October 26, 2024

चिरमिरी एक आग का दरिया है,बस राजनीति कर पार निकल जाना है

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चिरमिरी एक आग का दरिया है,बस राजनीति कर पार निकल जाना है।पीछे  राख का ढेर छोड़ जाना है।

नसरीन अशरफ़ी 

चिरमिरी– चिरमिरी काले हीरे की नगरी।वह नगरी जिसे कई उपनामों से जैसे – मिनी भारत,शिमला,हिल स्टेशन,चिरमिरी जन्नत आदि कई नामों से पुकारा जाता है।पहली बार आगमन पर कोई भी प्रकृति के इस अनुपम सुंदरता से परिपूर्ण नगरी पर मोहित हुए बिना नहीं रह पाता है।चिरमिरी नगरी एक टापू से कस्बा,फिर साडा क्षेत्र में परिवर्तित होते हुए वर्तमान समय में नगर पालिक निगम का दर्जा लिए हुए है।यह दर्जा कब तक रहेगा यह कहा नहीं जा सकता है,ऐसा कहने की जरूरत इसलिए आन पड़ी है कि यहाँ के रहवासी धीरे – धीरे अपना आशियाना दूसरे शहरों में तलाशने लगा है।चिरमिरी में परिवर्तन की बयार इतनी जल्दी चलेगी इसकी कल्पना शायद यहाँ के नीति

निर्धारकों,एस0ई0सी0एल0 के अधिकारी,श्रमिक नेता एवं राजनेताओं ने नहीं की होगी । चिरमिरी शहर अपने शैशवावस्था से सीधे वृद्धावस्था की ओर लगातार अग्रसर हो रहा है।इसके अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।आम जनमानस के मन में यह विचार बार- बार आ रहा है कि हम इस शहर को छोड़ कहाँ जाएँ।इसी मिट्टी में बचपन और कई यादें जुड़ी हैं;आखिर कब कोई मसीहा बन इस क्षेत्र और उसके स्थायित्व के लिए आगे आएगा।इसी बात को लेकर

जनमानस आशा भरी निगाहों से इस क्षेत्र के राजनेताओं और श्रमिक नेताओं की तरफ टक- टकी भरी निगाहों से देख रही है।यह टक-टकी लगाए देखने का सिलसिला पिछले कई वर्षों से बदस्तूर जारी है।अब तो जनता की आँखें भी थक चुकी है ।इसलिए कई सामाजिक मंचों का गठन चिरमिरी में हुआ।जिन्होंने चिरमिरी के स्थायित्व के लिए आवाज़ बुलंद की और आंदोलन किया।लेकिन आम जन मानस इन संगठनों से अपने को जोड़ नहीं पायी।यदि जोड़ लेती तो परिणाम और बेहतर होते।


मेरा भी यह आलेख लिखने का मकसद यह है कि चिरमिरी का जीवन ऐसे क्यों हुआ?इनकी वजहें क्या हैं? पलायन क्यों हो रहा है? इन प्रश्नों के साथ यह भी एक अटल सत्य है कि यह शहर बसा ही कोयले उत्खनन की वजह से।कामगार आये,उत्पादन तेजी से हुआ।टापू कस्बा बना फिर शहर का रूप लिया।अब जब उत्पादन कम होते जा रहा है तो कंपनी ने अपनी सारी सुविधाएं हटाना शुरू कर दिया है।और जब उत्पादन पूरी तरीक़े से बंद हो जाएगा तो कंपनी अपना काम बंद कर देगी।कोई भी व्यापारी लाभ तक ही व्यापार करना पसंद करती है।तो फिर एस0ई0सी0एल0 क्या कुछ गलत कर रही है।एक व्यापारी की तरह कंपनी लाभ व उत्पादन कम होने पर अपनी दी सुविधाओं में धीरे- धीरे कमी

