बड़ी खबर :जब संविधान प्रत्येक नागरिक को सम्मान के साथ जीने का अधिकार देता है तो कैसे उसकी जाति दर्ज की जा सकती है। हाईकोर्ट

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एफआईआर और आपराधिक मामले की जांच से जुड़े दस्तावेज में जाति दर्ज करने पर हाईकोर्ट की रोक

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा, पंजाब और यूटी चंडीगढ़ को आदेश जारी कर कहा हैं कि भविष्य में एफआईआर सहित अन्य जांच की कार्रवाई में आरोपी, पीड़ित और गवाहों की जाति दर्ज न हो।
साथ ही हाईकोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल के माध्यम से पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ के न्यायिक अधिकारियों को भी केस की सुनवाई के दौरान इस आदेश को लागू करवाने के आदेश दिए हैं। साथ ही तीनों गृह सचिवों को निर्देश दिए हैं कि हाईकोर्ट के इस आदेश के बारे में सभी जांच अधिकारियों को जानकारी दी जाए।
जस्टिस राजीव शर्मा एवं जस्टिस कुलदीप सिंह की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि जांच के दौरान जातियां दर्ज करना न सिर्फ सांविधानिक और मौलिक अधिकारों का हनन है बल्कि मानवीय अधिकारों का भी हनन है। जिन्होंने संविधान बनाया उन्हें विश्वास था कि जाति प्रथा समाप्त हो जाएगी लेकिन दुर्भाग्य है कि यह आज भी कायम है।
वैज्ञानिक, बौद्धिक, सामाजिक और तार्किक आधार होने के बावजूद यह कायम है जो हमारे संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। हाईकोर्ट ने कहा कि जब संविधान प्रत्येक नागरिक को सम्मान के साथ जीने का अधिकार देता है तो कैसे उसकी जाति दर्ज की जा सकती है।
क्या  था  मामला
2016 में भिवानी में ऑनर किलिंग के एक मामले में दोषी करार दिए 6 लोगों की अपील पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने ये आदेश दिए हैं। हाईकोर्ट ने सुबूतों के अभाव में दोषियों को बरी करते हुए ट्रायल कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया है। लेकिन इस केस की सुनवाई के दौरान यह सामने आया था कि पुलिस ने इस मामले में दर्ज एफआईआर सहित सीआरपीसी की पूरी कार्रवाई के दौरान आरोपियों, पीड़ित और गवाहों की जाति दर्ज की है। इसी पर हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए ये आदेश दिए हैं।

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