सुप्रीम कोर्ट के फैसले में नंबर 786, मुस्लिम पक्षकारों का दावा ऐसे हुआ खारिज
नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को अयोध्या मामले में अपना फैसला सुना दिया है. शीर्ष कोर्ट के 1045 पेज के फैसले के बाद अयोध्या में राम मंदिर बनने का रास्ता साफ हो गया है. सर्वोच्च अदालत ने अयोध्या की 2.77 एकड़ जमीन को राम लला विराजमान को सौंपने और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को अलग से पांच एकड़ जमीन देने का फैसला दिया है. इसके साथ ही करीब 70 साल से चल रहे विवाद का सर्वोच्च अदालत ने निपटारा कर दिया. 1045 पेज के इस फैसले के पैराग्राफ 786 में सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्षकार के दावों का विश्लेषण किया है, जिसमें पाया कि विवादित जमीन पर मुस्लिम पक्षकार का दावा साबित नहीं हुआ.
आपको बता दें कि 786 को इस्लाम में बेहद अहम और पवित्र माना जाता है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पैराग्राफ 786 में कहा गया कि सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने दावा किया कि अयोध्या की विवाद जमीन पर मुगल सम्राट बाबर द्वारा या उसके आदेश पर 1528 में बाबरी मस्जिद बनाई गई थी.
बाबरी मस्जिद बनाने की तारीख से 1856-57 यानी 325 साल से ज्यादा समय तक विवादित जमीन पर नमाज पढ़ने की बात साबित नहीं हुई. इस दरम्यान विवादित जमीन पर कब्जे को लेकर मुस्लिम पक्षकार कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर पाए.
ब्रिटिश काल में राम मंदिर पर पहला दंगा
साल 1856-57 में सांप्रदायिक दंगा के बाद ब्रिटिश काल में ईंट की दीवार बनाई गई थी, ताकि हिंदू-मुस्लिम के बीच विवाद को रोका जा सके और शांति स्थापित की जा सके. इसके बाद मंदिर के बाहरी अहाते में हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत दे दी गई थी. चबूतरे पर भगवान राम की पूजा करना इस बात का साफ संकेत है कि वहां पर हिंदू लगातार पूजा करते रहे हैं. जब अयोध्या में विवादित जमीन पर ईंट की दीवार बनाई गई, उस समय हिंदू और मुस्लिम में से किसी के मालिकाना हक की बात नहीं की गई. इस दीवार को सिर्फ हिंदू और मुस्लिमों के बीच शांति बहाली के लिए बनाई गई.
मंदिर के बाहरी अहाते में हिंदुओं का कब्जा
साल 1877 तक मंदिर के भीतरी अहाते में प्रवेश करने का एक रास्ता था, जिसको हनुमान द्वार कहा जाता है. इसी रास्ते राम चबूतरा, सीता रसोई और भंडार तक जाने का एक रास्ता था. इससे साफ है कि मंदिर के बाहरी अहाते में हिंदू पूजा करते थे और उनका कब्जा था. इसके अलावा बाद में उत्तर की ओर एक और दरवाजा खोला गया, जिसको सिंह द्वार कहा जाता है. यह पूजा करने पहुंचने वाले तीर्थयात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए खोला गया. वहां पर हिंदू और मुस्लिम के बीच विवाद मंदिर के भीतरी अहाते को लेकर था.
ब्रिटिश काल के दंगे में क्षतिग्रस्त हुई मस्जिद
अयोध्या की विवादित जमीन पर साल 1934 पर दूसरी बार सांप्रदायिक दंगा हुआ. इस दौरान मस्जिद का गुंबददार ढांचा क्षतिग्रस्त हो गया था. इसके बाद इस मस्जिद को बनाने के लिए अयोध्या के हिंदुओं पर जुर्माना लगाया गया और फिर मुस्लिम कलेक्टर के जरिए ब्रिटिश प्रशासन ने मस्जिद को दोबारा बनवाने का काम किया. इसके बाद भी हिंदुओं का मंदिर के बाहर वाले हिस्से में पूजा करना जारी रहा. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के प्वाइंटर नंबर 786 में कहा गया कि मुस्लिमों ने भी विवादित जमीन पर अपना कब्जा नहीं छोड़ा. हालांकि सबूत इस बात की ओर संकेत करते हैं कि 1934 के बाद मुस्लिमों ने विवादित जमीन पर नमाज पढ़ना कम कर दिया.
कब मंदिर में स्थापित हुई राम लला की मूर्ति?
16 दिसंबर 1949 तक मस्जिद में सिर्फ शुक्रवार की नमाज पढ़ी जाने लगी थी. इसके बाद 22-23 दिसंबर 1949 को आंतरिक ढांचे के मध्य गुंंबद के नीचे भगवान राम की मूर्ति स्थापित की गई थी, जिसके बाद मुस्लिमों ने दावा किया था कि मस्जिद के साथ छेड़छाड़ की गई. इससे पहले विवादित जमीन पर 16 दिसंबर शुक्रवार को आखिरी बार नमाज पढ़ी गई थी.
इसके बाद अगले शुक्रवार यानी 23 दिसंबर को नमाज नहीं पढ़ी गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जहां तक मंदिर के बाहरी अहाते की बात है, तो वहां पर मुस्लिमों के कब्जे की बात को स्वीकार करना संभव नहीं है. मंदिर के बाहरी अहाते पर हिंदू पूजा करते थे और उनका कब्जा था. यह बात साफ हो रही है. जहां तक मंदिर के भीतरी अहाते की बात है तो मुस्लिम पक्ष के दावे को 1856 से पहले, 1856 से लेकर 1934 और 1934 के बाद की अवधि के आधार पर निर्धारित किया जाना चाहिए.