सात धर्म, 122 भाषाएं, 1600 बोलियों के बावजूद सवा अरब भारतीयों की पहचान एक : पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी

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नागपुर। ‘राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देशप्रेम’के बारे में आरएसएस मुख्यालय में अपने विचार साझा करते हुए पूर्व राष्ट्रपति एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रणब मुखर्जी ने कहा कि भारत की आत्मा ‘बहुलतावाद एवं सहिष्णुता’ में बसती है। मुखर्जी ने आरएसएस कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि भारत में हम अपनी ताकत सहिष्णुता से प्राप्त करते हैं और बहुलवाद का सम्मान करते हैं। हम अपनी विविधता का उत्सव मनाते हैं।
उन्होंने प्राचीन भारत से लेकर देश के स्वतंत्रता आंदोलत तक के इतिहास का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारा राष्ट्रवाद ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ तथा ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:..’जैसे विचारों पर आधारित है। उन्होंने कहा कि हमारे राष्ट्रवाद में विभिन्न विचारों का सम्मिलन हुआ है। उन्होंने कहा कि घृणा और असहिष्णुता से हमारी राष्ट्रीयता कमजोर होती है।
मुखर्जी ने राष्ट्र की अवधारणा को लेकर सुरेन्द्रनाथ बनर्जी तथा बालगंगाधर तिलक के विचारों का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारा राष्ट्रवाद किसी क्षेत्र, भाषा या धर्म विशेष के साथ बंधा हुआ नहीं है। उन्होंने कहा कि हमारे लिए लोकतंत्र सबसे महत्वपूर्ण मार्गदशर्क है। उन्होंने कहा कि हमारे राष्ट्रवाद का प्रवाह संविधान से होता है। भारत की आत्मा बहुलतावाद एवं सहिष्णुता में बसती है।
उन्होंने कौटिल्य के अर्थशास्त्र का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने ही लोगों की प्रसन्नता एवं खुशहाली को राजा की खुशहाली माना था। पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि हमें अपने सार्वजनिक विमर्श को हिंसा से मुक्त करना होगा। साथ ही उन्होंने कहा कि एक राष्ट्र के रूप में हमें शांति, सौहार्द्र और प्रसन्नता की ओर बढ़ना होगा। मुखर्जी ने कहा कि हमारे राष्ट्र को धर्म, हठधर्मिता या असहिष्णुता के माध्यम से परिभाषित करने का कोई भी प्रयास केवल हमारे अस्तित्व को ही कमजोर करेगा।

पूर्व रास्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की  विशेष बाते 

1, सात धर्म, 122 भाषाएं, 1600 बोलियों के बावजूद सवा अरब भारतीयों की पहचान एक है।

2,गांधी जी ने कहा था कि राष्ट्रवाद हिंसक और विध्वंसक नहीं होना चाहिए।

3,विचारों की विविधता को हम नकार नहीं सकते हैं। हम असहमत हो सकते हैं लेकिन उसे खारिज नहीं कर सकते।

4, विविधता और सहिष्णुता भारत की पहचान रही है। धर्मनिरपेक्षता हमारे लिए आस्था का मसला।

5, सरदार पटेल ने 565 रियासतों को एक किया तो नेहरू जी ने भारत एक खोज में राष्ट्रवाद की नई परिभाषा बताई।

हमारा सुनहरा इतिहास 

उन्होंने भारत के सुनहरे इतिहास को याद करते कहा कि भारत लंबे समय से अपने सिल्क एवं मसालों के व्यापार के जरिए दुनिया से जुड़ा एक खुला समाज रहा है। दुनिया भर के व्यापारी एवं विद्वान यहां आते रहे हैं। इसी प्रकार अपने हिंदू प्रभाव के साथ बौद्ध धर्म भी यहां से मध्य एशिया, चीन एवं दक्षिणपूर्व एशिया में फैला। तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय दुनिया भर के विद्वानों को अपनी ओर आकर्षित करते रहे। इन शिक्षण संस्थानों के खुले माहौल में ही यहां चाणक्य के अर्थशास्त्र जैसा अद्भुत ग्रंथ लिखा गया। पिछले ढाई हजार वर्षों में भारत में कई शासक एवं संस्कृतियां आईं-गईं, लेकिन भारत की मूल आत्मा अक्षुण्ण रही है।

