क्या दबाव में नागरिकता कानून को वापस लेगी मोदी सरकार?
नई दिल्ली
प्रदर्शनकारी लगातार नागरिकता संशोधन कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि इस कानून के बहाने देश को बांटने की कोशिश की जा रही है. लेकिन इन मांगों के बीच सरकार अपने रुख पर कायम है. गृह मंत्री अमित शाह कह चुके हैं कि विपक्ष को जो राजनीतिक विरोध करना है वो करे. बीजेपी और मोदी सरकार अपने फैसले पर अडिग है.
उन्होंने कहा कि शरणार्थियों को नागरिकता मिलेगी. वे भारत के नागरिक बनेंगे और सम्मान के साथ देश में रहेंगे. सरकार का कहना है कि डर निराधार है और इन तीन देशों के शरणार्थियों के प्रति उसका ऐतिहासिक दायित्व है.
सदन में कानून पास होने के बाद इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. हालांकि, कोर्ट ने इस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. लेकिन इसके खिलाफ दायर की गई 59 याचिकाओं पर 22 जनवरी को सुनवाई होनी है.
अब तक पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, केरल, पंजाब, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों ने इस कानून को लागू करने से इनकार कर दिया है. कांग्रेस खुले तौर पर यह कह चुकी है कि उनके द्वारा शासित राज्यों में यह कानून लागू नहीं होगा. लेकिन नागरिकता केंद्र के अधीन है इसलिए राज्य सरकारों के इनकार का कोई मतलब नहीं है.
पाकिस्तान, अफगानिस्तान या बांग्लादेश से आए हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी, ईसाई शरणार्थियों के लिए भारत की नागरिकता पाना सरल हो गया है. लेकिन किसी और देश के हिंदुओं के लिए भी भारत की नागरिकता पाना आसान नहीं हुआ है. बता दें कि केवल धार्मिक तौर पर प्रताड़ित तीन देशों के अल्पसंख्यकों पर ये कानून लागू है.
दूसरे देशों के अल्पसंख्यकों को मिल रही रियायत को सरकार माइनॉरिटी वेलफेयर के तौर पर देखने की बात कर रही है. मिसाल के तौर पर भारत में चल रही माइनॉरिटी वेलफेयर योजनाओं का जिक्र कर रही है.
भारत में रहने वाले अल्पसंख्यक समान रूप से आगे बढ़ें इसके लिए जामिया मिल्लिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी जैसे संस्थानों में धर्म के आधार पर आरक्षण और अन्य सुविधाएं पढ़ाई के लिए दी जाती हैं. इसके अलावा भारत सरकार ने कई तरह की छात्रवृत्ति योजनाएं चला रखी हैं. नया सवेरा, नई उड़ान जैसी कई योजनाएं अल्पसंख्यकों को निशुल्क कोचिंग से लेकर राज्य सेवा आयोग, कर्मचारी चयन आयोग और संघ लोक सेवा आयोग जैसी महत्वपूर्ण परीक्षाओं में अल्पसंख्यकों को विशेष रियायत का प्रावधान है.
बहरहाल, गृह मंत्री अमित शाह नागरिकता संशोधन अधिनियम को लेकर पहले ही सख्त संदेश दे चुके हैं. उनका कहना था कि विपक्ष जितना चाहे जोर लगा ले, लेकिन सरकार इससे अपने कदम पीछे खींचने वाली नहीं है. वहीं एनआरसी को 2024 तक पूरे देश में लागू करने की बात कही जा रही है और सरकार ने इसे लेकर अभी तक कोई लचीला रुख नहीं दिखाया है. उधर, देशभर में हो रहे धरना प्रदर्शनों के बीच इसकी भी चर्चा चल रही है कि सरकार को मामला सुलझाने के लिए सर्वदलीय बैठक बुलानी चाहिए और सबको भरोसे में लेना चाहिए. इसमें मुस्लिम संगठनों और लोगों से बातचीत का विकल्प भी शामिल हैं.