राजेश सिंह अनुपपुर
अनुपपुर आज जहां पूरा देश मदर-डे पर माताओं को बधाई दे रहा है वहीं दूसरी तरफ एक अनाथ बालक मॉं की ममता से दूर पड़ा है और मॉं भी अनाथ बालक के लिए दर-दर की ठोकरे खाते फिर रही है। भोपाल से लेकर दिल्ली तक का सफर बच्चे को पाने के लिए मॉं ने क्या कुछ नहीं किया फिर भी उसकी ना तो प्रशासन सुन रहा है और न ही राजनेता सब के सब कानूनों की दुहाई देते हुए मामले से पल्लाझाड़ रहे है। कुल मिलाकर मदर-डे पर एक नवजात शिशु मॉ की ऑंचल के लिए बिलख रहा है वहीं मॉं भी बच्चे को पाने के लिए ऑंसू बहा रही है।
जमुना-बदरा। विगत कुछ माह पहले की उस घटना से हम आपकी याददास्त ताजा कराने जा रहे है जो आज एक मॉ और बच्चे के लिए संघर्ष की कहानी बन गई है 23 दिसम्बर 2016 को किसी ने बेहरम मॉ ने नवजात षिषु को जन्म देने के बाद परासी स्वास्थ्य केन्द्र के सामने झोले में भरकर सड़क के किनारे फेक गई थी। जिसको एक वाहन चालक ने देखा और उसकी जानकारी चिकित्सालय के स्टाफ को दी। चिकित्सालय के स्टाफ ने बच्चे को लाकर उसका इलाज शुरू किया तभी इसकी जानकारी डॉक्टर आर.के. वर्मा की धर्मपत्नी पदमा वर्मा को मिली और वह बच्चे को देखने पहुॅंच गई। प्रशासन से निवेदन कर बच्चे की परिवारिस करने के लिए तथा गोद लेने के लिए उन्होने बच्चे की मांग की। जिस पर जिला प्रशासन ने बच्चे को उनकी देख रेख में छोड़ दिया। तीन माह का समय बीत जाने के बाद प्रशासन कुम्भकर्णी निद्रा से जागा और उसे अचानक अनाथ नवजात शिशु की याद आयीं और उसे लेने के लिए एक रणनीत के तहत योजना बनायीं।
किया लालन-पालन
नवजात षिषु को पाकर पदमा वर्मा के घर में खुषियों की बहार आ गई और उन्होने नवजात शिशु को अपने संतान से भी ज्यादा बढ़-चढ़कर लालन-पालन करने लगी। बच्चा पाने के उपलक्ष्य में स्थानीय लोगों निमंत्रण देकर भोज का आमंत्रण भी दिया। और लगातार तीन माह तक नवजात शिशु की देख-रेख करती रही।
नींद से जागा प्रशासन
इस पूरे मामले में सबसे बड़ा यह सवाल यह उठता है कि 23 दिसम्बर 2016 को जब बच्चा मिला तो इसकी जानकारी पुलिस थाना भालूमाड़ा में दर्ज कराई गई थी और समाचार पत्रों तथा न्यूज चैनलो में खबर का प्रकाशन हुआ और पूरे मामले की जानकारी जिला प्रशाशन को दी गयी फिर भी प्रशाशन उस बच्चे को लेने के लिए क्यों नहीं पहुॅंचा जब तीन महीना किसी मॉ के ममता के सहाय में वह पल गया तो उसे छीनने के लिए प्रषासन पहुॅंच गया है। निष्चित तौर पर कोई भी मॉं किसी भी बच्चे को यदि इतने दिनों तक सेवा करेगी तो उससे आत्मीय लगाव होना स्वाभाविक है।
देखने का किया बहाना
तीन माह तक लालन-पालन करने वाली पदमा वर्मा को महिला सषक्तिकरण अधिकारी मंजूषा शर्मा ने बच्चा देखने के बहाने अनूपपुर बुलवाया और वहां उनके पहुॅचने पर घेराबंदी करते हुए बच्चे को अपनी कष्टडी में ले लिया और बच्चे को षिवालय गृह शहडोल में भेज दिया। इस हरकत से पदमा वर्मा काफी सदमें में पहुॅंच गई क्योंकि उन्हे तो उस नवजात षिषु से आत्मीय लगाव हो चुका था घटना के बाद से उनका रो-रोकर बुरा हाल है पर प्रषासन को इसकी कोई परवाह नहीं है।
काट रही चक्कर
एक तरफ षिवालय गृह शहडोल में दिन-’प्रतिदिन खराब होती जा रही है उसका वनज भी घटता जा रहा है वहीं दूसरी तरफ बच्चा पाने के लिए जिला कलेक्टर से भोपाल और दिल्ली तक चक्कर लगा चुकी है और उन्हे अभी तक कहीं से न्याय नहीं मिला है यहां तक की शनिवार के दिन जिले में आये हुए प्रदेष के गृहमंत्री भूपेन्द्र सिंह से भी उन्होने मिलकर नवजात षिषु को दिलाने की गुहार लगाई लेकिन गृहमंत्री ने भी कानूनी प्रक्रिया का हवाला देते हुए मामले से पल्लाझाड़ लिये। कुल मिलाकर इस मामले को लेकर अब पदमा वर्मा उच्च न्यायालय की शरण में जाने की तैयारी बना रही है।