November 22, 2024

छात्रों का मूल्यांकन भी अर्थव्यवस्था के लिए आवष्यक-डाॅ0 अजय तिवारी

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सागर
भारत की आर्थिक संभावनाऐं एवं उसकी चुनौतियाँ- स्वामी विवेकानंद विष्वविद्यालय के अर्थषास्त्र विभाग के तत्वाधान में भारत की आर्थिक संभावनाऐं एवं उसकी चुनौतियाँ विशय पर दिनाँक 02 दिसम्बर 2019 को राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित थी। दीप प्रज्जवलन के उपरांत स्वागत भाषण देते हुए कुलपति डाॅ. राजेष दुबे ने कहा कि-जब दुनिया की प्रमुख वित्तीय संस्थाएँ भारतीय अर्थव्यवस्था में अपना विष्वास प्रदर्षित कर रही हैै। उसी समय विष्व बैंक ने भी अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि 2018 में भारत विष्व में सबसे तेज विकास करने वाली अर्थव्यवस्था बन जाएगा। विष्व बैंक ने अपनी ग्लोबल इकाॅनमिक प्राॅस्पेक्ट्स रिपोर्ट में 2018-19 में भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर 7.3 प्रतिषत होने का अनुमान जताया है। इन सभी वित्तीय संस्थाओं का मानना है। कि विमुद्रीकरण और जीएसटी का विपरीत प्रभाव देष की अर्थव्यवस्था पर अवष्य पड़ा था। लेकिन अब स्थिति धीरे-धीरे नियंत्रण में आने लगी है। तदुपरांत ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग इंडेक्स का भी यही है कहना हाल में डब्ल्यूईएफ ने अपनी पहली रेडीनेंस फाॅर द फ्यूचर आॅफ प्रोडक्षन रिपोर्ट में वैष्विक विनिर्माण सूचकांक जारी किया था। संगोष्ठी का औचित्य अर्थषास्त्र विभागध्यक्ष डाॅ0 सुनीता जैन के द्वारा प्रस्तुत किया गया।  डाॅ0 शालिनी चैतरानी ने कहा- देष में असमान आय वितरण की चुनौती इसी के साथ इंटरनेषलन राइट्स ग्रुप आॅक्सफैम आवर्स द्वारा दुनिया में बढ़ रहे धन के समान वितरण के संबंध में रिवाॅर्ड वर्क, नाॅट वेल्थ नामक रिपोर्ट जारी की गई। इस रिपोर्ट के अनुसार, गत वर्ष भारत में कुल धन का 73 प्रतिषत का केवल एक प्रतिषत अमीर लोगों के पास था जबकि देष लगभग आधी आबादी (3.7 करोड़) की आय में कोई वृद्धि नहीं हुई। यह इस बेहद चिंताजनक स्थिति के ओर संकेत करता है कि भारत में आर्थिक विकास का लाभ बहुत कम लोगों को मिल रहा है। आय में असमानता की यह चिंताजननक तस्वीर वैष्विक स्तर पर तो और भी अधिक गंभीर है, जहाँ कुल अर्जित धन में से 82 प्रतिषत धन दुनिया की सबसे अमीर आबादी (एक प्रतिषत) ने अर्जित किया है। हरीसिंह गौर विष्वविद्यालय काॅमर्स विभाग से आयी डाॅ0 रूपाली सैनी ने बताया-बैंकों के बढ़ते एनपीए की चुनौती भारत की बैंकिंग प्रणाली ऐसी चुनौती भरी पृष्ठभूमि में अपेक्षाकृत लंबे समय से कार्य कर रही है जिसके कारण सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की आस्ति गुणवत्ता, पूंजी पर्याप्तता तथा लाभ पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इनके मद्देनजर सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में वैष्विक जोखिम मानदंडों के अनुरूप उनकी पूूंजी जरूरतों को पूरा करने और क्रेडिट ग्रोथ को बढ़ावा देने के लिए पूंजी लगा रही है। लेकिन एनपीए का स्तर 7 लाख करोड़ रूपए से अधिक हो जाने के कारण चिंता होना स्वाभाविक है, क्योंकि इतनी बड़ी राषि किसी काम की नहीं हे। यदि इस राषि की वसूली हो जाती तो सरकार बैंकों की लाभप्रदता में इजाफा, लाखों लोगों को रोजगार, नीतिगत दर में कटौती का लाभ कारोबारियों तक पहुँचना, आधारभूत संरचना का निर्माण, कृषि की बेहतरी, अर्थव्यवस्था को मज़बूती, विकास को गति देना आदि संभव हो सकेगा। डाॅ0 वीरेन्द्र मटसानिया ने कहा- राष्ट्र निर्माण के लिए आर्थिक आवष्यकता के साथ नैतिक आर्थिक स्थिति भी बढ़ानी पड़ेगी। डाॅ0 उत्सव आनंद ने बताया-वर्तमान में राष्ट्रीय आय में कृषि का योगदान बहुत अधिक