‘विदेशियों’ के जगह बनाने का अंदेशा, NRC चीफ ने स्क्रीनिंग पर उठाए सवाल
गुवाहाटी
असम में अपडेटेड नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (NRC) प्रकाशित होने के छह महीने के अंदर नए स्टेट कोऑर्डिनेटर ने स्क्रीनिंग पर संदेह जताया है। उन्होंने गिनती में गड़बड़ी की आशंका जताते हुए कथित रूप से कुछ अयोग्य व्यक्तियों को इस नई सूची में जगह मिलने की बात कही है।
नागरिक रजिस्टर के डेप्युटी कमिश्नरों और जिला रजिस्ट्रार को जारी सर्कुलर में पूर्व कोऑर्डिनेटर प्रतीक हजेला के उत्तराधिकारी हितेश देव सरमा ने कहा कि उन्हें सूचित किया गया था कि ट्राइब्यूनल द्वारा घोषित विदेशी, चुनाव आयोग द्वारा पहचाने गए संदिग्ध वोटरों और उनके वंशजों ने एनआरसी में जगह बनाने का रास्ता ढूंढ लिया था।
जारी सर्कुलर में कहा गया है, 'ऐसे व्यक्तियों की एक सूची पहले ही आपके साथ साझा की जा चुकी है। इसलिए आपसे अनुरोध है कि ऐसे व्यक्तियों का विवरण साझा करें जो एनआरसी में शामिल होने के लिए अयोग्य हैं, लेकिन उनके नाम लिस्ट में हैं। आपसे अनुरोध है कि यह मामला अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि आपसे मिलने वाली जानकारी को भारत के रजिस्ट्रार जनरल को तत्काल रिपोर्ट करना है।'
2015 में NRC में कुल 3.3 करोड़ लोगों ने अपने नाम शामिल करने के लिए आवेदन किया था। तीन साल बाद इसका अंतिम मसौदा प्रकाशित किया गया था, जिसमें 2.89 करोड़ नाम थे। जिन 40 लाख नामों को बाहर किया गया था, उनमें से 36 लाख ने दावे दायर किए। पिछले साल 31 अगस्त को अंतिम सूची प्रकाशित होने के बाद एनआरसी में 3.11 करोड़ लोग शामिल हो गए लेकिन 19 लाख को इसमें जगह नहीं मिली।
आसू सहित कई संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए कई आधारों पर दोबारा वेरिफिकेशन की मांग की है। हालांकि आसू का दावा है कि निकाले गए लोगों की सूची इससे कहीं कम होनी चाहिए। बीजेपी की अगुआई वाली सरकार का कहना है कि कई हिंदुओं को गलत तरीके से छोड़ दिया गया है। राज्य सरकार कम से कम 20% डेटा को पुनः प्राप्त करने के लिए तर्क दे रही है। बांग्लादेश के सीमावर्ती तीन जिलों में एनआरसी से निकाले गए लोगों की दर असामान्य रूप से काफी कम थी।
असम लोक निर्माण नाम के एनजीओ ने 2009 में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल करते हुए 100 प्रतिशत रीवेरिफिकेशन की मांग थी। इसमें दावा किया गया कि अंतिम सूची में 80 लाख विदेशियों के नाम हैं, जिनमें जिहादी भी शामिल हैं।