November 22, 2024

नवरात्रि: जानें मां दुर्गा के अस्त्र और शस्त्र का महत्व, ये समझाते हैं जीवन के रंग और देते हैं प्रेरणा

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भागलपुर 
भक्तों के दर्शन के लिए मां-दुर्गा का पट खुल चुका है। ऐसे में मां की पूजा-अर्चना के साथ-साथ उनके स्वरूपों के संदेशों को समझने की जरूरत है। उनके अस्त्र-शस्त्र जीवन के रंग बताते हैं।

दुर्गा सप्तशती से लेकर पंडितों और विद्वानों के अनुसार मां दुर्गा भक्तों के जीवन में न सिर्फ नयी ऊर्जा का संचार करती हैं बल्कि सदा बुराइयों से दूर रहने की प्रेरणा देती हैं।
 
पंडित विजयानंद शास्त्री बताते हैं कि मां दुर्गा ने काम रूपी महिषासुर, लोभ रूपी चंड-मुंड और क्रोध रूपी शुंभ-निशुंभ का वध किया था। इसका मतलब हुआ कि हमें अपने काम, लोभ और क्रोध पर नियंत्रण रखना चाहिए। टीएमबीयू अंतर्गत समाजशास्त्र के पूर्व प्रोफेसर डॉ. प्रेमशंकर झा ने बताया कि मां दुर्गा समर्पण, क्षमा और दूसरों के हितों की बात करती हैं। दर्शनशात्र के प्राध्यापक प्रो. पूर्णेंदु शेखर ने बताया कि दुर्गापूजा हमें अपने अंदर के काम, क्रोध, लोभ, मद और मोह को हराने की प्रेरणा देती है। 

सुदर्शन चक्र क्रियाशील रहने व तलवार ज्ञान का प्रतीक 
प्रो. सदानंद झा बताते हैं कि मां दुर्गा के हाथों में सुदर्शन चक्र रहता है जो जीवन में गति और क्रियाशील बने रहने की प्रेरणा देता है। त्रिशूल तीन गुण सत्य, रज यानि सांसारिक और तम यानि तामसी शक्ति पर नियंत्रण रखने की सीख देता है। जबकि शंख पवित्रता और धनुष-बाण ऊर्जा और एकाग्रता का प्रतीक है। तलवार की चमक ज्ञान का प्रतीक है तो ढाल आपको दुर्गुणों से बचे रहने की बात करता है।  

शिव से मिला त्रिशूल, विष्णु ने दिया सुदर्शन चक्र 
दुर्गा सप्तशती में वर्णित है कि मां दुर्गा को किन-किन देवाताओं से क्या-क्या अस्त्र-शस्त्र मिले हैं। भगवान शिव ने त्रिशूल दिया जिससे मां ने महिषासुर का वध किया। वरुण देव से शंख जिसकी ध्वनि से धरती, आकाश और पाताल तीनों गुंजायमान करती हैं। भगवान विष्णु से सुदर्शन चक्र, पवन देव ने धनुष-बाण दिया। देवराज इंद्र ने वज्र, यमराज ने तलवार, ढाल और दंड दिया। विश्वकर्मा ने फरसा दिया जिससे मां ने चंड-मुंड का नाश किया। 

कमल और सिंह की सवारी का महत्व 
माता के हाथों में कमल का फूल होता है जो विपरीत परिस्थितियों में भी डटे रहने की प्रेरणा देता है। साथ ही जीवन रूपी कीचड़ जैसे कि वासना, लोभ, मोह, लालच से दूर रहने की सीख देता है। वहीं माता की सवारी सिंह हिंसक प्रवृत्तियों के दमन का प्रतीक है। अशोक पंडित ने बताया कि विजयदशमी के मौके पर मंदिरों में 10 भुजा वाली मां की पूजा होती है जो विजय की प्रतीक मानी जाती हैं। इसके अलावे मां का सहस्त्रभुजारूप, अष्टभुजा रूप, चर्तुभुज रूप भी भक्तों के लिए वरदायनी होता है। 
 

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