असम: उल्फा से समझौता जल्द, लौटेगी शांति
गुवाहाटी
असम में शांति के उद्देश्य से केंद्र सरकार यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) समेत कई उग्रवादी संगठनों से शांति समझौता करने वाली है। इस समझौते कि लिए चल रही बातचीत अपने आखिरी दौर में है और उम्मीद जताई जा रही है कि कुछ ही महीनों में समझौता हो भी जाएगा।
रिसर्च ऐंड अनैलेसिस विंग (रॉ) के पूर्व विशेष सचिव रहे ए बी माथुर मामले में वार्ताकार हैं। रविवार को नई दिल्ली में एक किताब के विमोचन के मौके पर उन्होंने कहा, 'हम असम के तीन और मणिपुर के एक उग्रवादी ग्रुप से बात कर रहे हैं। असम के ये ग्रुप- उल्फा, नैशनल डेमोक्रैटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) और कारबी ग्रुब हैं। वहीं, मणिपुर में कुकी ग्रुप से भी बातचीत चल रही है। बातचीत संतोषजनक तरीके से चल रही है और मुझे उम्मीद है कि कुछ ही महीनों में समझौते पर हस्ताक्षर हो जाएंगे।'
'जरूरी है मूल निवासियों की पहचान'
उल्फा के जनरल सेक्रेटरी अनूप चेतिया ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में कहा, 'हां, हमारी बातचीत आखिरी दौर में है और हमें उम्मीद है कि अगले दो महीनों में समझौता हो जाएगा। यहां तक कि आखिरी दौर की बातचीत के लिए हम नई दिल्ली जाने वाले हैं।' उल्फा के एक और शीर्ष नेता ने कहा, 'अब तक बातचीत सकारात्मक रही है और कई मुद्दों का हल निकला है। हालांकि, राज्य के मूल निवासियों को संवैधानिक संरक्षण दिए जाने पर हल नहीं निकल पाया है। यह जरूरी है कि मूल निवासियों की पहचान की जाए।'
आपको बता दें कि यह मुद्दा असम समझौते का भी हिस्सा है। असम समझौता 1985 में केंद्र और राज्य सरकार ने असम में छह साल तक तले बाहरी विरोधी आंदोलन के बाद ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) के साथ किया था। गृह मंत्रालय द्वारा गौहाटी हाई कोर्ट के पूर्व जज बी के शर्मा के नेतृत्व में बहनाई गई समिति 1985 के असम समझौते की धारा 6 को लागू करने पर काम कर रही है। धारा 6 में कहा गया है- असम के मूल निवासियों की भाषायी, सांस्कृतिक, सामाजिक पहचान और विरासत की रक्षा करने और उसे संरक्षित रखने के साथ-साथ बढ़ावा देने के लिए जहां तक उचित होगा, संवैधानिक, प्रशासनिक और विधायी संरक्षण दिया जाएगा।
टॉप लीडरशिप की गिरफ्तारी के बाद बातचीत तो राजी हुई थी उल्फा
हालांकि, पिछले 34 सालों में इसका पालन नहीं हुआ है। उल्फा के नेता कहते हैं, 'शुरुआत में हमने कमिटी की रिपोर्ट आने का इंतजार करने के बारे में सोचा लेकिन पैनल कुछ ठोस नहीं कर सका। हम क्या करते? इसलिए हमने वार्ताकारों के साथ समझौते पर आगे बढ़ने का फैसला लिया।' आपको बता दें कि जून 2008 में उल्फा की 28वीं बटैलियन की दो कंपनियों ने एकतरफा सीजफायर का ऐलान किया। तीन साल बाद उल्फा के टॉप लीडर्स को बांग्लादेश से भगा दिया गया और वे भारत में गिरफ्तार हो गए। इसके बाद उल्फा ने बिना किसी शर्त के केंद्र के साथ बातचीत शुरू की।