अगले माह बंद हो जाएंगी प्रदेश की दो हजार से अधिक योजनाएं
भोपाल
आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रही मप्र सरकार को केंद्रीय बजट में मिले झटके के बाद प्रदेश की सरकारी योजनाओं का भविष्य अधर में फंस गया है। कहा जा रहा है कि चौदहवें वित्त आयोग का कार्यकाल 31 मार्च, 2020 को पूरा हो जाएगा। इसके साथ ही प्रदेश में संचालित सभी 2170 सरकारी योजनाएं बंद हो जाएंगी। इन सभी योजनाओं की वैधता 31 मार्च तक है। इसके बाद सरकार नए सिरे से तय करेगी कि इनमें से कौन सी योजनाएं बंद करना है और कौन सी नए रूप में चालू रखना है।
सूत्रों का कहना है कि सरकार ने इनमें से बड़ी संख्या में अनुपयोगी योजनाओं को बंद करने की तैयारी कर ली है। योजनाओं को 31 मार्च के बाद चालू रखने के लिए कैबिनेट की मंजूरी लेना पड़ेगी। दरअसल, कैबिनेट की मंजूरी के बाद लागू होने वाली हर योजना की वैधता पांच साल की होती है। 31 मार्च को योजनाओं की वैधता खत्म होने के बाद सरकार तय करेगी कि कौन सी योजनाएं अपने मूल स्वरूप में चलेंगी, कौन सी योजनाओं में बदलाव किया जाएगा और कौन सी बंद की जाएंगी। यही वजह है कि योजनाओं का रि-असिस्मेंट किया जा रहा है, उनकी रिस्ट्रक्चरिंग की जा रही है। इसके लिए सरकार ने वरिष्ठ अधिकारियों की कमेटी बनाई है। सूत्रों का कहना है कि सरकारें वित्त आयोग के कार्यकाल के साथ योजनाओं की निरतंरता को जोडक़र रखती हैं। वित्त आयोग का कार्यकाल पूरा हो रहा है। नए वित्त आयोग ने अंतरिम रिपोर्ट दे दी है। इसमें केंद्रीय करों में राज्यों का शेयर कम करने के साथ ही डिफेंसिव फंडिंग की बात कही जा रही है। केंद्र सरकार द्वारा राज्यों को दिए जा रहे शेयर को टाइड ग्रांट्स में कन्वर्ट किए जाने की बात भी सामने आ रही है। वित्त आयोग यह व्यवस्था भी करने जा रहा है कि वह जो पैसा दे रहा है, उसे योजना विशेष पर ही खर्च किया जा सकता है, ऐसे में सरकार के पास गैर जरूरी योजनाओं को बंद करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
गत 1 मार्च को संसद में पेश किए गए आम बजट में मप्र को केंद्रीय करों से मिलने वाली हिस्सेदारी में 14,223 करोड़ की कटौती कर दी गई है। वित्त विभाग का मानना है कि केंद्र सरकार जीएसटी से मप्र को मिलने वाली राशि और अन्य ग्रांट कम कर सकती है। सरकार ने केंद्र से करीब 20 हजार करोड़ कम मिलने का अनुमान लगाया है। सरकार ने इसकी भरपाई करने के लिए विभागों को फरवरी और मार्च में उन्हें बजट में आवंटित कुल राशि में से बची हुई राशि का सिर्फ 10-10 प्रतिशत खर्च करने के निर्देश दिए हैं। उदाहरण के तौर पर यदि किसी विभाग को बजट में 100 करोड़ रुपए आवंटित किए गए। वर्तमान में उसके पास कुल 70 करोड़ रुपए बचे हैं, तो वह विभाग फरवरी और मार्च में सिर्फ 7-7 करोड़ रुपए खर्च कर पाएगा। सरकार का मानना है कि ऐसा कर वह दो महीने में करीब 25 हजार करोड़ रुपए बचा लेगी। आमतौर पर विभागों द्वारा राशि लैप्स होने के डर से फरवरी और मार्च में जमकर बजट खर्च किया जाता है। इसके अलावा सरकार ने फरवरी और मार्च में विभागों द्वारा खरीदी पर पाबंदी लगा दी है। वाहनों व दफ्तर से जुड़े उपकरणों की खरीदी रोकने के साथ-साथ वित्त विभाग ने यह भी साफ कर दिया है कि मंगलवार से पहले यदि खरीदी हो गई है, तो आदेश जारी होने के सात दिनों के बाद भुगतान भी प्रतिबंधित रहेगा। अधिकारी फाइव स्टार होटलों में सेमिनार, वर्कशॉप अथवा सरकारी कार्यक्रम नहीं कर पाएंगे।
ऐसी योजनाएं जिनके संचालन में केंद्र और राज्य सरकार के फंडिंग का रेशो क्रमश: 60:40 प्रतिशत है। वर्षों से चल रही अनुपयोगी हो चुकी योजनाएं। योजनाएं जिनसे न के बराबर लोगों को लाभ पहुंच रहा है और सरकार को उन पर राशि खर्च करना पड़ रही है। ऐसी योजनाएं जो केंद्र सरकार ने 15 या 20 साल पहले चालू की थीं और वैधता पूरी होने के बाद राज्य सरकार उनके संचालन पर पैसे खर्च कर रही है। सामाजिक सरोकार से जुड़ी गैर जरूरी योजनाएं।
वित्त मंत्री तरुण भनोत ने राज्य सरकार के 2020-21 के बजट को चुनौतीपूर्ण बताया है। उन्होंने इसके लिए केंद्र सरकार को जिमेदार ठहराया। मंत्री भनोत का कहना है कि केंद्र ने राज्य के हिस्से की रकम में 14 हजार करोड़ की कटौती कर दी है। वित्तीय वर्ष 2018- 19 में केंद्र से राज्य को जीएसटी से 55 हजार 500 करोड़ रुपए का हिस्सा मिला था, जो इस साल घटकर 49 हजार करोड़ रुपए रह गया है। राज्य को उम्मीद थी कि इस बार केंद्र से प्रदेश को उसके अंश का 61,500 करोड़ रुपया मिलेगा, लेकिन केंद्र ने इस राशि में कटौती कर प्रदेश की वित्तीय हालत को और खराब कर दिया है। वित्त मंत्री ने बताया कि पूर्ववर्ती शिवराज सरकार द्वारा लिए गए कर्ज का सालाना 14 हजार करोड़ सरकार कर्ज के रूप में चुका रही है, ऊपर से राज्य के अंश मे कटौती कर केंद्र सरकार अच्छा नहीं कर रही। उन्होंने कहा कि सरकार कई अनुपयोगी योजनाओं को बंद करने जा रही है।