मजदूर की बेटी है वो, किसान की सूखी किसानी नही,”शफक जमाल”
साहित्य के सुनहरे पन्नों में अपने कलम से हकीकत को उजागर करती “शफक जमाल”–
जोगी एक्सप्रेस
उत्तर प्रदेश के छोटे से गावं में रहने वाली 20 वर्षीय शफक जमाल की परवरिस एक गरीब परिवार में हुई, जिला बाराबंकी के महमूदाबाद गांव में पिता जमाल अहमद खेती किसानी का काम करते हैं, छोटे से गांव में पली बड़ी शफक जमाल ने किसी तरह अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद बाराबंकी के जहांगीराबाद मीडिया संस्थान से मास कम्युनिकेशन का कोर्स किया लेकिन घर की माली हालत खराब होने के कारण डिप्लोमा की रकम अदा ना कर सकी जिसकी वजह से वो डिग्री प्राप्त करने से महरूम रह गई, पिता द्वारा बेटी को आगे बढ़ाने की हर मुमकिन कोशिश विफल रही एक बेटी को सरकार द्वारा भी कोई आर्थिक मदद नही मिली और इस तरह बेटी को आगे बढ़ाने में एक पिता परिस्थिति के आगे मजबूर हो गए, लेकिन बेटी ने हर लिहाज से पिता की अच्छी तरबियत पर पिता के वकार को बाकी रखा और साहित्य में अपनी रुचि दिखाकर 8 वर्ष की उम्र में ही पहली कविता से शुरुआत की और मौजूदा हाल में शफक जमाल की अनगिनत शायरी मौजूद है इनके अलावा समाज के सामने लफ्जों में स्पीच द्वारा बोलने की महारत भी हासिल है, सन 2014 में बौद्ध शोध संस्थान में स्पीच कम्पटीशन में सांत्तवना पुरस्कार मिला और सन 2015 में प्रथम पुरस्कार से नवाजा गया, साहित्य में शुरू से ही रुचि रखते हुए अपने लिखने की कला को उजागर किया अपने शब्दों के माध्यम से समाज की हर परिस्थितियों को समय समय के साथ उजागर करते हुए अपने विचारों को शायराना तर्क में दर्शाया समाज की अच्छाई व बुराई को गंभीरता से लिखने के बेहतरीन अंदाज में डायरी के हर पन्नों में कीमती अशआर जमा किये हैं शफक जमाल की नज़्म में से एक नज़म जो यहां पेश है |
––––––नारी––––––
स्वाभिमानी है वो, अभिमानी नही,
इतिहास है वो, है कहानी नही |
गंगा है वो, उसका पानी वही,
बहती यमुना की रवानी वही |
नारी है अर्थ देवी स्वरुप,
बंदी जीवन की बानी नही |
ऐतिहासिक पताका है उसका,
बात कोई अनजानी नही |
लक्ष्मी है वो माया है,
सूर्य का वो तो साया है |
मजदूर की बेटी अवश्य है वो,
किसान की सूखी किसानी नही |
संकलनकर्ता :आफाक अहमद मंसूरी