क्षेत्र का सुप्रसिद्ध “जंगल में मंगल” “मामा भांचा पहाड़ी मेला”
जोगी एक्सप्रेस
बसना-अनुराग नायक– क्षेत्र का सुप्रसिद्ध जंगल में मंगल मामा भांचा पहाड़ी मेला जो प्रति वर्ष क्षेत्र के ऐतिहासिक मामा भांचा डोंगर पर शरद पूर्णिमा की रात को लगता है इस वर्ष 4 अक्टूबर 2017 दिन बुधवार को लगेगा, जहाँ दोपहर के 2 बजे समीपस्थ ग्राम लोहडीपुर के वासियों के द्वारा पूजा तथा भागवत का कार्यक्रम रखा गया है जिसमे अधिक से अधिक संख्या में भाग लेकर पूण्य के भागीदार बनने तथा मेले का लुफ्त उठाने का निवेदन आस पास के तथा दूर दराज से आने वाले श्रद्धालुओं से गांव वालो के द्वारा किया गया है गौरतलब है कि ये मेला केवल 24 घंटे ही लगता है जिसमें शामिल होने बहुत दूर दूर से लोग बड़ी संख्या मेंआते हैं जिस जगह ये मेला लगता है उस जगह को प्राचीन काल के ऋषियों की तपोभूमि कहते हैं जहाँ आज भी ऋषियों के कुछ अवशेष मौजूद हैं जैसे ऋषि सरोवर ,ऋषि गुफा, मुनि धुनि ,वराह शीला, चूल्हा ,बारस पीपल ,भीम बाँध इत्यादि बड़े बुजुर्ग बताते हैं के यहाँ डोंगरी के अंदर में झरना है झील के जैसा छोटा तालाब है हरा भरा मैदान है जो हर समय ठण्ड और ताजगी से भरा रहता है शिव का प्राचीन मंदिर है और लंबी लंबी अथाह सुरंगें हैं जहाँ पत्थरों को हाथ से रगड़ने पर आज भी भभूत मिल जाती है यही नहीं इस डोंगरी पर आयुर्वेदिक औषधियों का भी भंडार है जहाँ आज भी वैद्यो को कई दुर्लभ प्रजाति की औषधियों तथा जड़ी बुटी के पौधे आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं और डोगरी के बाहर विशाल जलाशय है जो बारह महीने पानी से भरा रहता है और नहाने वाले को ताजगी से भर देता है कहते हैं की इस जगह पर रात को जाने और डोंगर पर चढ़कर मामा भांचा मंदिर के दर्शन कर आशिर्वाद लेने वाले को बहुत ही आत्मिक शान्ति की अनुभूति होती है चांदनी रात में बिना किसी लाइट के इस पहाड़ी की बड़ी बड़ी चट्टानों को पार करते हुए इसकी चोटी पर चढ़ना किसी रोमांच से कम नहीं है और चोटी पर चढ़कर वहां से आस पास के क्षेत्रो का नजारा तो रोंगटे खड़े करने के लिए काफी है ये मेला इसलिए भी प्रसिद्ध है क्योंकि इस मेले से हर वर्ष अनेक प्रेमी युगल अन्यत्र पलायन कर जाते हैं जिसे छत्तीसगढ़ी भाषा में उढ़रिया भाग जाना कहते हैं और इसलिए इस मेले को जंगल में मंगल भी कहते हैं,
सरकार की उदासीनता..
इस जगह को ऐतिहासिक स्थल घोषित कर इसका संरक्षण करने तथा यहाँ सुविधाएं विकसित करने की मांग आस पास की जनता के द्वारा सरकार से कई वर्षों से की जा रही है तथा हर वर्ष मेले के वक़्त आस पास के जन प्रतिनिधियों को यहां मुख्य अतिथि के रूप में बुलाकर उनसे भी विनती की जाती है पर उसे आश्वासन के अलावा कुछ भी नहीं मिला है यदि यहाँ जाने हेतु पहुँच मार्ग तथा ऊपर चढ़ने हेतु सीढ़ियों का निर्माण करवा दिया जाए तो यहाँ पर्यटन की असीम संभावनाएं हैं जो इस क्षेत्र के विकास में काफी मदद गार हो सकती हैं.
कैसे पहुंचे.
ये जगह जिला मुख्यालय महासमुंद से 130 KM ब्लाक मुख्यालय बसना से 20 KM जबकि भंवरपुर से 5 KM की दुरी पर उत्तर में स्थित है वैसे तो इस जगह पर पंहुचने के लिए चारों तरफ से रास्ता है मगर भंवरपुर से बनडबरी पतरापाली जाने वाले रास्ते पर तथा भंवरपुर से बरतियाभाँटा होते हुए संतपाली जाने वाले रास्ते पर जाना ज्यादा बेहतर है भंवरपुर से लोहड़ीपुर मार्ग जो थोडा दुर्गम तो है मगर ठीक है.