कांग्रेस सांसद हुसैन दलवई ने शिवसेना का समर्थन करने के लिए सोनिया गांधी को लिखा पत्र

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मुंबई
महाराष्‍ट्र में बीते एक सप्ताह से सीएम पद को लेकर रस्साकशी कर रही शिवसेना और बीजेपी की तकरार के बीच अब तीसरा पक्ष भी सक्रिय होता दिख रहा है। अब तक इस पूरी कवायद से दूरी बनाकर चल रही कांग्रेस के सांसद हुसैन दलवई ने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर शिवसेना को समर्थन देने की मांग की है। इससे सूबे की राजनीति में अब एक नया मोड़ आ गया है। इससे पहले शिवसेना सांसद संजय राउत ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मुलाकात की थी। तब से ही राज्‍य में सरकार बनाने के नए समीकरणों की भी चर्चा चल रही है।

कांग्रेस के सांसद हुसैन दलवई ने शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाने का समर्थन किया है। उन्‍होंने इस संबंध में कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी भी लिखी है। दूसरी ओर, शिवसेना सांसद संजय राउत ने महाराष्ट्र में राष्‍ट्रपति शासन लगाने सबंधी बयान को लेकर एक बार फिर बीजेपी को घेरा है। सोनिया गांधी को लिखे पत्र में राज्‍यसभा सांसद हुसैन दलवई ने कहा है कि कांग्रेस को सरकार बनाने में शिवसेना का समर्थन करना चाहिए।

राष्ट्रपति चुनाव में शिवसेना के समर्थन का उधार चुकाएगी कांग्रेस?
दलवई का कहना है कि कांग्रेस के उम्मीदवार प्रतिभा पाटील और प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति बनाने में शिवसेना ने कांग्रेस का समर्थन किया था। ऐसे में अब महाराष्‍ट्र में कांग्रेस को भी शिवसेना का समर्थन करना चाहिए। बता दें कि इससे पहले शुक्रवार को महाराष्‍ट्र के वरिष्‍ठ कांग्रेस नेताओं की दिल्‍ली में पार्टी महासचिव के.सी. वेणुगोपाल संग बैठक हुई थी। बैठक के दौरान शिवसेना का समर्थन करने से कांग्रेस की सेक्युलर छवि और राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर पड़ने वाले प्रभावों पर चर्चा की गई। तबीयत खराब होने की वजह से सोनिया गांधी इस बैठक में नहीं उपस्थित रहीं।

पुराने हैं कांग्रेस-शिवसेना के रिश्ते
गौरतलब है कि कांग्रेस और शिवसेना दोनों पार्टियों की विचारधारा भले ही अलग हो, लेकिन इससे पहले भी शिवसेना ने कांग्रेस का समर्थन किया है। 2007 में शिवसेना ने राष्ट्रपति पद के चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार प्रतिभा पाटील और 2012 में प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति बनाने में कांग्रेस की मदद की थी।

शिवसेना के समर्थन से दोबारा पीएम बनी थीं इंदिरा
इससे पहले 1980 के लोकसभा चुनाव में भी शिवसेना ने कांग्रेस का साथ दिया था। उस समय बाला साहेब ठाकरे ने शिवसेना को चुनाव मैदान से बाहर रखकर इंदिरा गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस के समर्थन का फैसला किया था। तब इमर्जेंसी के बाद बनी जनता पार्टी की चौधरी चरण सिंह की अगुवाई वाली सरकार गिरने के कारण मध्यावधि चुनाव कराए जा रहे थे। कांग्रेस को समर्थन देने का फैसला शिवसेना प्रमुख ने महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री ए.आर.अंतुले से निजी ताल्लुकात और भरोसे के आधार पर लिया था। तथ्य यह है कि उस चुनाव में इंदिरा गांधी को जीत मिली और वो फिर से प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठी थीं। बाद में अंतुले भी शिवसेना के समर्थन से ही मुख्यमंत्री बने थे।

शिवसेना-बीजेपी को छोड़ आपस में बात कर रहे सभी दल: राउत
दूसरी ओर, शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादकीय लेख के बाद पार्टी के सांसद संजय राउत ने भी महाराष्‍ट्र में राष्‍ट्रपति शासन लगाने संबंधी बीजेपी नेता सुधीर मुनगंटीवार के बयान पर निशाना साधा है। राउत ने कहा, 'अगर किसी राज्य में सरकार बनाने में देरी हो रही है, और सत्तारूढ़ पार्टी के एक मंत्री का कहना है कि महाराष्ट्र में सरकार नहीं बनी तो राष्ट्रपति शासन लागू हो जाएगा, क्या यह उन विधायकों के लिए खतरा है जो चुन कर आए हैं?' एनसीपी प्रमुख शरद पवार से अपनी मुलाकात पर संजय राउत का कहना है कि महाराष्ट्र में जिस तरह की परिस्थितियां बन गई हैं, उनमें शिवसेना और बीजेपी को छोड़कर सभी राजनीतिक दल एक-दूसरे से बात कर रहे हैं।

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