महान जन नेता भारतरत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी के 93 जन्मदिन पर INT ग्रुप के प्रदेश अध्यक्ष राकेश सोनी दी शुभकामनाये
JOGI EXPRESS
शहडोल म.प्र .धनपुरी भारतरत्न पूर्व प्रधानमंत्री महान जन नेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी के 93 वे जन्मदिनके मौके पर दी सोसायटी ऑफ़ इंटेलिजेंस टेक्नालजी के प्रदेश अध्यक्ष राकेश सोनी ने INT ग्रुप की तरफ से समस्त देश वासियों को महान जन नेता भारत रत्न पूर्व प्रधानमत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के 93 जन्मदिन की बधाईयाँ देते हुए उनके दीर्घायु होने की कमाना की श्री सोनी ने बताया की हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण बात ये होगी की हम उनकी बातो को अपने जीवन में आत्म सात करे और उनसे मिली प्रेरण को अपने बच्चो को अवगत कराये उनकी जीवनी ,उनकी लिखी ढेरो कविताओ को बच्चो को याद करवाए ,हम स्वास्थ भारत की काल्पन उनके जन्म दिवस पर पौधा रोपण कर मनाये ,गरीबो और असहयो की मदद करे यही हमारे भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के जन्म दिवस का सर्वोतम तोहफा होगा श्री सोनी ने दो पंक्तिया इस अवसर पर कही उसके कुछ अंस हम पाठको संग साझा कर रहे
भरी दुपहरी में अंधियारा,सूरज परछाई से हारा,अंतरतम का नेह निचोड़ें.
बुझी हुई बाती सुलगाएं,आओ फिर से दीया जलाएं।हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल.वतर्मान के मोहजाल में-आने वाला कल न भुलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ,आहुति बाकी यज्ञ अधूरा,अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज़्र बनाने-नव दधीचि हड्डियां गलाएँ।आओ फिर से दिया जलाएँ
बातो ही बातो में श्री सोनी ने बताया की आज उनकी कवितायें पढ़ने का मन कर रहा है आप जब भी उनकीकविताओ को पढ़ते है इस से जीवन को आगे बढ़ने की प्रेरणा मितली है सहज ढंग और निराले अंदाज़ में जीवन जीने की जो कला माननीय पूर्व प्रधानमत्री जी ने सहजता से कविता के माध्यमो से कही यदि उनकी कही एक लाइन को भी आत्मसात कर ले तो जीवन में आने वाली सारी बाधाओं को आसानी से पार कर सकता है ये महज कविताये ही नहीं एस में उनका अनुभव भी सम्माहित है , बातो ही बातो में उनकी एक और रचना के बारे में बताना चाहूँगा “आओ मन की गाँठें खोलें” इस कविता में आपसी मतभेद को भूल कर भाई चारे की सीख मिलती है इन्ही कारणों से वो हमेशा राजनीती में उनके प्रतिद्वंदी रहे लोगो का चहेता बना देती थी , उनकी कही एस कविता में जीवन का पूरा सार है ,मै दो पंक्तिया आप के साथ सजह करना चाहता हु ,
आओ मन की गाँठें खोलें.
यमुना तट, टीले रेतीले, घास फूस का घर डंडे पर,
गोबर से लीपे आँगन में, तुलसी का बिरवा, घंटी स्वर.
माँ के मुँह से रामायण के दोहे चौपाई रस घोलें,
आओ मन की गाँठें खोलें.बाबा की बैठक में बिछी चटाई बाहर रखे खड़ाऊँ,
मिलने वालों के मन में असमंजस, जाऊं या ना जाऊं,
माथे तिलक, आंख पर ऐनक, पोथी खुली स्वंय से बोलें,
आओ मन की गाँठें खोलें