भारतीय संस्कृति का मूल आधार है, जनजाति संस्कृति- कमिश्नर
जनजातियां हमारी संास्कृतिक परंपरा की सच्ची संरक्षक- कमिश्नर
जनजातियो के जीवन से थोड़ा रंग और खूशबू लिजिए और खुशहाल रहिए- कमिश्नर
जनजाति विश्व विद्यालय अमरकंटक में आयोजित हुई संगोष्ठी
शहडोल (अविरल गौतम) कमिश्नर शहडोल सभाग राजीव शर्मा ने कहा है कि भारत की जनजातियां हमारी संस्कृति परमपंरा की सच्ची संरक्षक है। उन्होंने कहा है कि भारतीय संस्कृति का मूल आधार जनजाति संस्कृति है जिस संस्कृति केा हम जनजाति संस्कृति रेखांकित करते है वह संस्कृति, संस्कृति के महा प्रलय में बचे हुए दीपों के समान है। जनजाति संस्कृति ने हमारी भाषा, भाव वेशभूषा और भजन को संरक्षित करके रखा है। कमिश्नर ने कहा है कि हम जनजाति बंधुओं को पिछड़ा समझते है किन्तु यह सत्य नही है। उनके ज्ञान और परंपरा के आधार पर उनका ज्ञान हमसे ज्यादा है। उन्हें अपनी बीमारी का उपचार कैसा करना है? इसका ज्ञान है। कमिश्नर ने कहा कि भारत के बडे़-बड़े प्रतिष्ठित लोग आज अपना उपचार जनजाति क्षेत्रों मेें रहने वाले बैगाओं से करा रहे है, हमें जनजातियों के परंपरागत ज्ञान को संरक्षित करने की आवश्यकता है। कमिश्नर शहडेाल संभाग राजीव शर्मा आज इंदिरा गांधी विश्व विद्यालय अमरकंटक में पत्रकारिता विभाग द्वारा जनजाति समाज के परंपरागत ज्ञान की विशिष्ट पद्वतियां तथा उसका डिजीटल भारत में महत्व पर आयेाजित संगोष्ठी को सम्बोधित कर रहे थें।
कमिश्नर ने कहा कि हमारे पास हमारे डीएनए के अलावा हमारा कुछ नही है, हमारा भोजन, वेशभूषा,हमारी संस्कृति प्रदूषित हो चुकी है, हमारी भोजन, हमारी वेशभूषा तथा संस्कृति को हमारे देश की जनजातियों ने आज भी संरक्षित करके रखा है। उन्होंने कहा कि जनजातियों में दुख और सुख के समय गाने वाले संगीत और नृत्य है, जनजातियों के पास प्रकृति से जुड़े पर्व है, नवाखाई, विवाह पर्व, वर्षा के आगमन का पर्व, सावन का पर्व, फलों के पकने का पर्व है जो जनजाति वर्ग के लोग मनाते है, जनजातियों के पास खान-पान की उत्कृष्ट व्यवस्था है। जनजातियों को खान-‘पान का परंपरागत ज्ञान है। उन्होंने कहा कि आज भी बैगाओं को 400 से ज्यादा धान की प्रजातियों की जानकारी है, गोल गेंहू और काले गेंहू का ज्ञान है, जनजाति क्षेत्र में जैव विविधता संबद्व है उन्होंने कहा कि इस संबृद्वता को बचाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि जनजातियों के हजारों सालों के परपंरागत ज्ञान को डिजीटल हाथों तक पहंुचने से बचाने की आवश्यकता है, क्योंकि हजारोें साल से संरक्षित इस ज्ञान को बेचा भी जा सकता है। संगोष्ठी को प्रोफेसर राममोहन पाठक, प्रोफेसर एके शुक्ला, प्रो0 मनीषा शर्मा, प्रो0 आनंद सिंह राणा, प्रो0 दुर्गेश त्रिपाठी, स्वदेश समाचार पत्र के संपादक अतुल तारे ने भी सम्बोधित किया।