आध्यात्म के माध्यम से प्रदेशवासियों को भारतीय संस्कृति से जोड़ने की पहल
भोपाल
आध्यात्म वास्तव में मनुष्य में विकास की लालसा को गति प्रदान करने का सशक्त माध्यम है। यह औसत से ऊपर उठकर जीने का विवेकपूर्ण तरीका भी है। मध्यप्रदेश में राज्य सरकार ने इस शाश्वत सत्य को जन-मानस में संचारित करने के लिये वर्ष 2019 में आध्यात्म विभाग का गठन किया। प्रदेश में धर्मस्व, धार्मिक न्यास और आनंद विभाग के बिखरे स्वरूप को आध्यात्म विभाग में समाहित कर प्रदेशवासियों को भारतीय संस्कृति से जोड़े रखने की अहम शुरूआत पिछले वर्ष ही प्रदेश में हुई।
मध्यप्रदेश, भारतीय संस्कृति की अमिट धरोहरों से परिपूर्ण एवं समृद्ध राज्य है। यहाँ देश के 12 ज्योतिर्लिंग में से दो ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर और ओंकारेश्वर प्रतिष्ठापित हैं। राज्य सरकार ने दोनों ज्योर्तिलिंग को विश्व पर्यटन केन्द्र के स्वरूप में विकसित करने का निर्णय लिया है। मुख्यमंत्री श्री कमल नाथ ने ओंकार सर्किट योजना में महाकाल-महेश्वर के साथ ओंकारेश्वर विकास योजना को भी मंजूरी दी है।
महाकाल मंदिर विकास विस्तार योजना
विश्व प्रसिद्ध मध्यप्रदेश के भगवान महाकाल मंदिर के विकास और विस्तार की 300 करोड़ की योजना पर काम शुरू हो गया है। पहली बार किसी मुख्यमंत्री ने महाकाल मंदिर के बारे में सोचा है। योजना के कामों की निगरानी के लिये मंत्री-मण्डल की तीन सदस्यीय समिति गठित की गई है। समिति में लोक निर्माण मंत्री श्री सज्जन सिंह वर्मा, आध्यात्म मंत्री श्री पी.सी. शर्मा और नगरीय विकास मंत्री श्री जयवर्द्धन सिंह सदस्य हैं। योजना को समय-सीमा में पूरा कराने की जिम्मेदारी मुख्य सचिव को सौंपी गई है। योजना ऐसी बनाई गई है कि यहाँ ऐसी व्यवस्थाएँ रहें कि श्रद्धालु एक-दो दिन आराम से रुक सकें। महाकाल मंदिर के मूल ढाँचे के साथ कोई छेड़छाड़ न हो। उज्जैन शहर और वहाँ के रहवासियों का विकास भी इस योजना में शामिल है।
योजना के पहले चरण में यात्रियों-श्रद्धालुओं के लिये सुविधाओं का विस्तार किया जा रहा है। साथ ही, मंदिर के प्रवेश एवं निर्गम द्वार, फ्रंटियर यार्ड और नंदी हाल का विस्तार किया जा रहा है। महाकाल थीम पार्क, महाकाल कॉरिडोर और वर्केज लॉन पार्किंग आदि का निर्माण कराने की योजना है। दूसरे चरण में महाराजा बाड़ा, कॉम्पलेक्स, कुंभ संग्रहालय, महाकाल से जुड़ी विभिन्न कथाओं का प्रदर्शन, अन्न क्षेत्र, धर्मशाला, रुद्रसागर की स्केपिंग, रामघाट मार्ग का सौंदर्यीकरण, पर्यटन सूचना केन्द्र, रुद्र सागर झील का पुनर्जीवन, हरी फाटक पुल, यात्री सुविधाओं और अन्य सुविधाओं का निर्माण और विस्तार शामिल है।
ओंकारेश्वर विकास कार्य-योजना
