भंसाली की फिल्म ‘पद्मावत’ पर नितिन भंसाली ने किया माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत

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रायपुर ,रिलीज़ के लिए इंतजार कर रही, संजय लीला भंसाली की बहुचर्चित फिल्म ‘पद्मावत’, रिलीज होने से पहले ही विवादों में घिर गयी है और अब तो 26 कट्स के साथ ही सेंसर बोर्ड से भी पास होने के बाद माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद रिलीज होने के लिए तैयार है। कुछ भाजपा शासित राज्यों के इस फिल्म के रिलीज के विरोध के बाद आज माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने फिल्म के रिलीज करने का आदेश दे दिए हैं। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को भी आदेश दिया है वो राज्य सरकारों को फिल्म ‘पद्मावत’ की रिलीज होने में सहयोग करे। “अभिव्यक्ति की आजादी” के मुद्दे पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कड़ी टिप्पणी की है।
इस विषय पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए जनता काँग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) के प्रवक्ता नितिन भंसाली ने कहा कि जब फिल्म ‘पद्मावती’ का नाम, देश के सेंसर बोर्ड से 26 कट के साथ परिवर्तित हो कर ‘पद्मावत’ कर दिया गया है तब भाजपा शासित राज्यों में ही इस फिल्म के रिलीज होने पर विरोध पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित है। करणी सेना और राजपूत संघ द्वारा अब फिल्मों की रिलीज पर प्रतिबंध लगाने की मांग करना पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित है इसलिए केन्द्र और राज्य सरकारें भी ऐसे अलोकतांत्रिक रवैये पर चुप हैं।
नितिन भंसाली ने कहा कि अगर करणी सेना को हमारी संस्कृति और माताओं बहनों का इतना ही ख्याल है, तो उनको आए दिन होने वाले महिलाओं पर अत्याचार का विरोध करना चाहिए। उनको देश में बढ़ती बेरोजगारी पर, जातिवाद, भुखमरी पर, मंहगाई पर और देशहित के लिए अन्य जरूरी मुद्दों पर आवाज उठाने की जरूरत है, फिल्में मनोरंजन के लिए होती हैं न कि राजनीति के लिए। आगे भंसाली ने कहा कि देश में आज भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोग खुशी से रहते हैं परंतु कुछ लोग और कुछ राजनीतिक दल जात पात और संस्कृति के नाम पर अपनी राजनीतिक रोटी सेकने के लिए देश की जनता का ध्यान बेरोजगारी, मंहगाई, अशिक्षा आतंकवाद जैसे मुद्दों से भटका के इस प्रकार के मुद्दों में उलझाए रखने के लिए तत्पर रहते हैं।
जकाँछ प्रवक्ता नितिन भंसाली ने कहा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने सेंसर सर्टिफिकेट और बाकी तथ्यों की छानबीन करने के बाद ही यह निर्णय लिया है और सभी राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों और पूरे देश को इस फैसले का स्वागत करना चाहिए और जिसे विरोध करना है तो वह व्यक्ति, संस्थान या संगठन फिल्म न देख कर भी अपनी बात रख सकते हैं क्योंकि एक लोकतांत्रिक देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होती है।

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