कोई लौटा दे वो प्यारे प्यारे दिन
जोगी एक्सप्रेस
नसरीन अशरफ़ी
बचपन के दिन भी कितने सुहाने होते है यादो के भवर को यदि कुछ साल पीछे ले जाते है तो पता चलता था की अरे हमने ये भी किया . कुछ साल पीछे चले जाते है हर शाम अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने के लिए उतावले होते थे, स्कूल से घर आते ही बैग फेंका कपड़े बदले और मम्मी की आवाज़ पीछे छोड़ते हुए चले जाते थे ,गली पर क्रिकेट खेलने खेल कर वापस घर आने पर डांट भी पड़ती थी कि कुछ खा कर जाना चाहिए था दूध पी कर जाते , आज पढ़ाई नही करना क्या इतनी देर से आते है क्या खेल कर? मगर इन सब की परवाह किये बैगर अगले दिन फिर दोस्तो के पास पहुच जाते थे स्कूल में भी यही हाल था हर बच्चा अच्छा हो या खराब कुछ न कुछ खेलता था खेल के पीरियड का बेसब्री से इंतेज़ार करता था पढ़ने में हीरो का रोल मैदान में पहुचते ही कोई और ले लेता था और इस तरह स्कूल घर मे सम्पूर्णता का अहसास होता था
गर्मी की छुटियों में जब रिस्तेदारों के घर लंबे समय के लिए जाते थे या हमारे घर रिस्तेदार आते थे तो खुली हवा में आंगन में रोड पर तरह तरह के खेल खेला करते थे लडकिया चबूतरे पर बैठ कर गोटिया खेला करती थी घर के बड़े बुजुर्ग घर के बाहर कुर्सियां लगा कर खुकुछ साल पीछे चले जाते है हर शाम अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने के लिए उतावले होते थे, स्कूल से घर आते ही बैग फेंका कपड़े बदले और मम्मी की आवाज़ पीछे छोड़ते हुए चले जाते थे ,गली पर क्रिकेट खेलने खेल कर वापस घर आने पर डांट भी पड़ती थी कि कुछ खा कर जाना चाहिए था दूध पी कर जाते , आज पढ़ाई नही करना क्या इतनी देर से आते है क्या खेल कर? मगर इन सब की परवाह किये बैगर अगले दिन फिर दोस्तो के पास पहुच जाते थे स्कूल में भी यही हाल था हर बच्चा अच्छा हो या खराब कुछ न कुछ खेलता था खेल केली हवा में अपनी अपनी बाते किया करते थे न गर्मी का डर न ए सी की जरूरत घड़े का पानी इतना स्वादिष्ट होता था कि गर्मी में रेत पर चार घड़े रखते थे और बारी बारी से पानी पिया जाता था कही ले जाना होता तो सुराही में कपड़ा लपेट कर ले जाया जाता था लेकिन अब सुराही की जगह कूल केग ने ले लिया
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आज के दिनों में हमारी जरूरते बदल गई आदतें बदल गई नज़रिया बदल गया है पारवारिक समय व्यवसाय नौकरी इतनी भाग दौड़ की जिंदगी में समय ही नही रहता बच्चे का संपर्क दोस्तो से महज पार्टीयो तक सीमित रह गया है पार्टीया भी घर मे न हो कर होटल या डिस्को में होने लगी है
पहले माँ के खाने की चर्चा हुआ करती थी,अब होटल के खाने की होने लगी हमने खाने को महत्वपूर्ण समझा और बेहतर खाने के हिसाब से होटल चुना बच्चो को खाने में प्यार होटल नही परोस सकता ।।
सूना पड़ा है कई दिनों से घर के पास का मैदान, कोई मोबाईल बच्चोँ की गेंद चुरा कर ले गया
हर किसी को अपना बचपन याद आता है।हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़ के चोरी से आम खाना ,खेत से गन्ना उखड कर गन्ना चुसना और खेत के मालिक के आने पर नौ दो ग्यारह हो जाना हर किसी को याद है जिसने अपने बचपन में आम नहीं चुराया गन्ना चुरा कर नहीं खाया वो अपना बचपन क्या खाक जिया है चोरी और चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूट बोलना बचपन की यादो में शुमार है बचपन से पचपन तक का अनोखा संसार है
कुछ साल पीछे चले जाते है हर शाम अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने के लिए उतावले होते थे, स्कूल से घर आते ही बैग फेंका कपड़े बदले और मम्मी की आवाज़ पीछे छोड़ते हुए चले जाते थे ,गली पर क्रिकेट खेलने खेल कर वापस घर आने पर डांट भी पड़ती थी कि कुछ खा कर जाना चाहिए था दूध पी कर जाते , आज पढ़ाई नही करना क्या इतनी देर से आते है क्या खेल कर? मगर इन सब की परवाह किये बैगर अगले दिन फिर दोस्तो के पास पहुच जाते थे स्कूल में भी यही हाल था हर बच्चा अच्छा हो या खराब कुछ न कुछ खेलता था खेल के पीरियड का बेसब्री से इंतेज़ार करता था पढ़ने में हीरो का रोल मैदान में पहुचते ही कोई और ले लेता था और इस तरह स्कूल घर मे सम्पूर्णता का अहसास होता था
गर्मी की छुटियों में जब रिस्तेदारों के घर लंबे समय के लिए जाते थे या हमारे घर रिस्तेदार आते थे तो खुली हवा में आंगन में रोड पर तरह तरह के खेल खेला करते थे लडकिया चबूतरे पर बैठ कर गोटिया खेला करती थी घर के बड़े बुजुर्ग घर के बाहर कुर्सियां ल
आज बच्चे स्कूल से आते ही स्कूल बैग रख कर टीवी या मोबाईल में बीजी हो जाते है न बाहर जाना न दोस्तों से मिलना न मैदान न खेल सिर्फ कंप्यूटर लेप टॉप टीवी और स्मार्ट फ़ोन में ही व्यस्थ हो जाते है किसी तरह से हमने सारी जिमेदारियो से किनारा कर अपनने बच्चों को मैदान से दूर कर दिया है