नेताजी के लोकतांत्रिक आदर्श बलिदान और त्याग के सिद्धातों पर आधारित थे : उपराष्ट्रपति
नई दिल्ली : उपराष्ट्रपति श्री एम वेंकैया नायडू ने आज नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जीवन से प्रेरणा लेने तथा गरीबी, अशिक्षा, सामाजिक और लैंगिक भेदभाव, भ्रष्टाचार और संप्रदायवाद को खत्म करने के लिए कार्य करने की अपील की।
उपराष्ट्रपति ने ये टिप्पणियां नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की 125वीं जयंती के अवसर पर, जिसे देशभर में ‘पराक्रम दिवस’ के रूप में मनाया जा रहा है, हैदराबाद के एमसीआर एचआरडी संस्थान के फाउंडेशन कोर्स में भाग ले रहे अधिकारी प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए कीं।
यह नोट करते हुए कि हमारी जनसंख्या का 65 प्रतिशत हिस्सा 35 वर्ष से कम आयु का है, श्री नायडू ने कहा कि युवाओं को एक नवीन भारत-एक प्रसन्न तथा समृद्ध भारत, जहां प्रत्येक नागरिक को समान अवसर मिले तथा जहां किसी प्रकार का कोई भेदभाव न हो, के निर्माण में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए।
‘पराक्रम’ या साहस को नेताजी के व्यक्तित्व का सबसे विशिष्ट गुण बताते हुए उपराष्ट्रपति ने देश के लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए नेताजी के जन्मदिन को ‘पराक्रम दिवस’ मनाने के सरकार के निर्णय की प्रशंसा की।
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित करते हुए उन्होंने कहा कि नेताजी एक करिश्माई नेता थे और स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे अग्रणी व्यक्तित्व में से एक थे जिनका विश्वास था कि भारत की प्रगति के लिए हमें जाति, पंथ, धर्म और क्षेत्र से ऊपर उठने तथा खुद को पहले भारतीय समझने की आवश्यकता है।
कई क्षेत्रों के अज्ञात नायकों सहित सुभाष चन्द्र बोस तथा कई स्वतंत्रता सेनानियों, समाज सुधारकों द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि कई लोग उनकी महानता के बारे में अवगत नहीं थे क्योंकि उनके द्वारा किए गए योगदान को इतिहास की किताबों में ठीक से प्रस्तुत नहीं किया गया। उन्होंने जोर देकर कहा कि ‘हमें अपने कई महान नेताओं के जीवन पर समारोह आयोजित करना चाहिए। हमें औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर आने की आवश्यकता है।
श्री नायडू ने कहा, ‘’ऐसा कहा जाता है कि भारतीय सशस्त्र बलों की उनकी मातृभूमि के प्रति बढ़ती निष्ठा ने भारत से ब्रिटिश साम्राज्य के जाने की प्रक्रिया तेज कर दी।‘’ यह देखते हुए कि विभिन्न नेताओं ने विभिन्न तरीकों से स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया। उपराष्ट्रपति ने कहा कि अंततोगत्वा उन सभी का लक्ष्य औपनिवेशिक शासन से भारत की मुक्ति अर्जित करना था।
यह रेखांकित करते हुए कि नेताजी भारत में जाति प्रणाली को समाप्त करना चाहते थे, श्री नायडू ने कहा कि 1940 के दशक में सभी जाति, पंथ, तथा धर्मों के सैनिक एक साथ रहते थे, एक ही रसोईघर में एक साथ खाना खाते थे और केवल भारतीयों के रूप में ही लड़ते थे। उन्होंने कहा कि नेताजी हमेशा इस बात पर जोर देते थे कि भारत की प्रगति केवल दलित और समाज के सीमांत वर्गों के उत्थान के द्वारा ही संभव होगी।