नहीं है, फिर भी कृषि उत्पादन में गिरावट विकास दर को निष्चित ही प्रभावित करती है। स्वतंत्रता के समय देष की जीडीपी में कृषि का हिस्सा लगभग 50 प्रतिषत था, जो अब घटकर केवल 14 प्रतिषत रह गया है। सर्वाधिक उत्पादकता वाले इस क्षेत्र पर देष की लगभग 58 प्रतिषत जनसंख्या निर्भर करती है। डाॅ0 गौतम प्रसाद ने कहा-घटी हुई विकास दर ने केवल कृषि पर निर्भर देष के 14 करोड़ से अधिक परिवारों को प्रभावित करती है, बल्कि आम आदमी भी महँगाई से परेषान हो जाता है। विषिष्ट अतिथि के पद पर पधारे अर्थषास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ0 जी.एम. दुबे ने कहा कि-चँूकि देष की बहुत बड़ी आबादी रोजगार के लिये खेती-किसानी से जुड़ी हुई है, इसलिये कृषि में किसी भी प्रकार की गिरावट रोज़गार संकट को भी बढ़ा देती है। हमारे देष में केन्द्र और राज्य दोनों स्तरों पर बहुत अधिक श्रम कानून है, जो प्रायः औद्योगिक विकास में बाधक बनते हैं। यदि देष में अधिकारिक रोजगारों का सृजन करना है तो सर्वप्रथम श्रम कानूनों के आधिक्य को कम करना होगा। कठारे श्रम कानूनों के कारण औद्योगिक प्रगति नहीं हो पाती, जो आगे चलकर रोज़गारहीनता का एक बड़ा कारण बनती है। श्रम सुधारों को कारोबार से जोड़कर ही मानव संसाधन को उत्पादक संपत्ति बना पाना संभव हो पाएगा। इसके अलावा रोज़गार सृजन के लिये अनुकूल माहौल बनाना भी बेहद आवष्यक है। इसके लिये जहाँ एक तरफ छोटे एवं मध्यम उद्यमों से बोझ घटाने की जरूरत है, वहीं इन सुधारों को कामगारों के लाभ से भी जोड़ना होगा। मुख्य वक्त की आसंदी से बालते हुए पी.जी. काॅलेज की प्रोफेसर डाॅ0 सुनीता दीवान ने कहा- आपदा विपदा भी प्रभावित करती है जलवायु परिवर्तन, जलवायु असमानता, जनसंख्या वृद्धि, असंगठित क्षेत्र को बढावा देना, आर्थिक स्थिति को दिन प्रतिदिन गिरावट की तरफ ले जाता है। सर्वाधिक तेज़ विकास दर के बावजूद विष्व के अनरू कई देषों की तरह ही भारत की अर्थव्यवस्था भी कई मोर्चों पर चुनौतियों का सामना कर रही है। कृषिगत, ग्रामीण अर्थव्यवस्था की चिंताजनक स्थिति, रोजगार सृजन की चुनौतियाँ और कई आर्थिक क्षेत्रों में कमजोर प्रदर्षन भारत की मुख्य समस्याएँ हैं। आर्थिक वृद्धि की राह पर तेजी से आगे बढ़ते भारत के कदमों को कई बार ये तीनों ही चुनौतियाँ एक साथ या बारी-बारी से जकड़ लेती है। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलाधिपति डाॅ0 अजय तिवारी ने कहा- आज आवष्यकता है कि सरकारी सेक्टर की अपेक्षा प्राइवेट सेक्टर को बढ़ावा दिया जाये। भंडारन का अभाव दूर किया जाये तथा मुद्रा स्फिति पर ध्यान दे उपभोक्ता की रूचि का ध्यान रखते हुए ही उत्पादन किये जायें साथ ही शोध छात्र अर्थव्यवस्था के लिए सरकार का ध्यान आकर्षित करें। अर्थव्यवस्था, रोजगार और कृषि क्षेत्र तीनों ही एक-दूसरे से कुछ इस प्रकार से जुड़े हुए हैं कि किसी एक में भी लाया गया बदलाव औरों को प्रभावित करता है। किसी भी तंत्र द्वारा बेहतर कार्य निष्पादन क्षमता के लिये यह आवष्यक है कि इसके सभी अंग एक-दूसरे से समन्वित ढंग से जुड़े हों। जिस प्रकार से अर्थव्यवस्था, समाज और कृषि को एक साथ मिलाकर ही हम वास्तविक संवृद्धि पा सकते हैं। पूजन में स्वास्ति वाचन डाॅ. सुकदेव बाजपेयी द्वारा किया गया कु0 नेहा साहु, कु0 डाली सिंह, श्रीविष्णु कांत वर्मा, अमरजीत साहु, रिजवान अहमद, कु0 अकांक्षा सिंह, कु0 एकता मसी, कु0 रंजना पंथी, आदि शोध छात्रों ने अपने शोध पत्र का वाचन किया। इस अवसर पर सभी अधिष्ठाता और विभागाध्यक्ष के साथ छात्र, छात्रायें उपस्थित रहे। आभार प्रबंधन के अधिष्ठाता डाॅ0 नीरज तोपखाने के द्वारा किया गया। शांति मंत्र के साथ संगोष्ठी का समापन हुआ।

 

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