हेडगेवार को भारत माता का महान सपूत बताया : पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस के कद्दावर नेता प्रणब मुखर्जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संस्थापक सर संघचालक केशव बलिराम हेडगेवार की जन्मस्थली पर गए और उन्होंने उन्हें भारत माता का महान सपूत बताया।
मुखर्जी ने यहां आरएसएस मुख्यालय में अपने बहुप्रतीक्षित भाषण से पहले हेडगेवार की जन्मस्थली पर आंगुतक पुस्तिका में लिखा कि आज मैं भारत माता के महान सपूत को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने आया हूं। सूत्रों ने बताया कि इस मौके पर सुभाष चंद्र बोस के परिवार के सदस्य मौजूद थे जिन्हें विशेष अतिथि के रूप में निमंत्रित किया गया था।
मुखर्जी तंग गलियों से गुजरते हुए उस मकान तक पहुंचे, जहां हेडगेवार पैदा हुए थे। मकान में प्रवेश से पहले उन्होंने अपने जूते उतारे। वहां आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने उनका स्वागत किया। सूत्रों के अनुसार हेडगेवार को श्रद्धांजलि देने से जुड़ी मुखर्जी की यह यात्रा उनके निर्धारित कार्यक्रम का हिस्सा नहीं थी और पूर्व राष्ट्रपति ने अचानक ऐसा करने का निर्णय लिया।
मुखर्जी कल शाम नागपुर पहुंचे थे। आरएसएस ने उन्हें अपने शिक्षा वर्ग को संबोधित करने तथा स्वयंसेवकों के परेड का निरीक्षण करने के लिए निमंत्रित किया था। यह संघ के स्वयंसेवकों के लिए आयोजित होने वाला तीसरे वर्ष का वार्षिक प्रशिक्षण है। आरएसएस अपने स्वयंसेवकों के लिए प्रथम, द्वितीय और तृतीय वर्ष का प्रशिक्षण शिविर लगाता है।

नेहरू को याद करना नहीं भूले

आधुनिक भारत का जिक्र आने पर जवाहरलाल नेहरू को याद करना भी नहीं भूले। उनकी डिस्कवरी ऑफ इंडिया पुस्तक का जिक्र करते हुए कहा कि मैं इस बात से सहमत हूं कि राष्ट्रवाद सिर्फ हिंदू, मुस्लिम, सिख एवं भारत में रह रहे अन्य समूहों के मिलन से ही आ सकता है। लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि किसी मूल संस्कृति का लोप हो जाना चाहिए। इन सभी संस्कृतियों के सम्मिलन से ही राष्ट्र का निर्माण होता है।

कांग्रेस ने किया था विरोध : आरएसएस के कार्यक्रम में जाने के मुखर्जी के फैसले से पहले ही राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया है। कई कांग्रेस नेताओं ने उनके फैसले की निंदा की है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता अहमद पटेल ने पूर्व राष्ट्रपति द्वारा नागपुर में आरएसएस मुख्यालय जाने के प्रति अपनी नाखुशी प्रकट की और कहा कि उनसे उन्हें ऐसी उम्मीद नहीं थी। कल मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने कहा था कि उनके पिता आरएसएस के कार्यक्रम में भाषण देने के अपने फैसले से भाजपा और आरएसएस को झूठी खबरें फैलाने का मौका दे रहे हैं।
उन्होंने ट्वीट किया था कि उनका भाषण बिसार दिया जाएगा केवल तस्वीर ही बची रह जाएगी। उन्होंने उम्मीद की कि पूर्व राष्ट्रपति अहसास करेंगे कि भाजपा का ‘डर्टी ट्रिक्स डिपार्टमेंट’ कैसे काम करता है और उन्होंने ऐसे कार्यक्रम में शामिल होने के परिणामों को लेकर उन्हें चेताया। जयराम रमेश, सी के जाफर शरीफ समेत कई कांग्रेस नेताओं ने भी उन्हें लिखा जबकि आनंद शर्मा समेत कुछ नेता मुखर्जी को वहां नहीं जाने के लिए उन्हें मनाने भी गए थे।

 

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