्रीय वन उद्यान बैकुण्ठपुर, कोरिया के अधिनस्थ आता है तथा रिजर्व जंगल होने के कारण वन विभाग द्वारा तेंदू पत्ता ना तोड़ने का फरमान यहाँ के ग्रामिणो लिए जारी किया गया है । विदित हो कि बैजनपाठ, लुल्ह, भुण्डा एवम् तेलाईपाठ  मे मूलतः आदिवासियों पण्डो  किसानों निवास करते है, यह जनजातियाँ यहाँ कई दशकों से निवास कर रही हैं । ये लोग मुख्य रूप से जंगल पर ही निर्भर होकर तेंदू,चार,महुआ,डोरी, साल बिज आदि से अपना जीवन-यापन करते हैं । इसके अलावा एक रोजगार इनका तेंदू पत्ता है । जिससे प्रतिवर्ष इन लोगों का इंतजार होता है कि इस वर्ष तेंदू पत्ता बेंचकर कुछ लाभ कमाऐंगे । उक्त गांव पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश के सीमा पर एवम् एकदम ऊंची पहाड़ी पर बसा हुआ है। जहां कृषि मे बरसात की फसल जैसे:- मक्का,कोदो-कुटकी,अरहर आदि, बरसात बढ़िया हुआ तो केवल सीजन भर खाने के लिए मिल जाता है।बांकी दुसरी फसल जैसेः- गेंहू,जौ, चना अलसी आलू  आदि, बारिश की कमी व सिंचाई का साधन ना होने के कारण नहीं मिल पाता है।
इस वजह से उक्त ग्रामीणों का जंगल पर निर्भर रहना जरूरी हो जाता है। जंगल से मिले तेंदू,चार,महुआ आदि को ही बेंचकर रोजमर्रा की वस्तुऐं– खाने के लिए चावल, दाल, सब्जी, तेल , मसाला आदि लाते हैं।
ग्रामीणों द्वारा बताया जाता है कि हम सभी जंगल से मिलने वाले वस्तुओं के सहारे ही दुकानों से खाने के लिए एक वर्ष के लिए उधार ले आते हैं और अगले वर्ष महुआ,तेंदू,चार आदि को बेंचकर कर्जा चुकाते हैं।
ग्रामीणों द्वारा मौखिक मे यह मांग कलेक्टर महोदय से भी मंगा   किया गया है  हमे भी तेंदू पत्ता का लाभ दिया जाए ताकि शासन की छोटी-छोटी योजनाओं का लाभ हमे भी मिल सके।  ग्रामीणों ने कहा हमारी मांग पूरी नहीं हुई तो हम भूख हड़ताल एवं उग्र  आंदोलन भी करेंगे

ब्यूरो अजय तिवारी की रिपोर्ट 

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