November 22, 2024

गोधरा कांड पर हाई कोर्ट का फैसला: अब किसी को भी फांसी नहीं,

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नई दिल्ली,साल 2002 में गोधरा में ट्रेन के डिब्बे जलाने के मामले में एसआईटी की विशेष अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली अपीलों पर गुजरात हाई कोर्ट ने अपना फैसला दे दिया है। कोर्ट ने 11 दोषियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया है। इस मामले में अब किसी भी दोषी को फांसी की सजा नहीं दी जाएगी।गोधरा ट्रेन कांड में एसआईटी की एक विशेष अदालत ने 1 मार्च 2011 को 31 लोगों को दोषी ठहराया था जबकि 63 लोगों को बरी कर दिया था। 11 लोगों को मौत की सजा सुनाई गई थी जबकि 20 लोगों को उम्रकैद दी गई थी।
जिन लोगों को बरी किया गया था उनमें मुख्य आरोपी मौलाना उमरजी, गोधरा नगरपालिका के तत्कालीन प्रेजिडेंट मोहम्मद हुसैन कलोटा, मोहम्मद अंसारी और गंगापुर, उत्तर प्रदेश के नानूमिया चौधरी शामिल थे।
130 से ज्यादा आरोपियों में से एसआईटी कोर्ट में 94 के खिलाफ सुनवाई हुई। 22 फरवरी 2011 को एसआईटी कोर्ट के फैसला देने के बाद भी कुछ आरोपी पकड़े गए और उनके खिलाफ मामला चला।

बाद में गुजरात हाई कोर्ट में कई अपीलें फाइल की गईं, जिसमें फैसले को चुनौती दी गई। दूसरी तरफ राज्य सरकार ने 63 लोगों को बरी करने के फैसले पर सवाल उठाए।

– इस मामले की जांच करने के लिए गुजरात सरकार द्वारा गठित नानावटी कमिशन ने भी यह कहा था कि S-6 कोच में आग लगना कोई दुर्घटना नहीं थी बल्कि आग लगाई गई थी।

 गोधरा दंगों के बाद 8 दूसरे मामलों की तरह सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में भी NHRC की याचिका पर पांच साल के लिए इस मामले की सुनवाई पर स्टे लगा दिया था। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया था।

 आज जस्टिस ए.एस. दवे और जस्टिस जी. आर. उधवानी की बेंच एसआईटी कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई पूरी करने के करीब 29 महीने के बाद फैसला सुनाएगी।

 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस के S-6 कोच में गुजरात के गोधरा स्टेशन पर आग लगा दी गई थी। इसमें 59 लोगों की मौत हो गई थी, जिनमें ज्यादातर कार सेवक थे जो अयोध्या से लौट रहे थे।

1500 पर हुई थी एफआईआर

 इस मामले में 1500 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी।

 28 फरवरी से 31 मार्च 2002 तक गुजरात के कई इलाकों में दंगा भड़का, जिसमें 1200 से अधिक लोग मारे गये। मारे गये लोगों में ज्यादातर अल्पसंख्यक समुदाय के लोग थे।

 3 मार्च, 2002 को गोधरा ट्रेन जलाने के मामले में गिरफ्तार किए गए लोगों के खिलाफ आतंकवाद निरोधक अध्यादेश (पोटो) लगाया गया।

 6 मार्च को गुजरात सरकार ने कमिशन ऑफ इन्क्वॉयरी ऐक्ट के तहत गोधरा कांड और उसके बाद हुई घटनाओं की जांच के लिए एक आयोग की नियुक्ति की।

 9 मार्च को पुलिस ने सभी आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी (आपराधिक षडयंत्र) लगाया।

 25 मार्च को केंद्र सरकार के दबाव की वजह से सभी आरोपियों पर से पोटो हटाया गया।

 27 मार्च को 54 आरोपियों के खिलाफ पहला आरोप पत्र दाखिल किया गया लेकिन उन पर आतंकवाद निरोधक कानून के तहत आरोप नहीं लगाया गया। (पोटो बाद में पोटा, को उस समय संसद ने पास कर दिया था जिससे वह कानून बन गया)।

फिर से लगाया गया पोटा

 18 फरवरी 2003 को गुजरात में बीजेपी सरकार के दुबारा चुने जाने पर आरोपियों के खिलाफ फिर से आतंकवाद निरोधक कानून लगा दिया गया।

 21 नवंबर 2003 को सुप्रीम कोर्ट ने गोधरा ट्रेन जलाये जाने के मामले समेत दंगे से जुडे़ सभी मामलों की न्यायिक सुनवाई पर रोक लगा दी।

 4 सितंबर 2004 को राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू प्रसाद यादव के रेल मंत्री रहने के दौरान केंद्रीय मंत्रिमंडल के फैसले के आधार पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस यू. सी. बनर्जी की अध्यक्षता वाली एक समिति का गठन किया गया। इस समिति को घटना के कुछ पहलुओं की जांच का काम सौंपा गया।

 21 सितंबर को यूपीए सरकार ने पोटा कानून को खत्म कर दिया और अरोपियों के खिलाफ पोटा आरोपों की समीक्षा का फैसला किया।

 17 जनवरी 2005 को यू. सी. बनर्जी समिति ने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट में बताया कि S-6 में आग लगी थी और इस बात की आशंका को खारिज किया कि आग बाहरी तत्वों द्वारा लगाई गई थी।

 16 मई, 2005 को पोटो समीक्षा समिति ने अपनी राय दी कि आरोपियों पर पोटा के तहत आरोप नहीं लगाये जाएं।

 13 अक्टूबर 2006 को गुजरात हाई कोर्ट ने व्यवस्था दी कि यू. सी. बनर्जी समिति का गठन अलग है क्योंकि नानावटी-शाह आयोग पहले ही दंगे से जुडे़ सभी मामले की जांच कर रहा है।

 26 मार्च, 2008 को सुप्रीम कोर्ट ने गोधरा ट्रेन में लगी आग और गोधरा के बाद हुए दंगों से जुडे़ आठ मामलों की जांच के लिये विशेष जांच आयोग बनाया।

नानावटी आयोग की रिपोर्ट

– 18 सितंबर, 2008 को नानावटी आयोग ने गोधरा कांड की जांच रिपोर्ट सौंपी और कहा कि यह पूर्व नियोजित षड्यंत्र था और S-6 कोच को भीड़ ने पेट्रोल डालकर जलाया।

– 20 फरवरी, 2009 को गोधरा कांड के पीड़ितों के रिश्तेदार ने आरोपियों पर से पोटा कानून हटाये जाने के हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

– 01 मई, 2009 को सुप्रीम कोर्ट ने गोधरा मामले की सुनवाई पर से प्रतिबंध हटाया और सीबीआई के पूर्व निदेशक आर. के. राघवन की अध्यक्षता वाले विशेष जांच दल ने गोधरा कांड और दंगे से जुडे़ आठ अन्य मामलों की जांच में तेजी लाई।

साभारः नवभारत टाइम्स

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