मुख्यमंत्री श्री कमल नाथ ने ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के गौरव को चिर-स्थायी बनाने के लिये 156 करोड़ की विकास कार्य-योजना को मंजूरी दी है। साथ ही, ओंकारेश्वर मंदिर के लिये शीघ्र ही कल्याणकारी एक्ट बनाने के निर्देश भी दिये हैं। यहाँ ओंकारेश्वर के प्रवेश द्वार को भव्य बनाना, मंदिर का संरक्षण, प्रसाद काउंटर, मंदिर के चारों ओर विकास तथा सौंदर्यीकरण, शॉपिंग कॉम्पलेक्स, झूला-पुल और विषरंजन कुंड के पास रिटेनिंग वॉल, बहुमंजिला पार्किंग, पहुँच मार्ग, परिक्रमा-पथ का सौंदर्यीकरण, शेड निर्माण, लेंड-स्केपिंग, धार्मिक-पौराणिक गाथा की पुस्तकों की लायब्रेरी, ओंकार आइसलैंड का विकास, गौ-मुख घाट पुनर्निर्माण, भक्त निवास और भोजन-शाला, ओल्ड पैलेस तथा विष्णु मंदिर, ब्रह्मा मंदिर और चंद्रेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार, ई-साइकिल तथा ई-रिक्शा सुविधा, बोटिंग, आवागमन, बस-स्टैण्ड, पर्यटक सुविधा केन्द्र सहित अन्य विकास कार्य किये जा रहे हैं।
रामपथ गमन विकास के लिये 22 करोड़ से अधिक मंजूर
राज्य सरकार ने रामपथ गमन विकास योजना को भी अंतिम रूप दिया है। योजना को सरकार की प्राथमिकता में शामिल किया गया है। इसके लिये 22 करोड़ 9 लाख 32 हजार रुपये की राशि आध्यात्म विभाग को जारी कर दी गई है। इस राशि में से 4 करोड़ लघु निर्माण कार्यों, एक करोड़ 54 लाख 66 हजार स्थाई सम्पत्तियों के अनुरक्षण, 2 करोड़ मशीनों एवं उपकरणों के अनुरक्षण और अन्य आवश्यक निर्माण एवं विकास कार्यों के लिये 4 करोड़ 54 लाख 66 हजार रुपये दिये गये हैं। इसके अलावा, रामपथ गमन अंचल विकास, वृहद निर्माण कार्यों, पूंजीगत व्यय और समाज-सेवाओं के लिये 10 करोड़ की राशि दी गई है। इन योजनाओं का क्रियान्वयन भी शुरू हो गया है।
रामपथ गमन मार्ग में सतना, पन्ना, कटनी, उमरिया, शहडोल और अनूपपुर जिले आते हैं। इसमें चित्रकूट के 16 तीर्थ आते हैं। ऐसा विश्वास किया जाता है कि भगवान श्रीराम ने सीताजी और लक्ष्मण के साथ अपने वनवास के 14 वर्षों में से 11 वर्ष चित्रकूट में ही बिताए थे। इसी स्थान पर ऋषि अत्रि और सती अनुसुइया ने ध्यान लगाया था। ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने चित्रकूट में ही सती अनुसुइया के घर जन्म लिया था।
रामपथ गमन के मुख्य स्थल कामदगिरि, गुप्त गोदावरी, स्फटिक शिला, अनुसुइया आश्रम, हनुमान धारा, सरभंग एवं सुतीक्षा आश्रम, वृहस्पद कुंड, चौमुखनाथ, मैहर, दशरथ घाट, बाँधवगढ़ आदि हैं। राज्य सरकार ने इस मार्ग पर तीर्थ-स्थलों के जीर्णोद्धार, संरक्षण, विकास एवं जन-सुविधाएँ, भीड़ प्रबंधन, सुरक्षा व्यवस्था, मेले, उत्सव एवं आध्यात्मिक कार्यक्रम की योजना बनाई है। रामपथ गमन फोर-लेन बनाया जा रहा है। रामपथ को धार्मिक पर्यटन के रूप में विकसित करने की योजना है। रामपथ के बीच पड़ने वाली समस्त नदी, झरने एवं जल-स्रोत को प्रदूषण-मुक्त करना तथा छायादार पौधा-रोपण की कार्य-योजना को अंतिम रूप दिया जा रहा है।
