पौष पूर्णिमा पर 10 जनवरी से माघ मेले की शुरुआत, जानें क्यों करते हैं इस समय पवित्र स्नान
इंदौर
उत्तरा पूर्णिमा से शुरू होकर महाशिवरात्रि तक चलने वाले माघ मेले और माघ स्नान पर्व की शुरुआत इस बार 10 जनवरी 2020 से हो रही है. इस दिन चंद्र ग्रहण भी है. वहीं इस बार महाशिवरात्रि 21 फरवरी को है. इस मौके पर देश के कई पवित्र नदियों के किनारे लगने वाले मेलों की भी शुरुआत होती है. करीब डेढ़ महीने तक चलने वाले इस विशेष पर्व के दौरान पवित्र नदियों के संगम में स्नान और फिर दान का विशेष महत्व है.
वैसे तो इन दिनों में देश भर के कई जगहों पर लोग नदियों के किनारे इकट्ठा होकर उसमें आस्था की डुबकी लगाते हैं लेकिन विशेष आयोजन इलाहाबद, उज्जैन, नासिक और हरिद्वार जैसी जगहों पर ही देखने को मिलता है. पौष पूर्णिमा से लोगों का नदियों के किनारे जुटना शुरू हो होता है और महाशिवरात्रि तक यह जारी रहता है. इसी के चलते माघ माह में संगम के तट पर निवास को 'कल्पवास' भी कहा जाता है.
मान्यताओं के अनुसार माघ स्नान पर्व में नदी में स्नान करने से शुभ फल मिलता है. हालांकि इन स्नानों में मकर संक्रांति और मौनी अमावस्या का महत्व विशेष है. इस मेले में कुछ विशेष दिनों में भी स्नान किया जाता है.
पौष पूर्णिमा- 10 जनवरी (शुक्रवार)
मकर संक्रांति- 15 जनवरी (बुधवार)
मौनी अमावस्या- 24 जनवरी (शुक्रवार)वसंत पंचमी- 30 जनवरी (मंगलवार)
माघी पूर्णिमा- 9 फरवरी (रविवार)
महाशिवरात्रि- 21 फरवरी (शुक्रवार)
माघ मास की अमावस्या तिथि को बेहद शुभ माना गया है. इसे ही मौनी अमावस्या भी कहते हैं. ऐसी मान्यता है कि मौनी अमावस्या पर देवता धरती पर रूप बदलकर आते हैं और संगम में स्नान करते हैं. माघ मास को कार्तिक माह की ही तरह पुण्य मास कहा गया है. मौनी अमावस्या को दर्श अमावस्या भी कहा जाता है. इस तिथि को मौनी अमावस्या इसलिए भी कहा गया है क्योंकि इस व्रत को करने वाले को पूरे दिन मौन व्रत का पालन करना होता है.
पौराणिक कथा के अनुसार इस परंपरा का जुड़ाव सागर मंथन से है. सागर मंथन से जब अमृत कलश निकला तो देवताओं एवं असुरों में इसे लेकर खींच-तान शुरू हो गई. इस दौरान अमृत कलश से कुछ बूंदें छलक गईं और प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में जाकर गिरी. इसलिए ऐसा माना गया है कि इन स्थानों पर नदियों में स्नान करने पर अमृत स्नान जैसा पुण्य मिलता है.