लाना शुरू कर रही है।जिसका उदाहरण एन0सी0पी0एच0 और कुरासिया रीजनल हॉस्पिटल में स्वास्थ्य सुविधाओं में कमी साफ झलकती है।इसी तरह उत्पादन का मुख्य लक्ष्य तय कर सुरक्षा और पर्यावरण के दृष्टिकोण से भी कंपनी ने भारी लापरवाही की जिसका खामियाजा आज पूरा शहर भोग रहा है।चारों तरफ जहरीली गैसों का रिसाव हो रहा है।एक बेहतरीन शहर को आग का गोला बना के धधकते हुए छोड़ दिया गया है।जनता राख के ढेर में अपना जीवन व्यतीत कर रही है और यहां नाना प्रकार के बीमारियों से जनता जूझ रही है।जब कोयला का उत्पादन पूरा हुआ तो सुरक्षा के दृष्टिकोण से फिलिंग का कार्य नियमानुसार करके सुरंगों को बंद करना कंपनी का काम था,जिसमें लापरवाही या कमी का परिणाम है कि यह शहर आग का शोला बन चुका है।इन सब बातों के कारण कोई पाँच साल,कोई दस साल शहर की उम्र बता रहा है।ऐसी चूक कोई एक साल,पाँच साल,दस साल से नहीं बल्कि दशकों से होते चला आ रहा है।इन परिस्थितियों के लिए जिम्मेदार कोई एक नहीं बल्कि पूरा जनमानस जिसमें यहाँ का व्यापारी वर्ग,कर्मचारी वर्ग,अधिकारी वर्ग,कंपनी एवं सबसे अहम कड़ी यहाँ के श्रमिक नेता व राजनीतिज्ञ हैं।


चूँकि जनप्रतिनिधि ही लोकतंत्र में क्षेत्र के विकास या यूं कहें जनता और जनता से जुड़े समस्याएं एवं उसके क्षेत्र विकास हेतु मुद्दों को प्राथमिकता के आधार पर आवश्यक मंच पर प्रतिनिधित्व करते हैं।किन्तु बड़ी गंभीर बात रही है कि चिरमिरी की राजनीति में समस्याएं बढ़ती चली गईं और विकास कार्य अवरूद्ध होते चले गए।कई ऐसे कार्यक्रम जो पहचान थे चिरमिरी के वे काल के गाल में समा चुके हैं।चिरमिरी की पहचान स्व0रामकुमार दुबे मेमोरियल क्रिकेट

टूर्नामेंट हुआ करता था,लाहिड़ी बहुउद्देशीय उ0मा0विद्यालय जिसे दादू लाहिड़ी ने एक आकार दिया था; एक पहचान चिरमिरी थी।जो आज बंद होने के कगार पर पहुंच चुका है।शा0लाहिड़ी महाविद्यालय इस संभाग का एक मात्र कॉलेज हुआ करता था,जिसकी ख्याति दूर दूर तक रही।लेकिन आज खुद अपनी बदहाली पर कॉलेज रो रहा होगा।क्षेत्र की शान फुटबॉल और कबड्डी के आयोजन हुआ करते थे।वतर्मान समय में आज का युवा स्व0रामकुमार दुबे को पूरी तरह से भूल चुका है।दादू लाहिड़ी तो कुछ याद भी हैं।आखिर इन चीजों का जिम्मेदार किसे माना जाए? निश्चित रूप से क्षेत्र के श्रमिक नेताओं और जनप्रतिनिधियों का ही यह नैतिक और वैधानिक कर्तव्य था और है भी कि वह क्षेत्र के विकास का एक खाका खींच कर विकास का मार्ग प्रशस्त करें।किन्तु चिरमिरी में यह कार्य उस स्तर पर नहीं हो पाया या जो हुआ नाकाफी रहा।