धार्मिक आस्था स्थलों का जीर्णोद्धार
राज्य सरकार ने पिछले साल शासन द्वारा संधारित मंदिरों का जीर्णोद्धार करने का निर्णय लिया। साथ ही, इन मंदिरों के पुजारियों के मानदेय में भी तीन गुना की उल्लेखनीय वृद्धि की। इस दौरान 30 मंदिरों के जीर्णोद्धार और विकास के लिये 4 करोड़ 82 लाख 36 हजार रुपये की राशि जारी की। अब प्रदेश में मंदिरों को पर्यटन केन्द्रों के स्वरूप में विकसित किया जा रहा है।
सिन्धु दर्शन, कैलाश मानसरोवर और श्रीलंका तीर्थ-यात्रा
प्रदेश में पिछले मात्र एक वर्ष में 23 हजार से अधिक तीर्थ-यात्रियों को राज्य सरकार ने 23 विशेष ट्रेन के माध्यम से मुख्यमंत्री तीर्थ-दर्शन योजना में विभिन्न तीर्थ-स्थलों की यात्रा कराई। इस यात्रा में तीर्थ-यात्रियों को भोजन, स्वास्थ्य, सुरक्षा संबंधी सभी सुविधाएँ नि:शुल्क उपलब्ध कराई गईं। राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री तीर्थ-दर्शन योजना में सिन्धु दर्शन, कैलाश मानसरोवर और श्रीलंका यात्रा को जोड़कर सर्वधर्म-समभाव का परिचय दिया। इसके लिये तीर्थ-यात्रियों को 27 लाख 71 हजार की आर्थिक सहायता/अनुदान भी दिया गया। साथ ही, अन्य बुनियादी सुविधाएँ और सुरक्षा नि:शुल्क मुहैया कराई गई। इस योजना के साथ ही, शासन द्वारा संधारित दो धर्मशालाओं का 32 लाख से जीर्णोद्धार भी कराया गया।
मंदिरों, मठों, देव-स्थानों और नदियों का संरक्षण
राज्य सरकार ने मंदिरों, मठों, देव-स्थानों और पवित्र नदियों के संरक्षण के लिये समितियों और न्यासों का गठन किया। माँ नर्मदा, क्षिप्रा, मंदाकिनी और ताप्ती के संरक्षण एवं संवर्धन के लिये न्यास का गठन किया गया। इसी तरह, प्रदेश के मठ-मंदिरों के सुचारु संचालन के लिये सलाहकार समिति गठित की गई।
श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति, उज्जैन का 8 मार्च, 2019 को गठन किया गया। ओंकारेश्वर मंदिर अधिनियम, गणपति मंदिर अधिनियम, म.प्र. शारदा देवी मंदिर अधिनियम, देव-स्थान प्रबंधन एवं विकास विधेयक में आवश्यक संशोधन किये गये।
शासन द्वारा संधारित देव-स्थानों की कृषि भूमि, दुकान, व्यावसायिक सम्पत्ति एवं भवन प्रबंधन का दायित्व संबंधित जिला कलेक्टर को सौंपा गया। शासन नियंत्रित देव-स्थानों की व्यवस्था को सुचारु रूप देने के लिये देव-स्थान स्तरीय, अनुविभाग स्तरीय तथा जिला स्तरीय प्रबंध समिति नियम-2019 जारी किये गये। शासन संधारित मंदिरों/देव-स्थानों के पुजारियों की नियुक्ति के लिये अर्हताएँ, नियुक्ति की प्रक्रिया, कर्त्तव्य, दायित्व, पुजारी की पदच्युति तथा पुजारी पद रिक्त होने पर व्यवस्था के संबंध में नियम बनाये गये। साथ ही, शारदा माता, गणपति खजराना, रामराजा ओरछा एवं ओंकारेश्वर ट्रस्ट के प्रस्ताव/प्रारूप तैयार किये गये।
प्रमुख तीर्थ-स्थानों पर सुविधाओं का विस्तार
