घुटने नहीं टेकेगी शिवसेना, BJP को पुलिस-पैसे से बनानी पड़ेगी सरकार: संजय राउत

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मुंबई
शिवसेना ने एक बार फिर से बीजेपी पर निशाना साधा है. नई गठबंधन सरकार के गठन में सीएम पद को लेकर जारी खींचतान पर शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में बीजेपी पर गंभीर आरोप लगाए हैं. शिवसेना ने लिखा कि बीजेपी को ईडी, पुलिस, पैसा, धाक के दम पर अन्य पार्टियों के विधायक तोड़कर सरकार बनानी पड़ेगी.

"महाराष्ट्र का चुनाव परिणाम स्पष्ट है. भारतीय जनता पार्टी को 105 सीटें मिलीं. शिवसेना साथ नहीं होती तो यह आंकड़ा 75 के पार नहीं गया होता. ‘युति’ थी इसलिए गति मिली. ‘युति’ थी तब इसे कितनी सीटें मिली इसकी बजाय चुनाव से पहले ‘युति’ करते समय क्या करार हुआ था, वो महत्वपूर्ण है. शिवसेना को 56 सीटें मिलीं लेकिन श्री फडणवीस पहले निर्धारित शर्तों के अनुरूप शिवसेना को ढाई साल मुख्यमंत्री पद देने को तैयार नहीं हैं. पदों का समान बंटवारा ऐसा रिकॉर्ड पर बोले जाने का सबूत होने के बावजूद बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस पलटी मारते हैं और पुलिस, सीबीआई, ईडी, आयकर विभाग की मदद से सरकार बनाने के लिए हाथ की सफाई दिखा रहे हैं. ये लोकतंत्र का कौन-सा उदाहरण है?"

"इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया उस दिन को काला दिन कहकर संबोधित करने वाले ऐसे क्यों बन गए हैं. इस पर हैरानी होती है. 24 तारीख को चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद उसी दिन मुख्यमंत्री फडणवीस को बड़े अभिमान से ‘मातोश्री’ में जाकर पहले चर्चा शुरू करनी चाहिए थी. वातावरण तनावपूर्ण नहीं हुआ होता लेकिन 105 कमलों का हार मतलब अमरपट्टा कौन इसे छीनेगा? वर्ष 2014 की तरह शिवसेना तमाम शर्तें मान लेगी, सभी इस भ्रम में रहे. इस भ्रम को उद्धव ठाकरे ने पहले 8 घंटों में दूर कर दिया. वर्ष 2014 में शिवसेना सत्ता में शामिल हुई. अब शिवसेना वो जल्दबाजी नहीं दिखाएगी तथा घुटने टेकने नहीं जाएगी, ऐसी नीति उन्होंने अपनाई तथा व्यर्थ चर्चा का दरवाजा बंद कर दिया."

"‘शिवसेना के बगैर बहुमत होगा तो सरकार बना लो, मुख्यमंत्री बन जाओ!’ यह सीधा संदेश श्री उद्धव ठाकरे ने दिया. श्री देवेंद्र फडणवीस के लिए आज पार्टी में कोई विरोधी अथवा मुख्यमंत्री पद का दावेदार शेष नहीं है. यह एक अजीबोगरीब संयोग है. श्री गोपीनाथ मुंडे आज होते तो महाराष्ट्र का दृश्य अलग दिखा होता तथा मुंडे मुख्यमंत्री बन ही गए होते तो युति में आज जैसी कटुता नहीं दिखी होती. श्री मुंडे का निधन हो गया. एकनाथ खडसे को पहले ही हाशिए पर डालकर खत्म कर दिया गया. इसके लिए गिरीश महाजन ने इंतजाम किया. अब ‘मुक्ताई नगर’ निर्वाचन क्षेत्र से खडसे की बेटी को भी पराजित कर दिया गया. पंकजा मुंडे पराजित हो गईं. विनोद तावड़े को घर बैठा दिया गया तथा चंद्रकांत पाटील को मुश्किलों में डाल दिया गया. फिर भी देवेंद्र फडणवीस सरकार नहीं बना सके तथा एक-एक निर्दलीय को जमा कर रहे हैं परंतु इस गुणा-गणित से 145 एकत्रित हो जाएंगे क्या?"

दांव-1: शिवसेना को छोड़कर भाजपा सबसे बड़ी पार्टी होने की हैसियत से सरकार बनाने के लिए दावा पेश कर सकती है. भाजपा के पास 105 विधायक हैं. 40 और की जरूरत पड़ेगी. यह संभव नहीं हुआ तो विश्वासमत प्रस्ताव के दौरान सरकार धाराशायी हो जाएगी और 40 हासिल करना असंभव ही दिखता है.

दांव-2: वर्ष 2014 की तरह राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी भारतीय जनता पार्टी को समर्थन देगी. राष्ट्रवादी कांग्रेस, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन में शामिल होगी, इसके बदले सुप्रिया सुले को केंद्र में तथा अजीत पवार को राज्य में पद दिया जाएगा परंतु वर्ष 2014 में की गई भयंकर भूल श्री पवार एक बार फिर करेंगे इसकी लेशमात्र भी संभावना नहीं है. पवार को भाजपा के विरोध में सफलता मिली है और महाराष्ट्र ने उन्हें सिर पर उठाया. आज वे शिखर पर हैं. उनका यश मिट्टी में मिल जाएगा.

दांव-3: बीजेपी विश्वासमत प्रस्ताव में बहुमत सिद्ध करने में नाकाम होगी तब दूसरी बड़ी पार्टी होने के नाते शिवसेना सरकार बनाने का दावा पेश करेगी. राष्ट्रवादी 54, कांग्रेस 44 तथा अन्य की मदद से बहुमत का आंकड़ा 170 तक पहुंच जाएगा. शिवसेना अपना खुद का मुख्यमंत्री बना सकेगी तथा सरकार चलाने का साहस उन्हें करना होगा. इसके लिए तीन स्वतंत्र विचारों वाली पार्टियों को समान अथवा सामंजस्य से योजना बनाकर आगे बढ़ना होगा. अटल बिहारी वाजपेयी ने जिस तरह दिल्ली में सरकार चलाई थी, उसी तरह सभी को साथ लेकर आगे बढ़ना होगा. इसी में महाराष्ट्र का हित है.

दांव-4: भारतीय जनता पार्टी तथा शिवसेना को मजबूर होकर साथ आना होगा और सरकार बनानी होगी. इसके लिए दोनों को ही चार कदम पीछे लेने पड़ेंगे. शिवसेना की मांगों पर विचार करना होगा. मुख्यमंत्री पद का विभाजन करना होगा और यही एक बेहतरीन पर्याय है परंतु अहंकार के चलते ये संभव नहीं है.

दांव-5: ईडी, पुलिस, पैसा, धाक आदि के दम पर अन्य पार्टियों के विधायक तोड़कर भाजपा को सरकार बनानी पड़ेगी. इसके लिए ईडी के एक प्रतिनिधि को मंत्रिमंडल में शामिल करना होगा परंतु दल बदलनेवालों की क्या दशा हुई, इसे मतदाताओं ने दिखा दिया. फूट डालकर बहुमत हासिल करना, मुख्यमंत्री पद पाना आसान नहीं है. इन सबसे मोदी की छवि धूमिल होगी.

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