श्रद्धा उल्लास के बीच मनाया गया हरछठ का पर्व महिलाओं ने रखा अनूठा व्रत
बिरसिंहपुर पाली – ( तपस गुप्ता) हरषठ का पर्व नगर सहित क्षेत्र में बड़े ही श्रद्धा उल्लास के साथ भक्तमय वातावरण में मनाया गया। महिलाएं व्रत पालन के पूर्व नए वस्त्र धारण कर पूजा स्थल में उपस्थित हुए जहाँ श्रद्धा मुताबिक पूजा अर्चना कर बांस के पात्र में नैवेद्य प्रसाद भूंजे हुए चना महुआ व भैंस के दही दूध आदि का भोग लगाया। कहा जाता है कि हल षष्ठी पर्व भाद्रपद कृष्ण षष्ठी को यह व्रत भगवान श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता श्री बलरामजी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन श्री बलरामजी का जन्म हुआ था। हल षष्ठी की व्रतकथा इस प्रकार है। जानकारों के मुताबिक प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी उसका प्रसवकाल अत्यंत निकट था, एक ओर वह प्रसव से व्याकुल थी तो दूसरी ओर उसका मन गौ-रस (दूध-दही) बेचने में लगा हुआ था। उसने सोचा कि यदि प्रसव हो गया तो गौ-रस यूं ही पड़ा रह जाएगा। यह सोचकर उसने दूध-दही के घड़े सिर पर रखे और बेचने के लिए चल दी किन्तु कुछ दूर पहुंचने पर उसे असहनीय प्रसव पीड़ा हुई। वह एक झरबेरी की ओट में चली गई और वहां एक बच्चे को जन्म दिया। वह बच्चे को वहीं छोड़कर पास के गांवों में दूध-दही बेचने चली गई। संयोग से उस दिन हल षष्ठी थी। गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने सीधे-सादे गांव वालों में बेच दिया।उधर जिस झरबेरी के नीचे उसने बच्चे को छोड़ा था, उसके समीप ही खेत में एक किसान हल जोत रहा था। अचानक उसके बैल भड़क उठे और हल का फल शरीर में घुसने से वह बालक मर गया। इस घटना से किसान बहुत दुखी हुआ, फिर भी उसने हिम्मत और धैर्य से काम लिया। उसने झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टांके लगाए और उसे वहीं छोड़कर चला गया।
कुछ देर बाद ग्वालिन दूध बेचकर वहां आ पहुंची। बच्चे की ऐसी दशा देखकर उसे समझते देर नहीं लगी कि यह सब उसके पाप की सजा है। वह सोचने लगी कि यदि मैंने झूठ बोलकर गाय का दूध न बेचा होता और गांव की स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट न किया होता तो मेरे बच्चे की यह दशा न होती l फिर उस महिला ने घूम घूमकर सारी गलतियों को सबके समक्ष रखकर याचना की व हरषढ महारानी माफी मांगी जिससे उसका बच्चा जीवित हो गया।
*क्या है व्रत का फल*
बताया जाता है कि इस व्रत के पालन से पति व संतान को सुख समृद्धि व मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। कष्ट और दुखों का विनाश होकर मनमुताबिक कामना की प्राप्ति होती है जिससे यह व्रत हिन्दू समुदाय का प्रमुख और प्रचलित पर्व हो गया है जिसे हर वर्ष बड़े ही सावधानी पूर्वक मनाया जाता है।