प्रदेश के प्रमुख तीर्थ ओरछा और बगुलामुखी माता मंदिर नलखेड़ा में तीर्थ-यात्रियों की सुविधा के लिये पौने दो करोड़ से ज्यादा की लागत से सेवा सदन बनवाये जा रहे हैं। नर्मदा परिक्रमा पथ पर यात्रियों की सुविधा के लिये 186 लाख की लागत से तीर्थ-यात्री सेवा सदन का निर्माण कराया जा रहा है। माता मंदिर, रतनगढ़ के विकास की करीब 5 करोड़ की समग्र कार्य-योजना में प्रथम किश्त 80 लाख जारी की गई। जिला दमोह में जोगेश्वर नाथ तीर्थ की विकास कार्य-योजना तैयार की गई। जिला ग्वालियर में धूमेश्वर तीर्थ विकास के लिये 36 लाख से ज्यादा की विकास योजना तैयार की गई। माता रतनगढ़ मंदिर और करीला माता मंदिर पर सौर ऊर्जा प्लांट लगाकर पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित किया गया। करीला माता मंदिर में निर्माणाधीन तीर्थ-यात्री सेवा सदन में वॉटर हॉर्वेस्टिंग, नक्षत्र वाटिका, जैविक खाद, पर्यावरण सुरक्षा तथा विद्युत, ऊर्जा, जल-संरक्षण एवं पर्यावरण संवर्धन को आध्यात्मिक परम्परा से जोड़ते हुए नक्षत्र वाटिका तैयार की जा रही है।
धार्मिक-स्थलों पर सुरक्षा एवं प्रबंधन
राज्य सरकार ने निर्णय लिया है कि प्रदेश में धार्मिक स्थलों में लगने वाले मेलों एवं आयोजनों में भीड़ प्रबंधन एवं सुरक्षा की विशेष व्यवस्था की जायेगी। वहाँ सी.सी. टी.व्ही. कैमरे लगाये जायेंगे। निमाड़, मालवा, बुंदेलखण्ड, महाकौशल और चंबल क्षेत्रों में कुल 1307 मेले पंजीबद्ध हैं। कलेक्टर के प्रस्ताव पर 27 मेलों/तीर्थों में इन व्यवस्थाओं क लिये 353 लाख की राशि जारी की गई।
ब्लॉक-स्तर तक आनंदक मेले
पिछले एक साल में प्रदेश में जिले/ब्लॉक स्तर पर आनंदक सम्मेलन की शुरूआत की गई। गिविंग सर्किल की अवधारणा पर कार्य किया गया। वरिष्ठ नागरिक स्वैच्छिक डिस्काउंट कार्यक्रम की शुरूआत हुई। प्रदेश में सामाजिक कल्याण एवं पारस्परिकता की भावना को बढ़ावा देने के लिये देश में पहली बार समय विनिमय कोष की परिकल्पना की गयी। इस परिकल्पना में एक-दूसरे के कौशल का उपयोग करके दूसरों की मदद करना तथा समय को पूँजी के रूप में निवेश करना शामिल है, जिसका भविष्य में उपयोग किया जा सके।
आनंद फैलोशिप चार आवेदकों को स्वीकृत की गई। आनंद शिविरों में आम नागरिकों की भागीदारी के लिये वेबसाइट पर ऑनलाइन पंजीयन का प्रावधान किया गया। अल्प-विराम के द्वारा लोगों के जीवन में आये सकारात्मक बदलाव से संबंधित उदाहरणों का 'परिवर्तन की कहानी'' के रूप में प्रकाशन तथा वेबसाइट पर प्रदर्शन किया जा रहा है। लगभग 2200 स्थानों पर 14 से 18 जनवरी, 2019 के बीच आनंद उत्सव का आयोजन किया गया।
प्रदेश में आध्यात्मिक गतिविधियों का उद्देश्य यह है कि प्रत्येक प्रदेशवासी जो भी कार्य करे, उसमें केवल उसका स्वार्थ नहीं हो बल्कि सभी की भलाई निहित हो। तभी प्रदेश सही मायने में विकसित राज्य बनने का हकदार होगा।