जलवायु परिवर्तन को लेकर कितनी गंभीर है सरकार?
नई दिल्ली
क्या आप ने कभी हमारे राजनेताओं को जलवायु परिवार्यन के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए देखा है ? क्या आपने कभी देखा है कि सरकार अपने प्रवक्ता और मंत्रियों को अलग-अलग शहर भेजकर जलवायु परिवर्तन के बारे में लोगों को समझा रहे हैं, क्या कभी विपक्ष में बैठी पार्टियों को जलवायु परिवर्तन को लेकर सड़क पर उतरते हुए देखा है ? नेता छोड़िए क्या कभी लाखों की संख्या में लोगों को जलवायु परिवर्तन के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए देखा है. इन सब को छोड़िए आपने तो कभी मीडिया को भी कभी ऐसे मुद्दे पर बहस करते हुए नहीं देखा होगा. ऐसे भी मीडिया के पास ऐसे मुद्दे के लिए समय कहां है. आपको बात दें कि जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर भारत में है, प्रदूषण की वजह से हर साल लाखों की संख्या में लोग मर रहे हैं लेकिन फिर भी इस मुद्दे को लेकर न सरकार गंभीर है और न ही मीडिया. जलवायु परिवर्तन कोई छोटा मुद्दा नहीं है लेकिन भारत मे यह तो मुद्दा भी नहीं है.
यहां के हवा में ज़हर है, इस ज़हर को हम सांस में ले रहे है. अगर आप को विश्वास नहीं हो रहा है तो आप बेंगलुरु के श्री जयदेवा इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोवैस्कुलर साइंस और रिसर्च के डॉक्टर राहुल पाटिल के रिपोर्ट देख सकते हैं. डॉक्टर पाटिल ने अपने रिपोर्ट में कहा है कि पिछले दो साल में इस अस्पताल में 2400 के करीब ऐसे मरीज आएं जिनकी उम्र 16 साल से लेकर 40 साल के बीच है. हर महीने औसत 100 से 120 ऐसे मरीज आ रहे हैं जिनकी उम्र 40 साल से कम है. डॉक्टर पाटिल ने खुलासा किया कि कई सारे ऐसे ड्राइवर आ रहे हैं जिनका हीमोग्लोबिन बढ़ हुआ है. ऐसे अधिक हीमोग्लोबिन उन लोगों में पाया जाता है जो 20 साल या ज्यादा समय से ध्रूमपान करते हैं लेकिन डॉक्टर राहुल पाटिल का कहना है जो भी ड्राइवर आ रहे हैं उन में से ज्यादातर ध्रूमपान नहीं करते हैं फिर भी उनका हीमोग्लोबिन बढ़ा हुआ है. इसके पीछे जो मुख्य कारण है वो है जहरीली हवा. ड्राइवर ज्यादयर समर शहर में घूमते हैं, शहर के जहरीला हवा का असर उनके ऊपर हो रहा है जिस के वजह से हीमोग्लोबिन बढ़ रहा है. भारत मे हर साल 12 लाख से भी ज्यादा लोग खराब हवा के कारण मर रहे हैं. एयर पॉल्युशन के वजह से बच्चों की life expectancy भी कम हो रहा है.
शुक्रवार को कम से कम 28 देशों के 20 लाख लोग और स्कूल छात्र अपना काम और पढ़ाई छोड़कर जलवायु परिवर्तन के खिलाफ सड़क पर उतरे. स्पेन, न्यूज़ीलैंड, नीदरलैंड्स के कुल जनसंख्या के 3.5 प्रतिशत लोग इस प्रदर्शन में हिस्सा लिए. प्रदर्शन से पहले न्यूज़ीलैंड के लोगों ने वहां के संसद के नाम एक चिट्ठी भी लिखी. इस चिट्ठी में उन्होंने मांग की कि दश में क्लाइमेट इमरजेंसी घोषित की जाए. साथ ही जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए अलग-अलग कॉउंसिल भी बनाई जाए. उधर, कनाडा के 85 शहर में जलवायु परिवर्तन के खिलाफ प्रदर्शन किया गया. वहां के लोगों ने कहा कि अगर नेता जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए कदम नहीं उठाएंगे तो वह अपनी ताकत दिखाएंगे और नेताओं को कुर्सी से उठाकर फेंक देंगे. लोगों का नारा था "हम बदलाव है और बदलाव आ रही है"।
टोरोंटो के लोगों ने यह भी मांग किया है कि जो लोग आमिर है वो ज्यादा टैक्स दें क्यों कि यह आमिर लोग कई सारे कारखाने के मालिक है और यह कारखाने एयर पॉल्युशन के मुख कारण है. टोरंटो के लोग सिर्फ आपने लिए बी नहीं बल्कि वहां के रिफ्यूज के लिए भी सोच रहे हैं. वहां के लोग यह भी मांग कर रहे हैं कि जो लोग रिफ्यूजी हैं उन्हें देश से बाहर नहीं भेजा है, उन्हें डिटेंशन सेन्टर में न रखा जाए, उन्हें पब्लिक सर्विस में काम करने के लिए मौका दिया जाए, उन्हें ऐसे कारखाने में काम करने का मौका दिया जाए जिस कारखाने से कम कार्बन निकलता हो. कनाडा के लिबरल नेता justin Trudeau ने वादा किया है कि लिबरल सरकार अगले दो साल में 20 लाख पेड़ लगाएगी लेकिन भारत मे पेड़ काटने में लोग ज्यादा विश्वास रखते हैं.
थाईलैंड में हज़ारों की संख्या में बच्चों ने रिसोर्स मंत्रालय के सामने प्रदर्शन किया. घाना,दक्षिण कोरिया, फिलपींस,मेक्सिको जैसे देश के बच्चों ने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ प्रदर्शन किया. सीओल में 500 के करीब बच्चे राष्ट्रपति भवन तक मार्च किया और सरकार को जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कदम उठाने के लिए कहा. शुक्रवार को भारत के अलग अलग शहर में स्कूली छात्रों ने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ प्रदर्शन किया. गुरुवार को गुरुग्राम में भी करीब 300 स्कूली बच्चों ने हाथ मे पोस्टर लेकर जलवायु परिवार्यन के खिलाफ मार्च किया. यह बच्चे अपने भविष्य को लेकर गंभीर है.
इन छात्रों का मानना है जलवायु परिवर्तन के वजह से उनके सपना टूटता जा रहा है. एयर पॉल्युशन की वजह से कई बच्चों को सांस लेने में भी दिक्कतें हो रही है. गुरुग्राम के छात्रों ने कहा कि नेता जलवायु परिवर्तन को लेकर गंभीर नहीं है. छात्रों के द्वारा निकाले गए इस मार्च में कोई भी नेता नज़र नहीं आया. किसी भी नेता इन छात्रों के हौसला बढ़ाने के लिए नहीं आया. पिछले 9 महीने से यह छात्र बीच बीच मे प्रदर्शन कर रहे हैं लेकिन ज्यादा कुछ हासिल नहीं हुआ. छात्रों का मानना है प्रदर्शन के वजह से एक दवाब बनाते जा रहा है. राजनेताओं के अंदर भी एक डर पैदा हो रहा है. गुरुग्राम के अरावली जंगल को बचाने के लिए इन बच्चों ने हरियाणा सरकार को चिट्ठी लिखे हैं.