देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त भी आंदोलनजीवियों ने ही करवाया था प्रधानमंत्री जी, क्‍या महात्‍मा गांधी, लाल बहादुर शास्‍त्री, जयप्रकाश, अटल बिहारी बाजपेयी भी परजीवी थे? राजेन्द्र बंजारे

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आंदोलन करने वाले परजीवी होते हैं- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त भी आंदोलनजीवियों ने ही करवाया था प्रधानमंत्री जी…
क्‍या महात्‍मा गांधी, लाल बहादुर शास्‍त्री, जयप्रकाश, अटल बिहारी बाजपेयी भी परजीवी थे?
प्रधानमंत्री जी… किसानों को अंग्रेजों के अत्याचार से बचाने के लिए गांधीजी ने भी भरी थी चंपारण आंदोलन की हुंकार
आंदोलनों के अस्तित्व पर सवाल नहीं उठाना चाहिए
राजेन्द्र बंजारे प्रदेश सचिव छतीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी।

रायपुर, छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव एवम पूर्व जनपद अध्यक्ष राजेंद्र पप्पू बंजारे ने राज्यसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिए गए अपने भाषण किसान आंदोलन को सहयोग करने वाले लोगो को परजीवी की उपाधि देने की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि क्या किसान अपने हक के लिए आवाज भी नहीं उठा सकते? हम सब जानते हैं कि गांधीजी ने लगभग 100 वर्ष पहले किसानों को अंग्रेजों के अत्याचार से बचाने के लिए चंपारण आंदोलन की हुंकार भरी थी। इतना ही नहीं अंग्रेजों द्वारा नमक पर लगाए गए कर के विरोध में नमक सत्याग्रह भी किया था। जिसमें लाखों करोड़ों लोगों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। इतना ही नहीं 1974 में जय प्रकाश नारायण ने भी छात्रों के हक में जेपी आंदोलन की हुंकार भर उन्हें उनका हक दिलवाया था। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेई जी की पूरी राजनीति आंदोलनों पर टिकी हुई थी और वह जीवन भर जन कल्याण के हित में सरकारों के खिलाफ आंदोलन करते रहे। इसका मतलब यह तो नहीं कि वो सभी लोग परजीवी हैं। इस तरह के बयान देकर वह हमारे महापुरूषों के आदर्शों को, उनके आंदोलनों के सवाल खड़े कर रहे हैं। अपने हक के लिए तो आवाज उठाना और आंदोलन लोकतंत्र के मूल अधिकारों में शामिल है।
कांग्रेस प्रदेश सचिव राजेन्द्र बंजारे ने आगे कहा कि प्रधानमंत्री जी को समझना चाहिए थी कि विश्व के इतने बड़े लोकतंत्र के मुखिया को इस तरह की हल्की बात करना उचित नहीं लगता। जबकि प्रधानमंत्री किसी एक पार्टी या दल के नहीं होते, बल्कि वो जनता के और जनता के द्वारा चुने गए व्यक्ति होते हैं, जिसे जनता ने वोट देकर चुना है। ऐसे में जनता के विरुद्ध जाकर इस तरह का बयान देना कहीं न कहीं लोकतंत्र को अपमानित करने जैसा है। यह देश का दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है। आंदोलन का सपोर्ट करने वाले लोगों को प्रधानमंत्री जी ने परजीवी की उपाधि दे दी। पूर्व जनपद अध्यक्ष राजेंद्र बंजारे ने कहा कि देश का किसान आज भी कृषि कानून के विरोध में दिल्ली की सड़कों पर डेरा डाले बैठे हुए है और केंद्र की भाजपा सरकार को उनकी परवाह नहीं,लेकिन मौजूदा प्रधानमंत्री जी आंदोलन करने वालों को आंदोलनजीवी बताकर उनका भी अपमान कर दिया है। प्रधानमंत्री जी को एक बात समझना चाहिए कि देश को अंग्रेज़ों से स्वतंत्रता भी एक आंदोलन से ही मिली थी और हमें गर्व होना चाहिए उन सभी आंदोलनजीवी स्वतंत्रता सेनानियों पर जिन्होंने अपनी जान न्यौछावर कर देश को आजाद करवाया।
इ‍ति‍हास गवाह है कि देश में जब-जब बड़े आंदोलन हुए हैं। समान विचारधारा वाले संगठन या व्‍यक्ति उन आंदोलनों में शामिल हो जाते हैं। मौजूदा किसान आंदोलन में भी यही हो रहा है। शायद नरेन्‍द्र मोदी जी को यही बात चुभ रही है कि इस आंदोलन को इतना समर्थन क्‍यों मिल रहा है। लेकिन मोदी जी को इस तरह से आंदोलनों के अस्तित्‍व पर सवाल नहीं उठाना चाहिए। पूरा भारत देश के नागरिक जानते हैं कि‍ हमारा देश तो आंदोलनों की बुनियाद पर जीवित हुआ है।

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