वर्तमान परिदृश्य में खासकर राजनीतिक परिदृश्य में कुछ उम्मीद की किरण जरूर पैदा विधायक और महापौर ने किया।लाहिड़ी कॉलेज के उन्नति के लिए विधायक श्याम बिहारी जायसवाल का प्रयास प्रशंसनीय रहा है,जो कॉलेज के पुराने दिनों को लौटाने की दिशा में अच्छा कार्य है।वही महापौर के0डोमरू रेड्डी का मास्टर स्ट्रोक चिरमिरी को पट्टा दिलाने की दिशा में किया गया प्रयास और पट्टा के लिए कार्यवाही जो कुछ किया गया ,वो काबिले तारीफ है।तुलसी वाटिका,ब्लू सिटी,रोप वे आदि योजना आस दिलाते हैं।किंतु अभी इनके प्रयास चिरमिरी के वर्तमान परिस्थितियों के हिसाब से नाकाफी है।वैसे भी श्रेय की होड़ में राजनीति इतनी विषाक्त हो चुकी है,कि स्वस्थ राजनीति अब गुजरे जमाने की बात लगती है।जो भी है चिरमिरी के विकास में सब दलों को राजनीति से ऊपर उठ कर कुछ चीजों पर एक होना अति आवश्यक है।


वैसे राजनीतिक लोगों की अपेक्षा सामाजिक लोगों ने चिरमिरी के लिए ज्यादा प्रयास किया है,जिसमें श्रमिकों के लिए स्व0रामकुमार दुबे हों,शिक्षा के लिएदादू लाहिड़ी हो एवं स्व0मोहर साय हो,जिन्होंने एक मील का पत्थर बना दिया है।दादू लाहिड़ी के योगदान को लोग जानते हैं,किन्तु स्व0 मोहर साय दास जिन्होंने सरगुजा कल्याण ट्रस्ट समिति के माध्यम से शिशु शिक्षा निकेतन स्कूल के स्कूल श्रृंखला में खोल कर चिरमिरी को एक पहचान दी।इसी तरह चिरमिरी से दूर पर चिरमिरी को दिल मे बसाये इस मिट्टी का कर्ज चुकाते हुए अप्रवासी भारतीय चंद्रकांत पटेल का योगदान अतुल्नीय है ।जिन्होंने नर्सिंग कॉलेज और अब बीएड कॉलेज की स्थापना कर एक मील का पत्थर रखा।

जिन्हें चिरमिरी ने भूला दिया है।ऐसे कई नाम हैं जिन्हें चिरमिरी ने भुला दिया है।इनमें पर्यावरण प्रेमी स्व0 प्राण नाथ राय जिन्होंने शिव शांति स्थल की नींव रखी।धार्मिक पहचान दिलाने वाले कल्पतरू बाबा जिन्होंने जगन्नाथ मंदिर की नींव रखी।जो आज चिरमिरी की धार्मिक पर्यटन की पहचान है।इन्हीं बातों को देखें तो सामाजिक रूप से बेहतर कार्य हुए।लेकिन राजनीति ने राजनीति की।ऐसा भी नहीं है कि राजनीतिक गलियारों से कोई काम नहीं हुआ।हुआ लेकिन वो नाकाफी रहा।श्रमिक संगठनों ने भी श्रमिकों को निराश ही किया है।


इस विधानसभा चुनाव में चिरमिरी का स्थायित्व एक मुद्दा है।जनता को इस बार फूंक- फूंक कर कदम रखना होगा।नहीं तो यह शहर इतिहास की बात बन जाएगी।वर्तमान चुनाव में जनता को प्रत्याशियों से स्पष्ट एजेंडा के साथ सवाल जवाब माँगना चाहिए कि कैसे और किस तरह आप स्थायित्व दिलाएंगे।आपका विजन क्या है।सिर्फ विजन ही साफ न हो बल्कि परिणाम जीतने के बाद कैसे मिलेगा,यह जवाब भो जनता को लेना चाहिए।जो भी हो इस बार यह

विधानसभा चुनाव चिरमिरी का भविष्य के लिए निर्णायक होगा।चिरमिरी की आबादी वर्तमान में लगभग एक लाख से भी ऊपर है  जहाँ पर हर प्रदेश के लोग निवासरत है ,जहाँ पर हर प्रदेश के  लोग अपनी संस्क्रति को यहाँ जीते है  भारत को यदि कही जिया  जाता है तो उसके लिए  निश्चय ही चिरमिरी स्वर्ग और जन्नत से कम नहीं,लेकिन अब चिरमिरी की दुर्दशा पर आसू बहाने वाला भी कोई नहीं  यह उतना ही सच जितना मै और आप

 

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