नए चुनावों से जर्मन राष्ट्रपति का इनकार

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jogi express

बर्लिन : जर्मनी के राष्ट्रपति फ्रांक वाल्टर श्टाइनमायर ने फिलहाल नए चुनावों से इनकार किया है. गठबंधन वार्ता नाकाम होने के बाद राष्ट्रपति ने कहा कि पार्टियां अपना राजनीतिक कर्तव्य निभाएं.जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने राजधानी बर्लिन में राष्ट्रपति फ्रांक वाल्टर श्टाइनमायर से मुलाकात की. मुलाकात के बाद राष्ट्रपति ने कहा कि राजनीतिक दलों को सक्षम सरकार चलाने के लिए जरूरी बहुमत जुटाने पर काम करना चाहिए. राष्ट्रपति ने कहा, “मैं उम्मीद करता हूं कि निकट भविष्य में पार्टियां नयी सरकार बनाएंगी.” राष्ट्रपति के मुताबिक सरकार बनाने की जिम्मेदारी राजनीतिक दलों की है, जिसे वे जनता पर नहीं लाद सकते.अगर जर्मनी में बहुमत वाला गठबंधन नहीं बनेगा तो राष्ट्रपति के पास दो विकल्प होंगे. पहला विकल्प होगा अल्पमत वाली सरकार. वह संसद की मंजूरी के लिए सबसे बड़ी पार्टी के नेता का नाम चांसलर पद के लिए प्रस्तावित करेंगे. लेकिन अगर तीन राउंड की वोटिंग के बाद भी कोई टिकाऊ सरकार नहीं बनीं तो राष्ट्रपति को नए चुनावों का एलान करना पड़ेगा.राष्ट्रपति इस स्थिति को टालना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि वे अलग अलग पार्टियों के नेताओं ने बातचीत करेंगे और एक समझौते तक पहुंचने की कोशिश करेंगे. लेकिन जर्मन राजनीति के परिदृश्य को देखें तो ऐसा समझौता बहुत कठिन लगता है.जर्मनी में 24 सितंबर को चुनाव हुआ था और 25 सितंबर को नतीजे आए. किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला. चांसलर अंगेला मैर्केल की पार्टी सीडीयू और उसकी सहोदर पार्टी सीएसयू को भारी नुकसान हुआ. पिछली सरकार में शामिल सोशलिस्ट पार्टी एसपीडी को भी करारा झटका लगा. वहीं पर्यावरण के मुद्दे उठाने वाली ग्रीन पार्टी और कारोबार के प्रति उदार एफडीपी को हल्का लाभ हुआ. सबसे ज्यादा फायदा अति दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी को हुआ. एएफडी का उभार जर्मन राजनीति के लिए चिंता का विषय है. इसे रोकने के लिए सीडीयू, ग्रीन पार्टी और एफडीपी ने गठबंधन की संभावनाएं तलाशने वाली वार्ता शुरू की, लेकिन करीब एक महीने की वार्ता नाकाम रही. एफडीपी और ग्रीन पार्टी कई मुद्दों पर पूरब और पश्चिम की तरह हैं. इन्हें साथ लाना आसान नहीं रहा. रविवार को आखिरकार एफडीपी ने गठबंधन वार्ता से बाहर आने का एलान किया.दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी को लगता है कि अगर अभी चुनाव कराए जाएं तो उसे फायदा होगा. दूसरे राजनीतिक विश्लेषक भी ऐसी ही चिंता जता रहे हैं.

(साभार : Deutsche Welle )

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