जजों की नियुक्ति पर सरकार और न्यायपालिका आमने सामने
नई दिल्ली। न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर न्यायपालिका और सरकार के बीच चल रहा परोक्ष टकराव शुक्रवार को खुल कर सामने आ गया। दोनों उच्च न्यायालयों में जजों के खाली पड़े पदों के लिए एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराते नजर आए। जहां सुप्रीम कोर्ट ने जजों की नियुक्त की कोलीजियम की सिफारिश लंबित रखने पर सरकार से सवाल किया तो वहीं सरकार की पैरोकारी कर रहे अटार्नी जनरल ने पलट कर जवाब दिया कि कोलीजियम भी रिक्तियों के अनुपात में कम नामों की सिफारिश करती है, उसे भी एडवांस में सिफारिश करनी चाहिए। अगर कोलीजियम की सिफारिश ही नहीं होगी तो कुछ नहीं किया जा सकता।
सरकार और न्यायपालिका के बीच ये खुला वाद विवाद शुक्रवार को न्यायमूर्ति मदन बी. लोकूर और दीपक गुप्ता की अदालत में उस समय हुआ जब उत्तर पूर्वी राज्यो के उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की कमी और जजों के खाली पड़े पदों का मामला उठा।
अभी जस्टिस केएम जोसेफ की सुप्रीम कोर्ट प्रोन्नति का मामला ठंडा नहीं पड़ा है। सरकार ने उन्हें सुप्रीम कोर्ट प्रोन्नत करने की कोलीजियम की सिफारिश पुनर्विचार के लिए वापस कर दी है। गत बुधवार को कोलीजियम उस पर पुनर्विचार के लिए बैठी भी थी। लेकिन फैसला आगे के लिए टाल दिया गया। जस्टिस मदन बी लोकूर कोलीजियम के सदस्य हैं। कोलीजियम के न्यायाधीश पहले भी सरकार के सिफारिशें दबाकर बैठ जाने के रवैये पर मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिख कर ऐतराज जता चुके हैं। हालांकि मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर के सेवानिवृत होने के बाद ये पहला मौका था जब कोर्ट ने न्यायिक छोर से जजों की नियुक्ति की कोलीजियम की सिफारिशों का सरकार से खुली अदालत में हिसाब मांगा है।
शुक्रवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल से कहा कि बताओ कोलीजियम से भेजे गए कितने नामों की सिफारिश सरकार के पास लंबित है। वेणुगोपाल ने कहा कि उन्हें इस बारे में पता करना होगा। कोर्ट का पलट जवाब था कि जब बात सरकार पर आती है तो कहा जाता है कि पता करेंगे। वेणुगोपाल ने कहा कि कोलीजियम को भी व्यापक नजरिया रखना चाहिए। उसे एडवांस में ज्यादा नामों की सिफारिश भेजनी चाहिए। कुछ उच्च न्यायालयों में 40 रिक्तियां हैं जबकि कोलिजियम ने मात्र 3-4 नामों की सिफारिश की है, और कहा जाता है कि सरकार रिक्तियां भरने में सुस्ती दिखा रही है।