114 साल बाद रेलवे में मेगा सुधार, 8 सेवाओं का होगा विलय
नई दिल्ली
हाल के दिनों का सबसे बड़ा रेलवे रिफॉर्म करते हुए मौजूदा सिस्टम को पूरी तरह बदलने का फैसला किया है। बरसों पुराने रेलवे में काम करने के अंदाज में इससे पूरी तरह बदलाव आ जाएगा। मंगलवार को पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट मीटिंग में इसे मंजूरी दी गई। इसके तहत रेलवे बोर्ड में अब सिर्फ पांच सदस्य होंगे। अलग-अलग 8 कैडर को मिलाकर एक कैडर बनाया जाएगा, जिसका नाम होगा इंडियन रेलवे मैनेजमेंट सर्विस। नए बोर्ड के पांच मेंबर में चेयरपर्सन भी शामिल होंगे। चेयरपर्सन सीईओ की तरह काम करेंगे। इसमें कुछ स्वतंत्र सदस्य भी होंगे। पहले बोर्ड में आठ मेंबर होते थे।
बेहतर तालमेल के लिए कदम
रेलवे मैनेजमेंट सर्विस के तहत एकीकृत सिस्टम काम करेगा। नए बोर्ड में ऑपरेशन, बिजनेस डिवेलपमेंट, ह्यूमेन रिसोर्सेज, इन्फ्रास्ट्रक्चर और फाइनैंस से जुड़े मेंबर होंगे। पिछले दिनों सरकार की ओर से गठित एक कमिटी ने रेलवे बोर्ड में अहम बदलाव का प्रस्ताव दिया था। सरकार का मानना है कि बोर्ड की अलग-अलग शाखा रहने से आपस में बेहतर तालमेल नहीं हो पाता था, जिससे रेलवे में योजनाओं के क्रियान्वयन में हमेशा बाधाएं आती रहीं।
1905 से चली आ रही व्यवस्था खत्म होगी
फिलहाल रेलवे बोर्ड में 8 सदस्य होते हैं जो अपनी-अपनी सर्विस का प्रतिनिधित्व करते हैं। बोर्ड का चेयरमैन फर्स्ट एमंग इक्वल्स होता है। यह स्ट्रक्चर 1905 से ही चला आ रहा था। नए सिस्टम में चैयरमैन सीईओ की तरह काम करेगा और सभी तरह के मामलों में वह फाइनल अथॉरिटी होगा। चेयरमैन के अलावा 4 सदस्य भी होंगे जो फाइनैंस, ऑपरेशंस ऐंड बिजनस डिवेलपमेंट, इन्फ्रास्ट्रक्चर और रोलिंग स्टॉक पोर्टफोलियो को देखेंगे। इनके अलावा एक ह्यूमन रिसोर्स का डायरेक्टर जनरल होगा जो चेयरमैन व सीईओ को रिपोर्ट करेगा। इनके साथ-साथ बोर्ड में कुछ इंडिपेंडेंट मेंबर भी होंगे जो फाइनैंस, इंडस्ट्री और मैनेजमेंट के क्षेत्र के जाने-माने नाम होंगे। रेलवे बोर्ड अब बहुत हद तक कॉर्पोरेट कंपनी के बोर्ड की तरह होगा।
अलग-अलग काडरों की खींचतान में ट्रेन-18 जैसे प्रॉजेक्ट्स हुए थे बेपटरी
रेलवे सर्विसेज में आपसी प्रतिद्वंद्विता की वजह से तमाम महत्वाकांक्षी प्रॉजेक्ट्स को पलीता लगता रहा है। सबसे बड़ा उदाहरण ट्रेन 18 का है जहां इलेक्ट्रिकल और मकैनिकल काडर के बीच खींचतान की वजह से प्रॉजेक्ट लॉन्च होने में देरी हुई। सर्विसेज में आपसी प्रतिद्वंद्विता से बड़ा नुकसान हो रहा था। यही वजह है कि प्रकाश टंडन कमिटी (1994), राकेश मोहन कमिटी (2001), सैम पित्रोदा कमिटी (2012) और बिबेक देबरॉय कमिटी (2012) ने सर्वेसेज के एकीकरण की सिफारिश की थी।