यह स्मरण करते हुए कि श्री बोस अपने स्कूली दिनों से ही अन्याय के प्रत्येक रूप के खिलाफ खड़े होते थे, उपराष्ट्रपति ने उन पर रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद और श्री अरबिंदो के उपदेशों के प्रभाव का उल्लेख किया। श्री नायडू ने कहा कि यही अध्यात्मिकता उनकी आंतरिक शक्ति का स्रोत बन गई।
यह दर्ज करते हुए कि नेताजी के लोकतांत्रिक आदर्श बलिदान और त्याग के सिद्धांतों पर आधारित थे, उपराष्ट्रपति ने कहा कि श्री बोस चाहते थे कि स्वतंत्र भारत में लोकतंत्र के फलने-फूलने के लिए नागरिक अनुशासन, जिम्मेदारी, सेवा और देशभक्ति के मूल्यों को आत्मसात करें।
श्री नायडू ने कहा कि राष्ट्रवाद की सच्ची भावना देश के सभी नागरिकों के कल्याण के लिए काम करने से संबंधित है।
उपराष्ट्रपति ने यह भी कहा कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस हमेशा भारत के सभ्यतागत मूल्यों तथा समृद्ध सांस्कृतिक विरासत में गर्व महसूस करते थे, जिसके बारे में उनका मानना था कि यही हमारे राष्ट्रीय गौरव और सामूहिक आत्मविश्वास की आधारशिला है।
श्री नायडू ने कहा कि नेताजी न केवल राजनीतिक बंधन बल्कि संपत्ति के समान वितरण, जातिगत बाधाओं की समाप्ति तथा सामाजिक विषमताओं से भी मुक्ति चाहते थे।
नेताजी के प्रेरणादायी नेतृत्व के गुणों को गिनाते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि अपनी जादुई उपस्थिति से वह सैनिकों, जो ‘युद्ध बंदी’ थे, को उत्साहित कर सकते थे और उन्हें ‘स्वतंत्रता सेनानियों’ के रूप में परिणत कर सकते थे और वे अपनी मातृभूमि के लिए तथा अपने प्रिय नेता के लिए अपने अंतिम क्षणों तक युद्ध करने के लिए तैयार हो गए। श्री नायडू ने कहा कि नेताजी और आजाद हिंद फोज ने लोगों को काफी उत्साहित कर दिया था जैसा कि ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा आईएनए कैदियों की सुनवाई के दौरान उन्हें मिले लोकप्रिय समर्थन से स्पष्ट था। उन्होंने कहा कि इसके परिणामस्वरूप अंग्रेजों को आईएनए जवानों के प्रति उदार दृष्टिकोण रखना पड़ा।
उपराष्ट्रपति ने रेखांकित किया कि श्री बोस महिलाओं को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र-चाहे सामाजिक, आर्थिक या राजनीतिक- में समान अधिकार देने में विश्वास रखते थे। उन्होंने कहा कि ‘नेताजी के विचारों की प्रगतिशीलता का अनुमान आईएनए में महिलाओं की वाहिनी का नाम रानी झांसी रेजिमेंट रखने से ही लगाया जा सकता है। उन्होंने सशस्त्र बलों में महिलाओं के लिए स्थाई कमीशन उपलब्ध कराने के सरकार के निर्णय की सराहना की।
नेताजी के विश्वास कि शिक्षा चरित्र निर्माण और मानव जीवन के सर्वांगीण विकास के लिए अनिवार्य है, का उल्लेख करते हुए श्री नायडू ने सार्थक शिक्षा के लिए तथा भारत के एक शिक्षा केन्द्र तथा ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के रूप में उभरने के लिए अध्ययन एवं अध्यापन की हमारी पद्धतियों के पुनर्निर्माण की अपील की।
इस कार्यक्रम के अवसर पर उपस्थित रहने वालों में एमसीआर एचआरडी संस्थान के महानिदेशक श्री हरप्रीत सिंह, संस्थान के अपर महानिदेशक श्री बेनहर महेश दत्ता एक्का, संकाय, कर्मचारी तथा प्रशिक्षु अधिकारी शामिल थे।