छत्तीसगढ़ को हरियर करने योजनाओ पर करोडो खर्च फिर भी ISRO की तस्वीरों में लगातार घटता हुआ  वनक्षेत्र, गंभीर विषय ध्यान दे सरकार – अमित जोगी

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–            अमित जोगी ने वनक्षेत्र बचाने चार बिन्दुओ पर मुख्यमंत्री का ध्यान आकृष्ट करने लिखा पत्र

–            सरकार की हरियर छत्तीसगढ़ योजना पर उठाये सवाल

–            वन क्षेत्र की रक्षा के लिए 14 वर्षो से लंबित “छत्तीसगढ़  राज्य वन निति 2001 ” तत्काल लागु करे सरकार

जोगी एक्सप्रेस 

 

बिलासपुर छत्तीसगढ़ में घटते वनक्षेत्रो पर अमित जोगी ने चिंता व्यक्त करते हुए मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ शाशन को पत्र प्रेषित करते हुए कहा की  ISRO द्वारा जारी अंतरिक्ष से लिए गए सैटेलाईट तस्वीरों से पता चलता है कि विगत एक दशक में हमारे छत्तीसगढ़ का वनक्षेत्र तेज़ी से घटता जा रहा है। यह अत्यंत चिंतनीय है। क्योंकि सावन भर आपकी सरकार “हरिहर छत्तीसगढ़ योजना” लागू करने में व्यस्त रहेगी, इसलिए मैं इस सम्बंध में चार बिंदुओं पर आपकी सरकार का ध्यान आकृष्ट करूँगा –

(1) हरिहर छत्तीसगढ़ योजना” की उपयोगिता और भ्रष्टाचार की उच्च-स्तरीय जाँच – “हरिहर छत्तीसगढ़ योजना” में सालाना करोड़ों ख़र्च करने के बावजूद वन क्षेत्र लगातार क्यों घट रहा है, इस की जाँच होनी चाहिए। बीते वर्ष इस योजना के तहत सिर्फ कागज़ों में ही अधिकांश पौधे लगे थे। इस विषय को मैंने विधानसभा के शीत कालीन सत्र में भी उठाया था।

अत्यंत चिंता की बात है कि आपके द्वारा जिनको प्रदेश के वन मंत्री और वनोपज निगम के अध्यक्ष की जवाबदारी सौंपी गई है, उन दोनों के क्षेत्र बस्तर में हरिहर छत्तीसगढ़ योजना के अंतर्गत ₹ 18 प्रति पौधे की दर से नीलगिरी के पौधे ख़रीदे जा रहे हैं जबकि सीमावर्ती आन्ध्र प्रदेश में इन्हीं पौधों को आई.टी.सी. कम्पनी द्वारा ₹ 5 प्रति पौधे की दर से तैयार किया जाता है। इसी योजना के तहत तीन वर्ष पूर्व रायपुर के उरला – सिलतरा क्षेत्र में रोपे गए पौधे कारखानों के काले धुँए की वजह से मर गए। इस प्रकार वृक्षरोपण के नाम पर पूरे प्रदेश में अरबों-करोड़ों के भ्रष्टाचार को भी अंजाम दिया जा रहा है। इन सबकी उच्च-स्तरीय और निष्पक्ष जाँच होनी चाहिए।

(2) क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण” के नाम पर हो रही जंगल कटाई पर प्रतिबन्ध – वन क्षेत्र सिमटने का मुख्य कारण कॉम्पेन्सेटरी फॉरेस्ट्री अर्थात क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण है जिसके तहत उद्योगों और अन्य खनन कारोबारियों को वनों को काटने की छूट इस शर्त पर दी गयी है कि वे उतनी हीसंख्या के पौधे अन्य स्थान पर लगाएंगे। लेकिन छत्तीसगढ़ में कहीं पर भी इस नियम का कड़ाई से पालन नहीं किया जा रहा है।

आज प्रदेश में वैधानिक तौर पर सबसे अधिक जंगल कटाई बड़े-बड़े उद्योगों,विशेषकर खनिज-आधारित उद्योगों, द्वारा क्षतिपूर्ति वृक्षरोपणके नाम पर हो रही है, और दोष वनों में बसे लोगों पर मढ़ दिया जाता है।अगर सरकार को वनों और वनों में रहने वालों की वास्तव में चिंता है तो “क्षतिपूर्ति वृक्षरोपण“ की आड़ में बड़े-बड़े उद्योगों के द्वारा हो रही जंगल कटाई पर अगले 5 सालों तक सरकार पूरी तरह से प्रतिबंध (moratorium) लगाने का एलान करें।

 

(3) वनाधिकार अधिनियम” के समस्त लम्बित प्रकरणों का निराकरण – “वनाधिकार अधिनियम”के अंतर्गत छत्तीसगढ़ में दो लाख सेअधिक आदिवासियों के वनाधिकार पट्टो के आवेदन लम्बित हैं। छत्तीसगढ़ में एक दशक के बाद भी वनों में बसे ग़ैर-आदिवासियों से सरकार द्वारा वनाधिकार पट्टे हेतु आवेदन तक नहीं लिए जा रहे हैं जबकि इस अधिनियम के अनुसार उनको भी वनाधिकार पट्टा की उतनी ही पात्रता है। पूरे देश में छत्तीसगढ़ एकमात्र राज्य है जहाँ (घाटबिर्रा में) आदिवासियों को उनके वन अधिकार देकर सरकार द्वारा बाद में निरस्त कर दिए गए। इन सब बातों को भी मैं विधानसभा,अनुसूचित जनजाति प्राधिकरण और सरगुज़ा विकास प्राधिकरण की बैठकों में उठा चुका हूँ।

उपरोक्त परिपेक्ष में मेरा आपसे पुनः आग्रह है कि (a) वनाधिकार को मान्यता प्रधान करने प्रदेश के आदिवासियों के लम्बित आवेदनों को, और (b) ग़ैर आदिवासियों से, राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों में उचित संशोधन कर के, आवेदन प्राप्त कर उन्हें तत्काल एक मुश्त प्रशासकीय स्वीकृति देकर यहाँ बरसों से वास कर रहे सभी आदिवासी और ग़ैर-आदिवासी नागरिकों को वनों के संरक्षण की सम्पूर्ण जवाबदारी दें।

(4) छत्तीसगढ़ राज्य वन नीति 2001” का पालन – छत्तीसगढ़ के वन क्षेत्र की रक्षा के लिए तत्कालीन सरकार द्वारा वर्ष 2001 में प्रस्तावित “छत्तीसगढ़ राज्य वन नीति” के प्रावधानों को आपकी सरकार ने न तो लागू किया है, और न ही पिछले 14 सालों में उसके स्थान पर कोई नयीवन नीति बनायी है। ऐसे में आपसे निवेदन है कि छत्तीसगढ़ राज्य वन ति 2001” को लागू करने के निर्देश दें।

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